वायदा और विकल्प के बीच अंतर

भारत में ईक्विटीज़ से बड़ा मार्केट है ईक्विटी डेरिवेटिव मार्केट भारत में डेरिवेटिव्स में मुख्य रूप से दो प्रोडक्ट्स हैं – ऑप्शन्स औऱ फ्यूचर्स फ्यूचर्स और ऑप्शन्स के बीच अंतर है कि फ्यूचर्स लीनियर हैं जब कि ऑफ्शन्स नॉन-लीनियर हैं। डेरिवेटिव्स का अर्थ है कि इनकी खुद की कोई वैल्यू नहीं होती है लेकिन उनकी वैल्यू अंडरलाइंग ऐसेट से व्युपत्रित होती है। उदाहरण के लिए, रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ पर ऑप्शन्स और फ्यूचर्स रिलाएंस इन्डस्ट्रीज़ के स्टॉक के दाम पर निर्भर है और उन्हीं से उनकी वैल्यू निर्दिष्ट होती है। ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की ट्रेडिंग भारतीय ईक्विटी मार्केट के महत्वपूर्ण भाग हैं। आइए हम ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के बीच अंतर को समझें और जानें कि किस प्रकार इक्विटी फ्यूचर्स और ऑप्शन्स मार्केट समग्र इक्विटी मार्केट के अभिन्न अंग हैं।

फ्यूचर्स और ऑप्शन्स क्या हैं?

फ्यूचर्स एक अंडर लाइंग स्टॉक (या अन्य ऐसेट) को एक पूर्वनिर्धारित मूल्य पर और पूर्वनिर्धारित अवधि के पूरे होने पर खरीदने और बेचने का अधिकार और बाध्यता है। ऑप्शन्स एक अधिकार है जिसमें ईक्विटी या इन्डेक्स खरीदने और बेचने की बाध्यता नहीं होती। एक कॉल ऑप्शन खरीदने का अधिकार होता है जबकि एक पुट ऑप्शन बेचने का अधिकार होता है।

तो, मुझे ऑप्शन्स और फ्यूचर्स से किस तरह लाभा होगा?

चलिए, पहले फ्यूचर्स पर एक नज़र डालें। मान लीजिए कि आप टाटा मोटर्स के 1500 शेयर रु. 400 के दाम पर खरीदना चाहते हैं। इसके लिए आपको रु. 6 लाख निवेश करने होंगे। वैकल्पिक रूप से, आप टाटा मोटर्स का 1 लॉट (जिसमें 1500 शेयर होते हैं) भी खरीद सकते हैं। इससे फायदा है कि जब आप फ्यूचर्स खरीदते हैं, तो आप केवल मार्जिन का भुगतान करते हैं जो कि (मान लीजिए) पूरी कीमत का लगभग 20% है। इसका मतलब है कि आपका लाभ ईक्विटीज़ में निवेश करने की तुलना में पाँच गुना होगा। लेकिन इसमें नुकसान भी पाँछ गुना हो सकता है और लेवरेज्ड ट्रेड का यही जोखिम है।

ऑप्शन बिना बाध्यता वाला अधिकार है। तो, आप टाटा मोटर्स का 400 कॉल ऑप्शन रु. 10 में खरीद सकते हैं। क्योंकि लॉट साइज़ 1500 शेयर है, तो आपका अधिकतम नुकसान केवल रु. 15000 होगा। नकारात्मक पक्ष देखें तो भले ही टाटा मोटर्स के शेयर का दाम रु.300 हो जाए, आपका नुकसान केवल रु.15,000 होगा। सकारात्मक पक्ष देखें तो, शेयर का दाम रु. 410 से ज्यादा होने पर, आपका लाभ असीमित होगा।

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड कैसे किया जाए?

ऑपशन्स और फ्यूचर्स में ट्रेड 1 महीने, 2 महीने और 3 महीने के लिए अनुबंध के माध्यम से किया जाता है। सभी एफ ऐंड ओ अनुबंधों की अवधि महीने के अंतिम बृहस्पतिवार को खत्म हो जाती है। फ्यूचर्स फ्यूचर के दाम पर ट्रेड किए जाएंगे जो कि आमतौर पर टाइम वैल्यू के कारण स्पॉट प्राइस से अधिक दाम होता है। एक कॉन्ट्रैकट के लिए एक स्टॉक की केवल एक फ्यूचर प्राइस होगी। जैसे कि जनवरी 2018 को कोई व्यक्ति टाटा मोटर्स के जनवरी फ्यूचर्स, फरवरी फ्यूचर्स और मार्च फ्यूचर्स में ट्रेड कर सकता है।  ऑप्शनस में ट्रेड करना थोड़ा जटिल होता है क्योंकि आप वास्तव में प्रीमियम ट्रेड करते हैं। इसलिए, एक ही स्टॉक के कॉल ऑप्शन्स और पुट ऑप्शन्स के लिए भिन्न-भिन्न स्ट्राइक्स होंगें। टाटा मोटर्स के मामले में, 400 कॉल का कॉल ऑप्शन रु.10 होगा और जैसे जैसे स्ट्राइक बढ़ेगा, इन ऑप्शन्स का दाम धीरे धीरे कम होता जाएगा।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की कुछ मूल बातें

