इनकम टैक्स एक्ट की धारा 270A क्या है?

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by Angel One
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धारा 270A इनकम की अंडररिपोर्टिंग (50% टैक्स) और मिसरिपोर्टिंग (200% टैक्स) पर पेनल्टी लगाती है। निवेशकों को पेनल्टी से बचने के लिए अपनी अर्निंग्स को सही तरीके से रिपोर्ट करना चाहिए। 

भारत के इनकम टैक्स एक्ट, 1961 में कई ऐसे प्रावधान हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि टैक्सपेयर अपनी इनकम को सही तरीके से रिपोर्ट करें। ऐसा ही एक प्रावधान है धारा 270A, जो इनकम की अंडररिपोर्टिंग और मिसरिपोर्टिंग पर पेनल्टी से संबंधित है। यह धारा फाइनेंस एक्ट, 2016 के अंतर्गत पेश की गई थी, और इसने पहले लागू धारा 271(1)(c) के पेनल्टी प्रावधान को रिप्लेस किया। 

इस धारा का उद्देश्य उन टैक्सपेयर को दंडित करना है जो अपनी वास्तविक इनकम से कम इनकम रिपोर्ट करते हैं या गलत जानकारी देते हैं जिससे टैक्स लाइबिलिटी कम हो जाती है। यदि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट को टैक्सपेयर की फाइलिंग में कोई अंतर या गड़बड़ी मिलती है, तो मामले की गंभीरता के अनुसार पेनल्टी लगाई जा सकती है। 

भारतीय निवेशकों के लिए यह विशेष रूप से जरूरी है क्योंकि स्टॉक ट्रेडिंग, म्युचुअल फंड्स, रियल एस्टेट, फिक्स्ड डिपॉज़िट्स और अन्य स्रोतों से होने वाली इनकम को सही तरीके से रिपोर्ट करना आवश्यक है ताकि पेनल्टी से बचा जा सके। 

धारा 270A कब लागू होती है? 

यह प्रावधान दो मुख्य स्थितियों में लागू होता है: 

  1. इनकम की अंडररिपोर्टिंग 
  2. इनकम की मिसरिपोर्टिंग

1. इनकम की अंडररिपोर्टिंग

अंडररिपोर्टिंग तब होती है जब कोई टैक्सपेयर अपनी असली इनकम से कम इनकम डिक्लेयर करता है। यह गलती, गलत कैलकुलेशन या जानबूझकर इनकम छुपाने के कारण हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी टैक्सपेयर की सालाना इनकम ₹10 लाख है लेकिन वह केवल ₹8 लाख रिपोर्ट करता है, तो ₹2 लाख की राशि अंडररिपोर्टेड इनकम मानी जाएगी। 

इनकम की अंडररिपोर्टिंग के सामान्य कारणों में शामिल हैं: फिक्स्ड डिपॉज़िट्स या सेविंग्स अकाउंट पर अर्जित ब्याज को डिक्लेयर करना स्टॉक मार्केट निवेश से हुए कैपिटल गेंस को रिपोर्ट करना प्रॉपर्टी से मिलने वाली रेंटल इनकम को बताना बिज़नेस या फ्रीलांस इनकम का गलत कैलकुलेशन करना

  1. इनकम की मिसरिपोर्टिंग

मिसरिपोर्टिंग एक ज्यादा गंभीर अपराध है और तब होती है जब टैक्स कम देने के इरादे से झूठी या भ्रामक जानकारी दी जाती है। इसमें फ़र्ज़ी दस्तावेज़ बनाना, खर्चों को बढ़ाचढ़ाकर दिखाना या फर्जी क्लेम देना शामिल है। 

मिसरिपोर्टिंग के उदाहरण: ऐसे डिडक्शन्स क्लेम करना जो वास्तव में मौजूद नहीं हैं बिज़नेस खर्चों की गलत जानकारी देना विदेशी इनकम या ऑफशोर इन्वेस्टमेंट्स को छिपाना टैक्स बचाने के लिए फाइनेंशियल रिकॉर्ड्स में हेरफेर करना

मिसरिपोर्टिंग पर लगने वाली पेनल्टी, अंडररिपोर्टिंग की तुलना में काफी ज्यादा होती है। 

धारा 270A के अंतर्गत पेनल्टी 

अपराध का प्रकार  पेनल्टी 
इनकम की अंडररिपोर्टिंग  अंडररिपोर्टेड इनकम पर देय टैक्स का 50% 
इनकम की मिसरिपोर्टिंग  मिसरिपोर्टेड इनकम पर देय टैक्स का 200% 

उदाहरण के लिए, यदि अंडररिपोर्टेड इनकम पर देय टैक्स ₹50,000 है, तो: 

  • अंडररिपोर्टिंग पर पेनल्टी ₹25,000 होगी 
  • मिसरिपोर्टिंग पर पेनल्टी ₹1,00,000 होगी 

अंडररिपोर्टेड इनकम की गणना कैसे होती है? 

  • उन टैक्सपेयर के लिए जिन्होंने रिटर्न फाइल किया है 

अंडररिपोर्टेड इनकम = मूल्यांकित इनकमटैक्स रिटर्न में रिपोर्ट की गई इनकम 
उदाहरण के लिए, अगर किसी टैक्सपेयर ने ₹6 लाख इनकम रिपोर्ट की है लेकिन इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने ₹8 लाख मूल्यांकित की, तो अंडररिपोर्टेड इनकम ₹2 लाख मानी जाएगी। 

  • उन टैक्सपेयर के लिए जिन्होंने रिटर्न फाइल नहीं किया है 

अंडररिपोर्टेड इनकम = डिपार्टमेंट द्वारा मूल्यांकित की गई कुल इनकमबेसिक एग्ज़ेम्प्शन लिमिट

क्या टैक्सपेयर धारा 270A के अंतर्गत पेनल्टी से बच सकता है? 

