इस लेख में US में नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT), इसके भारतीय टैक्सेशन समानांतर, सेक्शन 32 डेप्रिसिएशन लाभ और कैपिटल गेन तथा रेंटल इनकम पर भारतीय निवेशक के लिए कर-बचत रणनीतियों के बारे में जानेंगे।
सामान्य तौर पर निवेशक रिटर्न पर ध्यान देते हैं, लेकिन कर यह निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं कि वे वास्तव में कितनी कमाई रख पाते हैं। निवेश आय को प्रभावित करने वाला एक ऐसा कर है नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT)। हालांकि यह कर आमतौर पर यूनाइटेड स्टेट्स से संबंधित है, लेकिन इस तरह की कराधान अवधारणाओं की समझ भारतीय निवेशकों को बेहतर वित्तीय निर्णय लेने में मदद कर सकती है।
इस लेख में, हम नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT), इसके प्रभाव और यह भारतीय इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 32 से कैसे संबंधित है, के बारे में जानेंगे। हम सरल और आसानी से समझ में आने वाले तरीके से महत्वपूर्ण पहलुओं को विस्तार से जानेंगे।
नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT) को समझना
नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT) एक अतिरिक्त टैक्स है, जो पूंजीगत लाभ, लाभांश, ब्याज और किराये से प्राप्त आय जैसी निवेश आय पर लागू होता है। यह मुख्य रूप से उच्च आय वर्ग वाले व्यक्तियों को लक्षित करता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि जो लोग निवेश से पर्याप्त आय अर्जित करते हैं, वे कर में उचित हिस्सेदारी का योगदान दें।
हालांकि एनआईआईटी (NIIT) US कर प्रणाली के तहत एक अवधारणा है, लेकिन आयकर अधिनियम के विभिन्न सेक्शन के तहत भारत में भी निवेश से प्राप्त आय पर कर लगाने के प्रावधान मौजूद हैं।
एनआईआईटी (NIIT) US में कैसे काम करता है
एनआईआईटी (NIIT) को समझने के लिए, आइए देखें कि यह अमेरिका में कैसे काम करता है:
- एनआईआईटी(NIIT) उन व्यक्तियों पर8% की दर से लगाया जाता है, जिनकी संशोधित एडजस्टेड ग्रॉस इनकम एमएजीआई (MAGI) एक निश्चित सीमा से अधिक है।
- यहब्याज, डिविडेंड, किराये से प्राप्त आय, कैपिटल गेन और पैसिव बिजनेस इनकम जैसे निवेश आय पर लागू होता है।
- टैक्सवेतन या वेतन पर लागू नहीं होता है, लेकिन केवल अनअर्जित (निवेश-आधारित) आय पर ही लागू होता है।
अब, आइए अपना ध्यान भारत में ले चलते हैं और जानते हैं कि निवेश आय पर यहां टैक्स कैसे लगाया जाता है।
भारत में निवेश आय कराधान
भारत में, निवेश आय पर आयकर अधिनियम, 1961 के विभिन्न प्रावधानों के तहत कर लगाया जाता है। यद्यपि भारत में प्रत्यक्ष रूप से एनआईआईटी (NIIT) के समान कोई कर उपलब्ध नहीं है, लेकिन पूंजीगत लाभ, लाभांश और किराये से प्राप्त आय पर कराधान इसी तरह के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
- कैपिटलगेनटैक्स
जब कोई व्यक्ति स्टॉक, म्यूचुअल फंड या प्रॉपर्टी जैसी परिसंपत्ति बेचता है, तो कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाता है। कर की दर परिसंपति की होल्डिंग अवधि पर निर्भर करती है।
- शॉर्ट-टर्मकैपिटल गेन एसटीसीजी (STCG) : यदि एसेट को कम अवधि में बेचा जाता है (इक्विटी के लिए 12 महीनों से कम), तो उन पर 20% की दर से कर लगाया जाता है।