फ्यूचर्स मार्जिन के साथ इक्विटी ट्रेड करने का लाभ देते हैं। चाहें आप फ्यूचर्स खरीद रहे हों या बेच रहे हों, इसके साथ जुड़े जोखिम भी असीमित हैं। जहाँ ऑप्शन्स की बात आती हैं, खरीदार अपना नुकसान भुगतान किए गए प्रीमियम तक सीमित कर सकता है। क्योंकि ऑप्शन्स नॉन-लीनियर होते हैं, इसलिए वो जटिल ऑप्शन्स और फ्यूचर्स कार्य-योजनाओं द्वारा ज्यादा नियंत्रित किए जा सकते हैं।  जब आप फ्यूचर्स खरीदते या बेचते हैं तो आपको अग्रिम रूप से मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। जब आप ऑप्शन बेचते हैं तो आपको इनिशियल मार्जिन और मार्क-टू-मार्केट (एमटीएम) मार्जिन्स का भुगतान करना पड़ता है। लेकिन जब आप ऑप्शन्स खरीदते हैं तो आपको केवल प्रीमियम मार्जिन का ही भुगतान करना पड़ता है। बस यही है!

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स के अंतर को समझना।

जहाँ फ्यूचर्स की बात आती है तो उसका सिद्धांत बहुत सरल है। अगर आप स्टॉक के दाम के बढ़ने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक पर फ्यूचर्स खरीदते हैं और अगर आप स्टॉक के दाम घटने की अपेक्षा करते हैं तो आप स्टॉक या इन्डेक्स के फ्यूचर्स बेचते हैं। ऑप्शन्स की चार संभावनाएं हो सकती हैं। चलिए प्रत्येक प्रकार को ऑप्शन्स और फ्यूचर्स ट्रेडिंग के उदाहरण से समझें। मान लीजिए कि इन्फोसिस के शेयर का वर्तमान दाम रु. 1000 है।  आइए समझते हैं कि विभिन्न ट्रेडर्स अपने दृष्टिकोण के आधार पर विभिन्न प्रकार के ऑप्शन्स को कैसे प्रयोग करेंगे।

1. निवेशक A अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 2 महीनों में रु.1150 तक जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 1050 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का कॉल ऑप्शन खरीदे। वो काफी कम प्रीमियम देकर अपसाइड में भाग ले सकता है।

2. निवेशक B  अपेक्षा करता है कि इन्फोसिस का दाम अगले 1 महीने में रु.900 तक गिर जाएगा। उसके लिए सबसे सही कार्य-नीति होगी 980 के स्ट्राइक पर इन्फोसिस का पुट ऑप्शन खरीदे। वो आसानी से शेयर के डाउनसाइड मूवमेंट में भाग लेकर लाभ कमा सकता है जब उसके द्वारा भरे गए प्रीमियम के दाम की पूर्ति हो जाए।

3. निवेशक C इन्फोसिस के दाम कम होने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन, उसको पक्का विश्वास है कि ग्लोबल मार्केट के प्रेशर के कारण, इन्फोसिस का दाम 1080 पार नहीं करेगा। वह इन्फोसिस का 1100 कॉल ऑप्शन बेच सकता है और सम्पूर्ण प्रीमियम समेट सकता है।

4. निवेशक D इन्फोसिस के दाम के चढ़ने के बारे में निश्चित नहीं है। लेकिन उसको पक्का विश्वास है कि इन्फोसिस में हाल में हुए प्रबंधन परिवर्तनों के कारण स्टॉक का दाम रु. 920 से कम नहीं होगा। उसके लिए एक बेहतर कार्य नीति होगी अगर वो 900 पुट ऑप्शन बेच दे और सारा प्रीमियम ले जाए।

ऑप्शन्स और फ्यूचर्स की अवधारणा अलग है लेकिन आंतरिक रूप से वे एक ही हैं क्योंकि दोनों पूर्ण राशि का निवेश किए बिना स्टॉक या इंडेक्स से लाभ कमाने की कोशिश करते हैं!