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आईपीओ (IPO) बाजार का परिचय
4.6
19 मिनट पढ़े


अब जब आप इस बारे में जान गए हैं कि एक IPO क्या है और कंपनियां फंडिंग के इस विकल्प क्यों चुनती हैं, तो यह IPO बाज़ार को विस्तार से जानने का समय है, विशेष रूप से शेयर बाज़ार में IPO की प्रक्रिया और इसमें शामिल पक्षों के बारे में जानने का।
IP प्रक्रिया को समझना और उसकी विशेषताओं को जानना आसान बनाने के लिए हम सबसे पहले विभिन्न संस्थाओं पर एक नज़र डालेंगे जो आमतौर पर IPO में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसा करने के बाद, हम इस प्रक्रिया को समझने की ओर बढ़ेंगे और ये भी जानने की कोशिश करेंगे कि इस प्रकिया के पर्दे के पीछे क्या होता है।
IPO प्रक्रिया में शामिल पक्ष
एक IPO को पूरा करना अपने आप में एक उपलब्धि है। एक कंपनी के लिए यह सब अपने दम पर करना असंभव है। इसलिए, जो कंपनी अपने शेयर जारी करना चाहती है, वो IPO प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए कई पेशेवरों की मदद लेती है। यहाँ कुछ सबसे महत्वपूर्ण पार्टियों पर एक नज़र डालते है जो शेयर बाजार के IPO में शामिल होते हैं।
लीड मैनेजर
इसे ‘बुक रनिंग लीड मैनेजर’ के रूप में भी जाना जाता है, ये अनिवार्य रूप से वो वित्तीय संस्थान हैं जो पूरी IPO प्रक्रिया के दौरान एक कंपनी की मदद करते हैं। IPO के साइज़ के आधार पर कंपनियां कभी-कभी एक से अधिक लीड मैनेजर नियुक्त करती हैं।
बुक रनिंग लीड मैनेजर, IPO प्रक्रिया के ढांचे को तैयार करने, कंपनी की फंड आवश्यकताओं का आकलन करने, इश्यू की मात्रा का सुझाव देने, नियामक कागज़ी कार्रवाई के दस्तावेज़ तैयार करने, उन्हें सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों से अप्रूव कराने और विभिन्न अन्य दलों के साथ सामनजस्य बिठाने का काम करती है।
IPO इश्यू से संबंधित अधिकांश लीड मैनेजर अंडरराइटिंग सेवाएं भी प्रदान करते हैं। अंडरराइटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अंडरराइटर, इस मामले में लीड मैनेजर, IPO के बाद शेयर बचने की स्थिति में उन्हें खरीदने की गारंटी देता है।
कानूनी सलाहकार/ लीगल काउंसेल
कानूनी सलाहकार निश्चित रूप से ऐसे फर्म हैं जो IPO जारी करने वाली कंपनी को IPO से जुड़े कानूनी मामलों से संबंधित सलाह देते हैं। वे यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं कि कंपनी सभी नियामक और कॉर्पोरेट प्रशासन प्रक्रियाओं के बारे में जानती हो और उनका पालन करती हो।
कानूनी सलाहकार IPO की ड्यू डिलिजेंस प्रक्रिया में भी मदद करते हैं और कंपनी को सभी कठिन पोस्ट-लिस्टिंग प्रक्रियाओं के लिए तैयार करने का काम करते हैं। आमतौर पर, IPO के लिए कानूनी सलाहकार, लीड मैनेजर द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
लेखा परीक्षक/ ऑडिटर
ऑडिटर कंपनी द्वारा नियुक्त किए गए चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिनका काम कंपनी की फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स का नियोजन, समीक्षा और उनका लेखा परीक्षण करना है। वे IPO में दिए गए फॉर्मेट में कंपनी की फाइनेंशियल स्टेटमेंट तैयार करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