- लॉन्ग-टर्मकैपिटल गेन एलटीसीजी (LTCG ) : लंबी अवधि वाली एसेट (इक्विटी के लिए 12 महीने से अधिक) के लिए, यदि ₹25 लाख से ज्यादा लाभ हुआ हो तो 12.5% की दर से कर लगाया जाता है।
डेट म्यूचुअल फंड, गोल्ड और रियल एस्टेट के लिए, होल्डिंग अवधि अलग-अलग होती है, और कर की दर भी अलग-अलग होती है।
- डिविडेंडआयकर
स्टॉक और म्यूचुअल फंड से प्राप्त डिविडेंड को निवेशक की कुल कर योग्य आय में जोड़ा जाता है और लागू आयकर स्लैब के अनुसार कर लगाया जाता है। पहले, कंपनियां डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स डीडीटी (DDT) का भुगतान करती थीं, लेकिन अब यह जिम्मेवारी निवेशकों को दे दी गई है।
- किराये से प्राप्त आय का कराधान
प्रॉपर्टी से किराये की आय पर भारत में ₹ 2,50,000 तक की छूट सीमा के साथ कर लगाया जाता है। नगरपालिका टैक्स, मानक कटौती (किराये की आय का 30%) और होम लोन पर ब्याज की कटौती की अनुमति देने के बाद टैक्स की गणना की जाती है। शेष राशि निवेशक की कुल कर योग्य आय में जोड़ दी जाती है।
निवेश कराधान में सेक्शन 32 की भूमिका
भारतीय आयकर अधिनियम के सेक्शन 32 में परिसंपत्ति पर डेप्रिसिएशन के साथ डील की जाती है। यह व्यवसाय और प्रोफेशनल को व्यवसाय के उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जाने वाली परिसंपत्ति पर डेप्रिसिएशन का क्लेम करने की अनुमति देता है। यह कर योग्य आय को कम करता है और विशेष रूप से रियल एस्टेट निवेशक और व्यवसाय के लिए उपयोगी है, जिनके पास महत्वपूर्ण परिसंपत्तियां हैं।
सेक्शन 32 निवेशकों की मदद कैसे करता है?
रेंटल प्रॉपर्टी या व्यवसाय वाले निवेशक अपनी कर योग्य आय को कम करने के लिए सेक्शन 32 के तहत डेप्रिसिएशन का क्लेम कर सकते हैं। यह विशेष रूप से निम्नलिखित के लिए उपयोगी है:
- रियलएस्टेट निवेशक: भवनों पर डेप्रिसिएशन का क्लेम किया जा सकता है, जिससे कर का बोझ कम हो जाता है।
- उपकरणरखने वाले व्यवसाय: व्यवसाय में इस्तेमाल की जाने वाली मशीनरी, फर्नीचर तथा अन्य परिसंपत्ति डेप्रिसिएशन कटौती के लिए पात्र होते हैं।
हालांकि सेक्शन 32 स्टॉक मार्केट निवेशक पर लागू नहीं होता है, लेकिन यह व्यवसाय और प्रॉपर्टी के मालिकों द्वारा निवेश करने के लिए योजना बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
एनआईआईटी (NIIT) बनाम भारतीय कराधान: प्रमुख अंतर
पहलू | एनआईआईटी (NIIT) (US) | निवेश कराधान (भारत) |
प्रयोज्यता | उच्च आय वाले व्यक्तियों पर लागू होता है। | आय स्लैब के आधार पर सभी निवेशकों को लागू होता है |
दर | निवल निवेश आय पर 3.8% | आय के प्रकार के आधार पर अलग-अलग होता है |
आय का प्रकार | कैपिटल गेन, डिविडेंड, ब्याज और किराये से प्राप्त आय | कैपिटल गेन, डिविडेंड, किराये से प्राप्त आय और व्यवसाय से होने वाला आय |
डेप्रिसिएशन लाभ | उपलब्ध नहीं है | सेक्शन 32 के तहत उपलब्ध |
एनआईआईटी (NIIT) निवेश आय पर एक निश्चित प्रतिशत कर है, लेकिन भारत की कराधान प्रणाली में आय स्लैब और निवेश से होनेवाले आय के प्रकार के आधार पर प्रोग्रेसिव दर लागू होता है।
भारतीय निवेशक टैक्स देयता को कैसे कम कर सकते हैं
चूँकि भारत में निवेश से प्राप्त आय पर अलग-अलग दर पर कर लगाया जाता है, इसलिए निवेशक अपने कर बोझ को कम करने के लिए कानूनी रणनीतियों का उपयोग कर सकते हैं।
