हाई दोस्तों, एंजेल वन के पॉडकास्ट में आपका स्वागत है।दोस्तों स्टॉक मार्केट में कई लोग स्टॉक्स खरीदते हैं और बेचते हैं। जब आप किसी स्टॉक को खरीदते हैं या बेचते हैं, तो ये शेयर्स मूल रूप से आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं - या फिर बिकने के बाद आपके डीमैट अकाउंट में पैसे क्रेडिट हो जाते हैं। लेकिन स्टॉक मार्किट में केवल यही नहीं होता है। शेयर मार्केट में एक पूरी दुनिया है जो स्टॉक या कमोडिटी की कीमतों की मूवमेंट को पहचानने और उन्हें बनाने पर काम करती है - अभी नहीं, बल्कि आने वाले दिन में। और यह सारे काम फ्यूचर्स और ऑप्शंस मार्केट में होते हैं। अच्छा लगता है, है ना? मैं अपने दोस्त अक्षय के साथ फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग के बीच कुछ मतभेदों पर चर्चा कर रही थी, लेकिन हिमांशु को ये बातें ठीक से समझ ही नहीं आ रही थी। क्योंकि वह फ्यूचर्स और ऑप्शंस के कॉन्सेप्ट्स के बीच कंफ्यूज था। आप कहीं हिमांशु की तरह कंफ्यूज तो नहीं हैं? चलो एक बार ये रिव्यु कर ही लेते हैं। बेसीकली, फ्यूचर्स और ऑप्शंस डोनो कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं। लेकिन एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के ज़रीये आप कोई स्टॉक या कमोडिटी - जैसे XYZ कॉर्पोरेशन या फ़िर गोल्ड या क्रूड ऑयल खरीद या बेच सकते हैं, भविष्य में एक निश्चित कीमत पर। तो अगर मैंने प्रेडिक्ट किया कि एक्सवाईजेड(XYZ) स्टॉक की कीमत 30 दिनों में नीचे जाने वाली है, तो मैं इस फोरकास्ट से प्रॉफिट करने के लिए एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदूंगा, जिसके माध्यम से मैं 30 दिनों में कम कीमत पर मार्केट से स्टॉक खरीद पाऊंगा, और इसे मेरे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करके अधिक कीमत पर बेच दूंगा। नोट करिए की फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट से आप बाहर नहीं निकल सकते - अगर आपकी अंडरलाइंग सिक्योरिटी अपनी पूरी वैल्यू खो देती है, तो आपको 100% लॉस भी हो सकता है। इसलिये, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के साथ डील करते समय सावधान रहने की जरूरत है। लेकिन ऑप्शन्स अलग तरह से काम करते हैं। मूल रूप से ऑप्शन्स बस यही हैं - बाद की तारीख में खरीदने या बेचने का ऑप्शन। ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के साथ भी एक स्ट्राइक प्राइस इंडीकेट होती है। अगर आपने कॉल ऑप्शन लिया है, तो आप मूल रूप से एक फिक्स्ड प्राइस पर फ्यूचर में कोई स्टॉक खरीद सकते हैं। और पुट ऑप्शंस आपको भविष्य में एक फिक्स्ड प्राइस पर कमोडिटी बेचने की अनुमति देते हैं। सरल है ना लगता है?अब आप ये तो जाने ही होंगे के ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स, दोनो खरीदने के लिए ही आपको प्रीमियम देना पड़ता है। तो अगर आपके कॉन्ट्रैक्ट की अंडरलाइंग सिक्योरिटी आपके अपेक्षित दिशा में चलती है, लेकिन आपकी प्रीमियम वैल्यू से कम चलती है, तो हो सकता है आप अभी भी कोई पैसा नहीं कमाएं, या एक छोटा नुकसान हो। इसलिये, आप्शन और फ्यूचर्स ट्रेडिंग - दोनों ही ठोस टेकिन्कल एनालिसिस और फैक्ट्स पर आधारित होने चाहिए न कि किसी अनुमान या अटकलों पर। वास्तव में, मेरे दोस्त अक्षय ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग में एंटर करने के लिए ही मुझसे सलाह मांगी थी - और मैंने उससे भी यही कहा था। तो अब देखते हैं फ्यूचर्स और ऑप्शंस में कुछ महत्वपूर्ण अंतर।नंबर 1 - फ्यूचर्स और ऑप्शंस में मुख्य अंतर है एक्शन लेने का ऑब्लिगेशन। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के केस में एक निश्चित तारीख पर आपको उस कॉन्ट्रैक्ट के टर्म्स एक्जीक्यूट करने ही होंगे, चाहे ट्रेड आपके लिए प्रॉफिटेबल हो, या फिर इसमें एक बड़ा लॉस हो। दूसरी ओर, आप्शन में आपको ट्रेड एक्जीक्यूट करने का कोई ऑब्लिगेशन नहीं होता है।