इसके अलावा, वे कंपनी के शेयरों की मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने में भी सहायता करते हैं, जिसे IPO के प्राइस बैंड को स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाता है। ऑडिटर IPO में दी गई वित्तीय और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी को वेरिफाय करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि दी गई सभी जानकारी कंपनी की स्थिति का सही और सटीक प्रतिनिधित्व करती है।
रजिस्ट्रार
रजिस्ट्रार वो इकाइयाँ हैं जो IPO के लिए आए जनता के आवेदन पत्रों को प्रोसेस करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। चूंकि ये संस्थाएं सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों के साथ पंजीकृत होती हैं, इसलिए वे सेबी द्वारा जारी किए गए निर्धारित दिशा निर्देशों के आधार पर संबंधित आवेदकों को शेयर आवंटित करने के लिए अधिकृत हैं।
सफल आवेदकों के डीमैट खातों में आवंटित शेयरों को ट्रांसफर करने के अलावा, वे असफल IPO आवेदकों को रिफंड जारी करने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं।
IPO ग्रेडिंग एजेंसी
IPO ग्रेडिंग एजेंसी एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (CRA) है जो SEBI के साथ पंजीकृत होती है। ये एजेंसियाँ किसी कंपनी के IPO का आकलन करती हैं और उस के अनुसार IPO को ग्रेड देती हैं। एजेंसी द्वारा दिए गए ग्रेड आमतौर पर पांच-बिंदुओं पर निर्धारित होते किए जाते हैं। उच्च ग्रेड का मतलब होता है कि कंपनी की वित्तीय स्थिति और मौलिक स्थिति काफी मज़बूत है। हालांकि, एक IPO की ग्रेडिंग अनिवार्य नहीं होती है और यह पूरी तरह से वैकल्पिक है।
डिपॉज़िटरी
NSDL और CSDL जैसे डिपॉजिटरी, IPO प्रक्रिया में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। वे IPO जारी करने वाली कंपनी को उसके शेयरों के डीमैटरियलाइजेशन में सहायता करते हैं। इसके अलावा वे सफल आवेदकों को शेयर आवंटन और उनके डीमैट खातों में कंपनी के डीमैट खाते से शेयरों के ट्रांसफर के लिए भी ज़िम्मेदार होते हैं।
इश्यू के बैंकर/ बैंकर्स टू इश्यू
बैंकर्स टू इश्यू, मूल रूप से नियमित बैंकिंग संस्थाएं हैं जो कंपनी की ओर से IPO आवेदन और आवंटन राशि को इकट्ठा करने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं। वे आवेदकों से प्राप्त राशि को शेयर आवंटित होने तक एक एसक्रो अकाउंट यानी निलंबित खाते में रखते हैं। असफल आवंटन की स्थिति में, बैंकर्स टू इश्यू संबंधित आवेदकों को एकत्रित राशि वापस करने के लिए ज़िम्मेदार हैं।
IPO प्रक्रिया
कंपनी के IPO जारी करने की पूरी प्रक्रिया काफी लंबी है। यहां तक कि इन उपर्युक्त पक्षों के पूर्ण समर्थन और सहयोग के साथ भी, एक IPO जारी करने में कंपनी को महीनों का समय लग सकता है। यह मज़ेदार लग रहा है? आइए IPO प्रक्रिया पर चरणबद्ध तरीके से एक नज़र डालते हैं।
1. लीड मैनेजर की नियुक्ति
