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IPO क्या है?

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दिनेश, ताज़ा नींबू पानी बेचने का व्यवसाय करता है। वह दिल्ली के बाज़ार में एक नींबू पानी की दुकान का मालिक है। स्टॉल लगाने के लिए उसने खुद ₹50,000 का निवेश किया। इसलिए वह उस बिज़नेस का प्रोमोटर है। उसका नींबू पानी इतना अच्छा है कि बहुत लोग गर्मियों में उसके स्टॉल पर नींबू पानी पीने आते है। दिनेश की बिक्री और राजस्व बढ़ने के साथ- साथ उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ रही है।  

 उसको इस बिज़नेस को चलाते हुए 2 साल हो गए हैं। अब वह अपने ग्राहक की बढ़ती संख्या को देखते हुए, व्यवसाय को भी बढ़ाना चाहता है। उसे लगभग ₹5,00,000 की ज़रूरत है जिससे वह अपने स्टॉल का साइज़ बढ़ाना चाहता है ताकि वहां ज्यादा लोग आ सकें, वह फर्नीचर, नींबू पानी बनाने के लिए मशीन और अन्य कर्मचारियों को भी नियुक्त करना चाहता है। पर अब, वह सोचता है कि वह इतनी ज्यादा पूँजी कहाँ से लाए?

आपके दिमाग में भी सबसे पहला विकल्प बैंक लोन का था, है ना? दिनेश ने भी हमारी तरह इसके बारे में सोचा। पर उसने इस विचार को छोड़ दिया। इसके दो ही कारण हो सकते हैं, पहला ये कि शायद वो खुद को बैंक लोन लेने के लिए योग्य नहीं समझता और दूसरा कारण ये भी हो सकता है कि अगर वो बैंक लोन लेने के योग्य भी है, तो लोन के लिए महीने की EMI चुकाने में सक्षम नहीं होगा।

जब दिनेश को पता है कि बैंक लोन नहीं लिया जा सकता तो वो अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए पूँजी कैसे जुटाए? दिनेश स्टॉल से एक दिन की छुट्टी लेता है, और सोचता है कि कैसे, क्या किया जाए। अगले दिन वह एक बढ़िया आइडिया के साथ स्टॉल पर आता है और अपने नियमित ग्राहकों के सामने एक प्रस्ताव रखता है। वह उनसे पूछता है कि क्या वे स्टॉल को बढ़ाने के लिए एक निश्चित राशि का योगदान दे सकते हैं?

दिनेश के ग्राहक थोड़ा संकोच करते हैं, उनमें से अधिकांश एक ही सवाल पूछते हैं कि "इसमें हमारा क्या फायदा है? हम जो निवेश करेंगे उसकी भरपाई कैसे होगी? ” दिनेश उनके सवालों के लिए पहले से ही तैयार था, इसलिए वह उनसे वादा करता है कि वो उनके निवेश के बदले में, उन्हें स्टॉल से होने वाले मुनाफ़े में हिस्सा देगा और वो सभी लोग स्टॉल के सह-मालिक माने जाएंगे। उसके नियमित ग्राहक आखिरकार आश्वस्त होते हैं और सभी मिलकर स्टॉल में ₹5,00,000 का निवेश करते हैं। 

हमने देखा कि दिनेश ने अपने ग्राहकों को एक प्रकार की इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) दी है।

इसी तरह, कंपनी  अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए, IPO के माध्यम से जनता को अपने शेयर बेचकर पूँजी हासिल करने की कोशिश करती है।

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) क्या है?

IPO क्या है? शायद अब हम इस सवाल का जवाब जानते हैं। चलिए, एक बार फिर से इसके बारे में जानते हैं। एक कंपनी के शेयर आमतौर पर कुछ ही लोगों के पास होते हैं। तो ऐसी कंपनी को निजी कंपनियों या प्राइवेटली हेल्ड कंपनीज़ के तौर पर जाना जाता है। 

इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग(IPO )अनिवार्य रूप से एक प्रकिया है जिसके द्वारा एक निजी कंपनी पहली बार जनता को अपने शेयर बेचती है। फिर, IPO जारी करने वाली कंपनी को जनता द्वारा खरीदे गए शेयरों से कमाई गई आय उसके खाते में मिल जाती है।  जब कोई कंपनी अपने IPO में सफल हो जाती है तो उसके बाद, उसके शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज पर लिस्ट किया जाता है और स्वतंत्र रूप से उनका कारोबार किया जाता है।

अब जब हम जानते हैं कि IPO क्या है, तो देखते हैं कि एक बिज़नेस IPO की ओर कैसे बढ़ता है।

एक व्यवसाय का जीवन चक्र उसे IPO की ओर कैसे ले जाता है?

अधिकतर कंपनियां कई फंडिंग स्टेज से गुज़रती हैं और फिर अंत में अपने शेयरों को जनता के लिए जारी करने का निर्णय लेती हैं। वैसे, ऐसा हमेशा नहीं होता है। कुछ कंपनियां फंडिंग स्टेज के आधार पर नहीं, बल्कि अपने जीवन-चक्र की स्टेज के आधार पर IPO लाने का फैसला लेती हैं।

उदाहरण के लिए, कुछ कंपनियां IPO तब चुन सकती हैं जब वे ग्रोथ स्टेज पर हों। चूंकि ग्रोथ स्टेज पर कंपनी को फ़ंड की अधिक आवश्यकता होती है, इसलिए फ़ंड प्राप्त करने के लिए कंपनी IPO जारी करती है।