नंबर 2 - फ्यूचर्स और ऑप्शंस आपके पोर्टफोलियो या पोजीशन के लिए बहुत अलग तरह का रिस्क लेकर आते हैं। जैसा कि पहले बताया गया है, फ्यूचर्स में डाउनसाइड रिस्क अनिवार्य रूप से आपकी ट्रेड राशि का 100 परसेंट भी हो सकता है। जिसका मतलब यह है, कि फ्यूचर ट्रेडिंग में स्टॉप लॉस के बिना ट्रेड करने से आप कितना भी पैसा खो सकते हैं। ऑप्शंस के मामले में आप उतना ही खोएंगे जितना प्रीमियम आप उन ऑप्शंस को खरीदने के लिए देते हैं।दोस्तों ये पॉइंट आपको क्लियर हुआ क्या? क्योंकि रिस्क का कॉन्सेप्ट एफएंडओ ट्रेडिंग में बहुत जरूरी है। तो चलिये देखते हैं अगला अंतर। नंबर 3 - फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की वैल्यू एक्सपायरी डेट के करीब आते हुए खत्म नहीं होती है - यानि की एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जिसकी एक्सपायरी डेट आज से दो हफ्ते दूर है, इसकी एक्सपायरी डेट के करीब होने के कारण इसकी वैल्यू नहीं खोएगी। लेकिन ऑप्शंस की वैल्यू एक्सपायरी डेट के पास पहुँचते हुए कम होती जाती है। ये इसलिए, क्योंकि प्रेजेंट टाइम और एक्सपायरी डेट के बीच अंडरलाइंग सिक्योरिटी की वैल्यू मूव होने के लिए बची हुई समय सीमा कम होती जाती है। नंबर 4 - फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स मूल रूप से मार्जिन ट्रेड्स को दर्शाते हैं। क्योंकि अगर अंडरलाइंग सिक्योरिटी की प्राइज आपके अपेक्षित दिशा के विपरीत मूव करनी पड़ती है, तो आपको अंत में वो मार्जिन अपने ब्रोकर को चुकाना होता है। लेकिन अगर आपका एनालिसिस सही था, और सिक्योरिटी प्राइज उस दिशा में चलती है जिसकी आपने उम्मीद की थी, तो वो पैसे आपके खाते में क्रेडिट हो जाते हैं। लेकिन ऑप्शंस को काम में लेकर आप एक सस्ते दाम के लिए सट्टा कर सकते हो। जिसका मतलब यह, कि रिस्क और रिवॉर्ड ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स में सिमेट्रिक नहीं होते।
Exploring the Differences between futures and option trading | Hindi
हाई दोस्तों, एंजेल वन के पॉडकास्ट में आपका स्वागत है।दोस्तों स्टॉक मार्केट में कई लोग स्टॉक्स खरीदते हैं और बेचते हैं। जब आप किसी स्टॉक को खरीदते हैं या बेचते हैं, तो ये शेयर्स मूल रूप से आपके डीमैट अकाउंट में क्रेडिट हो जाते हैं - या फिर बिकने के बाद आपके डीमैट अकाउंट में पैसे क्रेडिट हो जाते हैं। लेकिन स्टॉक मार्किट में केवल यही नहीं होता है। शेयर मार्केट में एक पूरी दुनिया है जो स्टॉक या कमोडिटी की कीमतों की मूवमेंट को पहचानने और उन्हें बनाने पर काम करती है - अभी नहीं, बल्कि आने वाले दिन में। और यह सारे काम फ्यूचर्स और ऑप्शंस मार्केट में होते हैं। अच्छा लगता है, है ना? मैं अपने दोस्त अक्षय के साथ फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग के बीच कुछ मतभेदों पर चर्चा कर रही थी, लेकिन हिमांशु को ये बातें ठीक से समझ ही नहीं आ रही थी। क्योंकि वह फ्यूचर्स और ऑप्शंस के कॉन्सेप्ट्स के बीच कंफ्यूज था। आप कहीं हिमांशु की तरह कंफ्यूज तो नहीं हैं? चलो एक बार ये रिव्यु कर ही लेते हैं। बेसीकली, फ्यूचर्स और ऑप्शंस डोनो कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं। लेकिन एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के ज़रीये आप कोई स्टॉक या कमोडिटी - जैसे XYZ कॉर्पोरेशन या फ़िर गोल्ड या क्रूड ऑयल खरीद या बेच सकते हैं, भविष्य में एक निश्चित कीमत पर। तो अगर मैंने प्रेडिक्ट किया कि एक्सवाईजेड(XYZ) स्टॉक की कीमत 30 दिनों में नीचे जाने वाली है, तो मैं इस फोरकास्ट से प्रॉफिट करने के लिए एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट खरीदूंगा, जिसके माध्यम से मैं 30 दिनों में कम कीमत पर मार्केट से स्टॉक खरीद पाऊंगा, और इसे मेरे फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट का उपयोग करके अधिक कीमत पर बेच दूंगा। नोट करिए की फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट से आप बाहर नहीं निकल सकते - अगर आपकी अंडरलाइंग सिक्योरिटी अपनी पूरी वैल्यू खो देती है, तो आपको 100% लॉस भी हो सकता है। इसलिये, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट के साथ डील करते समय सावधान रहने की जरूरत है। लेकिन ऑप्शन्स अलग तरह से काम करते हैं। मूल रूप से ऑप्शन्स बस यही हैं - बाद की तारीख में खरीदने या बेचने का ऑप्शन। ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के साथ भी एक स्ट्राइक प्राइस इंडीकेट होती है। अगर आपने कॉल ऑप्शन लिया है, तो आप मूल रूप से एक फिक्स्ड प्राइस पर फ्यूचर में कोई स्टॉक खरीद सकते हैं। और पुट ऑप्शंस आपको भविष्य में एक फिक्स्ड प्राइस पर कमोडिटी बेचने की अनुमति देते हैं। सरल है ना लगता है?अब आप ये तो जाने ही होंगे के ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स, दोनो खरीदने के लिए ही आपको प्रीमियम देना पड़ता है। तो अगर आपके कॉन्ट्रैक्ट की अंडरलाइंग सिक्योरिटी आपके अपेक्षित दिशा में चलती है, लेकिन आपकी प्रीमियम वैल्यू से कम चलती है, तो हो सकता है आप अभी भी कोई पैसा नहीं कमाएं, या एक छोटा नुकसान हो। इसलिये, आप्शन और फ्यूचर्स ट्रेडिंग - दोनों ही ठोस टेकिन्कल एनालिसिस और फैक्ट्स पर आधारित होने चाहिए न कि किसी अनुमान या अटकलों पर। वास्तव में, मेरे दोस्त अक्षय ने फ्यूचर्स और ऑप्शंस ट्रेडिंग में एंटर करने के लिए ही मुझसे सलाह मांगी थी - और मैंने उससे भी यही कहा था। तो अब देखते हैं फ्यूचर्स और ऑप्शंस में कुछ महत्वपूर्ण अंतर।नंबर 1 - फ्यूचर्स और ऑप्शंस में मुख्य अंतर है एक्शन लेने का ऑब्लिगेशन। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के केस में एक निश्चित तारीख पर आपको उस कॉन्ट्रैक्ट के टर्म्स एक्जीक्यूट करने ही होंगे, चाहे ट्रेड आपके लिए प्रॉफिटेबल हो, या फिर इसमें एक बड़ा लॉस हो। दूसरी ओर, आप्शन में आपको ट्रेड एक्जीक्यूट करने का कोई ऑब्लिगेशन नहीं होता है।नंबर 2 - फ्यूचर्स और ऑप्शंस आपके पोर्टफोलियो या पोजीशन के लिए बहुत अलग तरह का रिस्क लेकर आते हैं। जैसा कि पहले बताया गया है, फ्यूचर्स में डाउनसाइड रिस्क अनिवार्य रूप से आपकी ट्रेड राशि का 100 परसेंट भी हो सकता है। जिसका मतलब यह है, कि फ्यूचर ट्रेडिंग में स्टॉप लॉस के बिना ट्रेड करने से आप कितना भी पैसा खो सकते हैं। ऑप्शंस के मामले में आप उतना ही खोएंगे जितना प्रीमियम आप उन ऑप्शंस को खरीदने के लिए देते हैं।दोस्तों ये पॉइंट आपको क्लियर हुआ क्या? क्योंकि रिस्क का कॉन्सेप्ट एफएंडओ ट्रेडिंग में बहुत जरूरी है। तो चलिये देखते हैं अगला अंतर। नंबर 3 - फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स की वैल्यू एक्सपायरी डेट के करीब आते हुए खत्म नहीं होती है - यानि की एक फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट जिसकी एक्सपायरी डेट आज से दो हफ्ते दूर है, इसकी एक्सपायरी डेट के करीब होने के कारण इसकी वैल्यू नहीं खोएगी। लेकिन ऑप्शंस की वैल्यू एक्सपायरी डेट के पास पहुँचते हुए कम होती जाती है। ये इसलिए, क्योंकि प्रेजेंट टाइम और एक्सपायरी डेट के बीच अंडरलाइंग सिक्योरिटी की वैल्यू मूव होने के लिए बची हुई समय सीमा कम होती जाती है। नंबर 4 - फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स मूल रूप से मार्जिन ट्रेड्स को दर्शाते हैं। क्योंकि अगर अंडरलाइंग सिक्योरिटी की प्राइज आपके अपेक्षित दिशा के विपरीत मूव करनी पड़ती है, तो आपको अंत में वो मार्जिन अपने ब्रोकर को चुकाना होता है। लेकिन अगर आपका एनालिसिस सही था, और सिक्योरिटी प्राइज उस दिशा में चलती है जिसकी आपने उम्मीद की थी, तो वो पैसे आपके खाते में क्रेडिट हो जाते हैं। लेकिन ऑप्शंस को काम में लेकर आप एक सस्ते दाम के लिए सट्टा कर सकते हो। जिसका मतलब यह, कि रिस्क और रिवॉर्ड ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स में सिमेट्रिक नहीं होते।