जब कोई कंपनी अपने शेयरों को जनता के लिए जारी करने का निर्णय लेती है, तो जिस पक्ष की सर्विसेज़ को सबसे पहले लिया जाता है, वो एक लीड मैनेजर होता है। जैसा कि आप पहले ही पिछले सेगमेंट में पढ़ चुके हैं, एक बड़े IPO की स्थिति में, कंपनी एक से अधिक लीड मैनेजर की नियुक्ति कर सकती है। भारत के कुछ टॉप लीड मैनेजरों में icici , SBI कैपिटल और कार्वी इन्वेस्टर सर्विसेज़ शामिल हैं।
2. ड्यू डिलिजेंस का संचालन
एक बार लीड मैनेजर की नियुक्ति हो जाने के बाद, वे अपनी पसंद के कानूनी सलाहकार के साथ मिलकर कंपनी के लिए ड्यू डिलिजेंस की प्रकिया को अंजाम देते हैं। ड्यू डिलिजेंस अनिवार्य रूप से वित्तीय जानकारियों, नीतियों, नियामक अनुपालन, कॉर्पोरेट प्रशासन की संरचना और कंपनी की अन्य खातों की जाँच होती है। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि नीतियों या कंपनी के कामकाज में कोई कमी या ख़ामियाँ तो नहीं हैं, जो IPO की नामंज़ूरी का कारण बन सकती हैं।
3. रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस बनाना
रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस एक प्रकार की सूचना पुस्तिका है जिसमें प्रस्तावित IPO की सभी जानकारी शामिल होती है। यह जनता को प्रसारित किया जाता है और इसमें आम तौर पर निम्नलिखित जानकारी होती है:
- IPO की कुल राशि
- सदस्यता के लिए जनता को जारी किए जाने वाले शेयरों की संख्या
- शेयर की फेस वैल्यू
इनके अलावा एक प्रॉस्पेक्टस में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी शामिल होती है जैसे:
- संक्षिप्त 'अबाउट अस’ सेक्शन जो कंपनी के बारे में सभी अहम जानकारी देता है
- प्रबंधन का विवरण और उनकी योग्यता
- एक स्टेटमेंट जो यह बताता है कि कंपनी सार्वजनिक क्यों होना चाहती है और वह इस फंड का उपयोग किस तरह करेगी
- कंपनी के साथ जुड़े जोखिम के कारक
- कंपनी की व्यापक वित्तीय जानकारी
- प्रबंधन चर्चा और विश्लेषण
- कानूनी, नियामक और प्रबंधन जानकारी
लीड मैनेजर और कानूनी सलाहकार, दोनों, कंपनी को रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस तैयार करने में मदद करते हैं।
4. सेबी और स्टॉक एक्सचेंज को पंजीकरण दस्तावेज़ और प्रॉस्पेक्टस जमा करना
एक बार IPO के संबंध में सभी अहम दस्तावेज़ों को तैयार करने के बाद, लीड मैनेजर कंपनी की ओर से IPO इश्यू करने की अनुमति मांगने के लिए सेबी के पास पहुँचता है और प्रॉस्पेक्टस, रजिस्ट्रेशन स्टेटमेंट दर्ज करता है। इसके साथ ही, लीड मैनेजर स्टॉक एक्सचेंज के पास भी इन दस्तावेज़ों को फाइल करता है, और उनपर एक्जेंज की मंज़ूरी और टिप्पणी मांगता है।
5. सेबी से मंजूरी और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ (ROC) को प्रॉस्पेक्टस जमा करना
इन दस्तावेज़ों के भीतर निहित जानकारी की पूरी तरह से जांच करने पर, सेबी और स्टॉक एक्सचेंज, दोनों मंजूरी दे देते हैं या फिर सुधारात्मक कार्रवाई के लिए टिप्पणियों के साथ दस्तावेज़ों को वापस कर देते हैं।
एक बार जब कंपनी सेबी और स्टॉक एक्सचेंजों से अपेक्षित मंजूरी और क्लियरेंस लेटर प्राप्त कर लेती है, तो अगला कदम कंपनियों के रजिस्ट्रार (ROC) को क्लियरेंस लेटर के साथ प्रॉस्पेक्टस दाखिल करना होगा, जिसमें कंपनी के IPO जारी करने के उद्देश्य की जानकारी होगी।
