Exploring the differences between OFS and IPO!

Podcast Duration: 5:35
ओ एफ़ एस और आई पी ओ के बीच का फ़र्क जानते है! नमस्ते दोस्तों ! आपका स्वागत है एंजेल ब्रूकिंग के इस पॉडकास्ट पर। दोस्तों ओ एफ एस और आई पी ओ लगभग एक जैसे हैं पर दोनों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं। आज हम इस अंतर की चर्चा करेंगे और दोनों की समानताएँ भी देखेंगे। आई पी ओ का पूरा मतलब है इनिश्यल पब्लिक ओफ़ेरिंग, जबकि ओ एफ एस को कहते हैं ऑफर फॉर सेल। ऑफर फॉर सेल दरअसल एक तरह का आई पी ओ है, दोनों मामलों में नए शेयर को बाज़ार में लोगों के खरीदने के लिए पेश किया जाता है। दोनों तरह की कंपनियाँ जो आई पी ओ की जगह ओ एफ एस को चुनती हैं में भी काफी अंतर हो सकता है। इनको जनता के समक्ष पेश करने के कारण भी सर्वथा विभिन्न हो सकते हैं। इनिश्यल पब्लिक ऑफरिंग में जैसा की नाम से पता चलता है - आप एक ऐसी कंपनी को देख रहे हैं जो शेयर बाज़ार में कभी भी सूचित नहीं की गयी। पूर्वकालिक अनुमान होने का कोई सवाल ही नहीं क्योंकि कोई भी पूर्व तथ्य नहीं होते। ऑफर फॉर सेल कंपनी कुछ समय से व्यापार कर रही है - सटीक शब्दों में इसके अंशधारी कमाई से खुश हैं और अन्य अवसरों की तलाश में हैं। ओ एफ एस में एक न्यूनतम निर्धारित निवेश की आवश्यकता होती है। इसलिए ओ एफ एस की सेबी ने 2012 में शुरुआत की। कंपनी को सूची में रहने बने रहने के लिए 25% की हिस्सेदारी होना आवश्यक है। ओ एफ एस के लिए जाने वाले कंपनी के स्टॉक मूल्य सामान्यत: उपलप्ब्ध होते हैं शेयर बाज़ार में इन कंपनियों के कुछ शेयर पहले से होते हैं। बर्गर किंग ऐसी ही एक कंपनी है जिसने 2020 में आई पी ओ निकाला। निवेशकों में आई पी ओ के लिए काफी उत्साह रेहता है क्यूंकी उनको लगता है की उनको शेर्स कम दाम में मिल रहे हैं, और यह सत्य भी है पर कुछ भी निर्धारित नहीं है क्योंकि बाज़ार कैसे व्यवहार करेगा मूल्य निवेशक के लगाए गए पैसों से ऊपर जाएगा या नहीं कहा नहीं जा सकता। यह बात आई पी ओ और ओ एफ एस दोनों के लिए लागू होता है। लेकिन ओ एफ एस में निवेशक को बेहतर संकेत मिलता है क्योंकि वह पहले स्टॉक के व्यवहार का अधध्यन कर सकते हैं। आई पी ओ निकालने वाली कंपनियाँ किसी भी आकार की हो सकती हैं, पर ओ एफ एस के लिए कंपनी को बड़ा होना चाहिए और पूंजी के लिहाज पिछले चार तिमाही में सबसे बड़ी 200 कंपनियों में प्रमाणित होना होगा। बाज़ार पूंजी जनता में बांटे गए कुल शेयर की संख्या को बताती है। बड़ी पूंजी गत कंपनियों को बाज़ार विशेषज्ञ की नज़र में अधिकतर कम खतरे वाला माना जाता है। आई पी ओ और ओ एफ एस के मूल्यांकन में भी अलग आधार होता है, जैसा की आपने मेरी अभी तक बताई गयी बातों से पता लगा ही लिया होगा- बाज़ार में दीर्घकालिक निवेशकों को पहले कंपनी की आर्थिक सेहत के बारे में अच्छे से जान लेना चाहिए। यह चीज़ आई पी ओ में और भी ज़रूरी हो जाती है क्योंकि उसमें कंपनी का कोई भी प्राचीन विवरण उपलब्ध नहीं होता केवल एक बही खाता ही होता है। आई पी ओ और ओ एफ एस में आवेदन प्रक्रिया भी एक जैसी ही होती है, खुदरा निवेशकों के आवेदनों को बिड्स कहा जाता है, जिनमें बीड का एक निर्धारित मूल्य या कट-ऑफ मूल्य निर्धारित करना होता है। यह मांग और वितरण के सिद्धांतों हिकेसाब से तय किया जाता है। लेकिन पूरी प्रक्रिया के मामले में ओ एफ एस निवेशकों की पहली पसंद है , क्योंकि इसमें आबंटन निवेश के अगले ही दिन प्राप्त हो जाता है और यदि किसी कारण से आबंटन नहीं हो पाता तो निवेशकों को अगले दिन ही अपने पैसे वापिस मिल जाते हैं। आपको सुनने को मिलता होगा - अरे भाई ओ एफ एस में पैसे लगाओ, प्रक्रिया काफी पारदर्शी है। यह इसी धारणा पर टिका है कि ज्यादा से ज्यादा जानकारी सार्वजनिक कि जाती है और सामूहिक मूल्य और और सूचक मूल्य सूचित किए जाने के दिन जल्दी- जल्दी बदले जाते हैं। जबकि आई पी ओ में सिर्फ सूचीपत्र ही उपलब्ध होता है, उसी से ही निर्णय लेना होता है। ओ एफ एस कि जल्द प्रक्रिया और आबंटन में लगने वाला समय जैसे की आई पी ओ में 3-4 दिन और ओ एफ एस में 1 दिन की वजह से निवेशकों की पसंद है। अब खर्च के बारे में चर्चा करते हैं आई पी ओ में कोई खर्चा नहीं होता, जबकि ऑफर फॉर सेल में दलाली और निवेश कर भी देना पड़ता है। सबसे बड़ी बात है छूट, जी हाँ ओ एफ एस में बेचने वाला खुदरा विक्रय करने वालों को छूट दे सकता है। लेकिन इससे ऐसे ही पारदर्शी प्रक्रिया नहीं कहा जाता, क्योंकि छूट का पूरा विवरण शेयर बाज़ार को देना होता है। समय शेयर बाज़ार का सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु है, इसके बारे में भी बात कर लेनी चाहिए। आई पी ओ में बाज़ार समय के बाद भी निवेश करने की छूट होती है। ओ एफ एस में बिड निवेश के दिन ही करना होता है, खुदरा निवेशकों के लिए आई पी ओ और ओ एफ एस में निवेश की अधिकतम सीमा 2 लाख रुपये है। चाहे आप आई पी ओ में या ओ एफ एस में निवेश करें , किसी पुराने या म्यूच्यल फ़ंड में पर आपने जानकारी जुटाकर अपना पहला कदम सही लिया है। कोई भी निवेश करने से पहले पूरी जानकारी जुटा लो। शेयर बाज़ार के खतरों को कम करने के तारीकों को अपना लो। डरो मत सतर्क रहो- हमेशा याद रखो किसी भी आयु या पेशे का व्यक्ति निवेश कर सकते हैं। निवेश बाज़ार जोखिमों के आधीन हैं, सभी दस्तावेज़ों को ध्यान से पढ़ें।