- टैक्स–एफिशिएंटइंस्ट्रूमेंटमें निवेश करना
- इक्विटी-लिंक्डइन्वेस्टमेंट (जैसे स्टॉक और इक्विटी म्यूचुअल फंड) पर डेट इन्वेस्टमेंट की तुलना में कम दर पर कर लगाया जाता है।
- डेटम्यूचुअल फंड पर इंडेक्सेशन लाभ कर योग्य पूंजी लाभ को कम करने में मदद कर सकते हैं।
- डेप्रिसिएशनकेलिए सेक्शन 32 का उपयोग करके
- यदिआपके पास रेंटल प्रॉपर्टी या व्यवसाय है, तो सेक्शन 32 के तहत डेप्रिसिएशन क्लेम करने से कर योग्य आय कम हो सकती है।
- डेप्रिसिएशनकटौतियां किराये से प्राप्त आय की भरपाई करने में मदद करती हैं, जिससे कुल टैक्स देयता कम हो जाती है।
- कर–मुक्तनिवेश का चुनाव
- पब्लिकप्रोविडेंट फंड पीपीएफ (PPF) और एम्प्लॉई प्रोविडेंट फंड ईपीएफ (EPF) कर-मुक्त रिटर्न प्रदान करते हैं।
- सरकारद्वारा समर्थित संस्थानों द्वारा जारी किए गए कर-मुक्त बॉन्ड ब्याज आय प्रदान करते हैं जिनपर कर नहीं लगता है।
- निवेश को लंबीअवधितक होल्ड करना
- लॉन्ग-टर्मकैपिटल गेन टैक्स शॉर्ट-टर्म टैक्स दरों से कम होता है, इसलिए लंबी अवधि के लिए परिसंपत्ति होल्ड करना लाभदायक हो सकता है।
- रियलएस्टेट, स्टॉक और गोल्ड के लिए, एलटीसीजी (LTCG) सीमा तक प्रतीक्षा करने से कर कम हो सकता है।
निष्कर्ष
चूँकि नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT) US में आमतौर पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक शब्द है, भारतीय निवेशकों को भी यह जानना चाहिए कि उनके निवेश आय पर कर कैसे लगाया जाता है। भारत में कोई प्रत्यक्ष एनआईआईटी (NIIT) नहीं है, लेकिन पूंजीगत लाभ, लाभांश और किराये की आय सभी कराधान के अधीन हैं।
भारतीय आयकर अधिनियम का सेक्शन 32 व्यवसाय के मालिकों और संपत्ति निवेशक को डेप्रिसिएशन लाभ प्रदान करता है, जिससे उन्हें कर योग्य आय को कम करने में मदद मिलती है।
कर देयताओं को कम करने के लिए, निवेशकों को कर-कुशल निवेश, डेप्रिसिएशन लाभ और लॉन्ग-टर्म होल्डिंग पर ध्यान देना चाहिए। इन अवधारणाओं को समझ जाने पर भारतीय निवेशकों को स्मार्ट वित्तीय निर्णय लेने और अपनी मेहनत से कमाए गए पैसे को बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
FAQs
क्या भारत में नेट इन्वेस्टमेंट इनकम टैक्स एनआईआईटी (NIIT) लागू है?
नहीं, भारत में एनआईआईटी (NIIT) जैसा कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन निवेश से प्राप्त आय जैसे कैपिटल गेन, डिविडेंड और किराये से प्राप्त आय पर आयकर अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत टैक्स लगाया जाता है।
आयकर अधिनियम का सेक्शन 32 क्या है?
सेक्शन 32 व्यवसाय और निवेशक को भवन, मशीनरी और उपकरण जैसी परिसंपत्ति पर डेप्रिसिएशन का क्लेम करने की अनुमति देता है, जिससे कर योग्य आय कम हो जाती है।
भारतीय निवेशक निवेश से प्राप्त आय पर कर को कैसे कम कर सकते हैं?
भारतीय निवेशक कर-कुशल साधनों में निवेश करके, सेक्शन 32 के तहत डेप्रिसिएशन का क्लेम करके और कम कर दरों का लाभ उठाने के लिए लंबी अवधि के लिए निवेश करके कर को कम कर सकते हैं।
क्या भारत में डिविडेंड से प्राप्त आय कर योग्य है?
हाँ, डिविडेंड को किसी व्यक्ति की कुल आय में जोड़ा जाता है और आयकर स्लैब के अनुसार उनपर कर लगाया जाता है।