6. IPO की मार्केटिंग
यह वह चरण है जहां चीज़ें रोमांचक हो जाती हैं। मार्केटिंग चरण को IPO रोड शो के रूप में भी जाना जाता है। यहां, कंपनी टीवी, पत्रिका, और समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करके अपने IPO की मार्केटिंग करती है। यह व्यापक अभ्यास यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि जनता को कंपनी के आगामी IPO के बारे में अच्छी तरह पता हो। कुछ कंपनियां दृश्यता बढ़ाने के लिए अपने बैंकरों की शाखाओं पर अपने IPO के नोटिस भी चिपकाती हैं।
7. IPO का मूल्य निर्धारण
मार्केटिंग की कवायद पूरी होने के बाद कंपनी अपने IPO के लिए प्राइस बैंड तय करती है। यह इस बात पर ध्यान देता है कि IPO की कीमत क्या होनी चाहिए। प्राइस बैंड में ऊपरी और निचली सीमा होती है। कुछ कंपनियां किसी भी अस्पष्टता को खत्म करने के लिए प्रॉस्पेक्टस तैयार करने के दौरान प्राइस बैंड तय कर लेती हैं।
8. बुक बिल्डिंग प्रक्रिया
बुक बिल्डिंग प्रक्रिया वह चरण है जहां वास्तविक कार्रवाई शुरू होती है। प्राइस बैंड को तय करने के बाद, कंपनी IPO के आवेदन के लिए जनता को एक समय अवधि देती है। यह अवधि आमतौर पर केवल 3 से 4 दिनों की होती है। कंपनी के शेयरों का आवेदन करते समय, आवेदकों को, दिए गए प्राइस बैंड में से अपनी पसंद की कीमत चुनने की छूट होती है। प्राइस डिस्कवरी की इस विधि को बुक बिल्डिंग प्रकिया के रूप में जाना जाता है।
9. शेयर की अंतिम कीमत निर्धारण और शेयर आवंटन
बुक बिल्डिंग की अवधि बंद होने के बाद, प्राइस बैंड के भीतर के हर मूल्य के लिए बोलियों की संख्या की गणना की जाती है। जिस मूल्य पर सबसे ज़्यादा बोलियाँ लगती है, उसे IPO इश्यू के अंतिम मूल्य या फाइनल प्राइस के रूप में चुना जाता है। और इसी मूल्य पर शेयरों का आवंटन होता है।
यहां, अंतिम मूल्य से कम मूल्य वाली बोलियों वाले आवेदकों को कोई शेयर आवंटित नहीं किया जाता है। इसके बजाय, उनके द्वारा जमा कराई गई आवंटन राशि, बैंकर्स टू इश्यू उनके खातों में रिफंड कर देते है। केवल उन आवेदकों को, जिनकी बोली या तो अंतिम मूल्य से मेल खाती है या अधिक होती, उन्हें शेयर आवंटित किए जाते है।
रजिस्ट्रार IPO जारी होने के बाद , संबंधित आवेदकों को शेयर आवंटित करते हैं, उसके बाद डिपॉजिटरी इस प्रकिया में कदम रखती है और आवेदकों के डीमैट खातों में शेयरों को क्रेडिट करती है। यह पूरी कवायद आवेदन अवधि खत्म होने के बाद कुछ दिन और लेती है।
10. एक्सचेंज पर शेयरों की लिस्टिंग
आवंटन और शेयरों के ट्रांसफर के बाद, उन्हें कारोबार करने के लिए, स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध किया जाता है। जिस दिन कंपनी के शेयर पहली बार स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होते हैं, उसे आमतौर पर लिस्टिंग डे के रूप में जाना जाता है। डिमांड और सप्लाई के आधार पर, शेयर को जिस कीमत पर लिस्ट किया जाता है वह उसके फाइनल प्राइस के बराबर, उससे कम या ज़्यादा भी हो सकता है।