कुछ मामलों में पेनल्टी लागू नहीं होती है। धारा 270A(6) के अंतर्गत राहत मिल सकती है यदि:

  • सही इनकम रिपोर्टिंग: इनकम सही रिपोर्ट की गई थी, लेकिन टैक्स डिपार्टमेंट ने अलग व्याख्या के आधार पर एडजस्टमेंट किया। ऐसा अक्सर मूल्यांकन के दौरान होता है, जब टैक्स अथॉरिटी इनकम को दोबारा क्लासिफाई करती है या अलग टैक्स ट्रीटमेंट लागू करती है। 
  • वास्तविक गलती: यदि टैक्सपेयर यह साबित कर सके कि अंडररिपोर्टिंग एक ईमानदार गलती थी। अगर टैक्सपेयर ठोस सबूत पेश करे कि यह त्रुटि जानबूझकर नहीं थी, तो वह पेनल्टी से बच सकता है। 
  • टैक्स कानूनों की वैध व्याख्या: यदि टैक्सपेयर ने किसी डिडक्शन या एग्ज़ेम्प्शन का क्लेम टैक्स कानून की बोना फाइड व्याख्या के आधार पर किया हो, तो पेनल्टी नहीं लग सकती। कोर्ट और टैक्स अथॉरिटीज टैक्सपेयर के इरादे और उनकी व्याख्या की तार्किकता को ध्यान में रखते हैं। 
  • पर्याप्त खुलासा: जब टैक्सपेयर अपने टैक्स रिटर्न में सभी जरूरी तथ्य और लेनदेन को पारदर्शिता से डिस्क्लोज़ करते हैं, तो पेनल्टी से बचा जा सकता है। पूर्ण डिस्क्लोज़र यह दर्शाता है कि किसी तरह की जानबूझकर छुपाने की मंशा नहीं थी। 
  • त्वरित सुधार: यदि टैक्सपेयर अपनी टैक्स रिटर्न में की गई गलती को खुद पहचानकर उसे टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा पकड़े जाने से पहले संशोधित रिटर्न के माध्यम से सुधार लेता है, तो पेनल्टी से बचा जा सकता है। यह सक्रियता टैक्स नियमों के पालन को दर्शाती है और पेनल्टी की संभावना को कम करती है। 

धारा 270A का भारतीय निवेशकों पर क्या प्रभाव है? 

निवेशकों के लिए, टैक्स से जुड़ी सही रिपोर्टिंग बेहद आवश्यक है ताकि पेनल्टी से बचा जा सके। कुछ आम परिस्थितियाँ, जिनमें यह प्रावधान लागू हो सकता है:

  • शेयर और म्यूचुअल फंड से होने वाला कैपिटल गेन: कई निवेशक इक्विटी शेयर, म्यूचुअल फंड्स या डेरिवेटिव्स से होने वाले कैपिटल गेन को रिपोर्ट नहीं करते। शॉर्टटर्म और लॉन्गटर्म कैपिटल गेन को सही तरीके से रिपोर्ट करना आवश्यक है। अंडररिपोर्टिंग या मिसरिपोर्टिंग से भारी पेनल्टी लग सकती है। 
  • फिक्स्ड डिपॉज़िट्स और ब्याज इनकम: बैंक फिक्स्ड डिपॉज़िट पर ब्याज पर स्रोत पर टैक्स टीडीएस (TDS) काटते हैं, लेकिन निवेशक को अर्जित पूरा ब्याज रिपोर्ट करना होता है। यदि इसे टैक्स रिटर्न में डिक्लेयर नहीं किया गया, तो यह अंडररिपोर्टिंग मानी जाएगी। 
  • रियल एस्टेट लेनदेन: प्रॉपर्टी बेचने से होने वाले लाभ पर कैपिटल गेन टैक्स लगता है। यदि असली बिक्री मूल्य सही से रिपोर्ट नहीं किया गया या झूठे डिडक्शन क्लेम किए गए, तो पेनल्टी लग सकती है। 
  • बिज़नेस और फ्रीलांसिंग इनकम: स्वरोज़गार करने वाले या फ्रीलांसर कई बार टैक्स बचाने के लिए अपनी इनकम को अंडररिपोर्ट करते हैं। यदि पकड़े गए, तो 50% या 200% पेनल्टी लग सकती है, यह इस पर निर्भर करता है कि मामला अंडररिपोर्टिंग है या मिसरिपोर्टिंग। 

मुख्य बिंदु 

धारा 270A अंडररिपोर्टिंग और मिसरिपोर्टिंग पर पेनल्टी लगाती है। 
अंडररिपोर्टिंग पर पेनल्टी टैक्स का 50% और मिसरिपोर्टिंग पर 200% होती है। 
निवेशकों को अपने कैपिटल गेन, ब्याज इनकम, रियल एस्टेट से लाभ और अन्य कमाई को सही ढंग से रिपोर्ट करना चाहिए। 
यदि टैक्सपेयर यह साबित करता है कि अंडररिपोर्टिंग एक ईमानदार गलती थी, तो पेनल्टी नहीं लग सकती। 
सही टैक्स फाइलिंग और दस्तावेज़ीकरण से कानूनी परेशानियों और अनावश्यक पेनल्टी से बचा जा सकता है।