11. IPO जारीकर्ता कंपनी को पूँजी ट्रांसफर होना
एक बार जब शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हो जाते हैं, तो कंपनी अपने शेयरों से उत्पन्न कुल आय या नेट प्रोसीड्स को प्राप्त करती है। IPO इश्यू से जुड़े सभी खर्चों, जैसे, लीड मैनेजर की कमीशन, को सकल आय या ग्रॉस प्रोसीड्स से घटाकर कुल आय या नेट प्रोसीड्स के आंकड़े पर पहुंचा जाता है। इसके बाद, इसे कंपनी के बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिया जाता है।
निष्कर्ष
यहां IPO की पूरी प्रक्रिया औपचारिक रूप से समाप्त हो जाती है। इसी के साथ, हम इस अध्याय के अंत पर आ चुके हैं। यह एक बहुत ही रोमांचक यात्रा थी, हैं ना? अब हम अगले अध्याय में मिलेंगे। यह IPO जारी होने के बाद की स्थिति और IPO में उपयोग किए जाने वाली शब्दावली के बारे में विस्तार से बताएगा।
अब तक आपने पढ़ा
- एक इकाई जो अपने शेयर जारी करने की इच्छा रखती है, आमतौर पर IPO प्रक्रिया को सफल बनाने के लिए कई पेशेवरों की मदद लेती है।
- लीड मैनेजर अनिवार्य रूप से वित्तीय संस्थान होते हैं जो पूरी IPO प्रक्रिया में कंपनी की मदद करते हैं।
- कानूनी सलाहकार ऐसी फर्में हैं, जो IPO जारी करने वाली कंपनी को IPO से जुड़े कानूनी मामलों से संबंधित सलाह प्रदान करती हैं।
- लेखा परीक्षक कंपनी द्वारा नियुक्त किए गए चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, जिनका काम कंपनी की फाइनेंशियल स्टेटमेंट्स का नियोजन, समीक्षा और उनका लेखा परीक्षण करना है।
- रजिस्ट्रार वे इकाइयाँ हैं जो जनता से प्राप्त IPO आवेदनों को प्रोसेस करने के लिए ज़िम्मेदार हैं।
- एक IPO ग्रेडिंग एजेंसी अनिवार्य रूप से एक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (CRA) है जो SEBI के साथ पंजीकृत होती है। ये एजेंसियाँ किसी कंपनी के IPO का आकलन करती हैं और उसी के अनुसार ग्रेड देती हैं।
- NSDL और CSDL जैसी डिपॉजिटरी, IPO जारी करने वाली कंपनी को उसके शेयरों के डीमैटरियलाइजेशन में सहायता करती हैं।
- डिपॉजिटरी, कंपनी के डीमैट खाते से सफल आवेदकों के डीमैट खातों में शेयर के आवंटन और ट्रांसफर के लिए भी ज़िम्मेदार हैं।
- बैंकर्स टू इश्यू, वो बैंकिंग संस्थाएं हैं जो कंपनी की ओर से IPO आवेदन और आवंटन राशि को इकट्ठा करने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं।
- किसी कंपनी की पूरी IPO प्रक्रिया में 11 अलग-अलग चरण होते हैं।
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- लीड मैनेजर की नियुक्ति
- ड्यू डिलिजेंस
- रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस तैयार करना
- सेबी और स्टॉक एक्सचेंज में पंजीकरण दस्तावेज़ और प्रॉस्पेक्टस जमा करना
- सेबी से मंजूरी और रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ (ROC) को प्रॉस्पेक्टस जमा करना
- IPO की मार्केटिंग
- IPO का मूल्य निर्धारण
- बुक बिल्डिंग प्रक्रिया
- शेयर की अंतिम कीमत निर्धारण और शेयर आवंटन
- एक्सचेंज पर शेयरों की लिस्टिंग
- IPO जारीकर्ता कंपनी को पूँजी ट्रांसफर होना
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