इसके अलावा, किसी बिज़नेस की शेक-आउट स्टेज पर भी कंपनियां IPO जारी करती हैं। जब  तक कंपनी इस स्टेज तक पहुँचती है, तब तक यह जनता में अच्छा नाम कमा चुकी होती है जिससे ये अपने IPO की भारी मांग उत्पन्न कर सकती है। कंपनियां आमतौर पर IPO से प्राप्त फ़ंड का उपयोग अपनी स्थिति, व्यवसाय और राजस्व को मज़बूत करने में और गिरावट को रोकने के लिए करती हैं। 

कुछ कंपनियाँ मैच्योरिटी स्टेज पहुँचने तक IPO विकल्प का इस्तेमाल नहीं करती। ऐसा अक्सर वह कंपनियाँ करती हैं जो IPO जारी करने से पहले फंडिंग के सभी विकल्पों को इस्तेमाल कर लेना चाहती हैं। मैच्योरिटी स्टेज में आ जाने के बाद, कंपनियाँ मौजूद फंड के आ जाने से नए और अनोखे निवेश और व्यवसाय की रणनीतियाँ बनाने में लग जाती हैं ताकि डिक्लाइन स्टेज को टाला जा सके।

 

कंपनियां IPO का विकल्प क्यों चुनती हैं?

हम इस सवाल का जवाब अच्छे से जानते हैं। कंपनियाँ पूँजी जुटाने के लिए IPO का विकल्प चुनती हैं। हालांकि ये IPO जारी करने का एक प्राथमिक कारण ज़रूर है, लेकिन, इसके कई अन्य फायदे भी हैं। आइए उनमें से कुछ पर एक नज़र डालें।

यह कर्ज से सस्ता है

IPO के द्वारा जुटाई गई पूँजी लगभग हमेशा कर्ज़ से सस्ती होती है। बिज़नेस लोन लेने की प्रकिया की तुलना में IPO प्रकिया थोड़ी कठिन ज़रूर होती है, लेकिन इसे कंपनी की नज़रों से देखा जाए तो यह बहुत ही किफायती है, क्योंकि इसमें नियमित रूप से ऋण और उसका ब्याज नहीं चुकाना पड़ता। इसके अलावा, कर्ज ना चुकाने से कंपनी संकट में पड़ सकती है। हालांकि, IPO के साथ, इनमें से कोई भी जोखिम नहीं है।

यह शुरुआती निवेशकों को कंपनी से बाहर निकलने का मौका देता है

एंजेल इन्वेस्टर, निजी इक्विटी फ़र्म और वेंचर कैपिटलिस्ट याद हैं?ये तीनों, कंपनी के प्राथमिक निवेशक होते है। IPO जारी कर, कंपनी इन निवेशकों को उनके लिए गए इक्विटी शेयरों को  वापिस करने और कंपनी से बाहर निकलने यानी एक्ज़िट करने का मौका देती है।  कभी-कभी तो कंपनी के प्रोमोटर भी मूल्य में बढ़ोतरी का फायदा लेने के लिए व्यवसाय में अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहते हैं।  एक IPO उन्हें ऐसा करने का मौका देता है।

 यह कंपनी की दृश्यता और विश्वसनीयता को बढ़ाता है

जब कोई कंपनी IPO जारी करती है, तो इकाई की दृश्यता भी बढ़ जाती है। लोग कंपनी पर ध्यान देना शुरू करते हैं और इससे उसके व्यवसाय में रूचि और इसकी मांग दोनों पर असर पड़ता है। एक IPO तब सफल माना जाता है जब कंपनी का शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हो जाता है, और यह इसकी दृश्यता को और बढ़ाने में मदद करता है।

इसका एक और प्रमुख फायदा यह है कि एक IPO लाने वाली कंपनी की विश्वसनीयता में बढ़ोतरी होती है। लिस्टेड कंपनियों के लिए सख्त अकाउंटिगं और रिपोर्टिंग नियमों के चलते, कई निवेशक इन कंपनियों का ज़्यादा भरोसेमंद मानते हैं। इससे न केवल लोगों की नज़र में कंपनी की गुडविल बढ़ती है, बल्कि भविष्य में कंपनी को आसानी से फंडिंग लेने में भी मदद मिलती है।

क्या इसके नुकसान भी हैं?

हमने IPO के विभिन्न फ़ायदों पर गहराई से ध्यान दिया है। लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, इसलिए कहा जा सकता है सार्वजनिक होने के कुछ नुकसान भी होते है। इसको बेहतर तरीके से समझने के लिए IPO से जुड़ी असुविधाओं को भी देख लेते हैं: 

स्वामित्व कम हो जाता है

यह शायद IPO जारी करने का एकलौता नुकसान है। जब कंपनी जनता को शेयर जारी करती है, तो कंपनी पर प्रोमोटरों का स्वामित्व और नियंत्रण कम हो जाता है। आइए, एक उदाहरण के माध्यम से इस कॉन्सेप्ट को देखें:

मान लीजिए, कि कोई कंपनी चाय के कप का निर्माण करती है। उस कंपनी के सभी शेयर 5-प्रोमोटरों के समूह के पास हैं। ऐसी स्थिति में, कंपनी का 100% नियंत्रण और स्वामित्व प्रोमोटर के समूह के पास है, सही बात है ना?

अब, मानिए कि वे IPO के माध्यम से कंपनी के 40% शेयर जनता को बेचते हैं। सार्वजनिक होने के बाद, प्रोमोटर समूह का नियंत्रण और स्वामित्व 60% (100% - 40%) तक रह जाता है। शेष 40% नियंत्रण और स्वामित्व कंपनी के शेयरों को खरीदने वाली जनता के पास होगा।

 एक IPO किसी कंपनी के मौजूदा शेयरधारकों के स्वामित्व और नियंत्रण को कम कर देता है।

 ये महंगा है

इसे IPO के फायदों की तुलना में एक छोटी परेशानी है। IPO की प्रकिया को पूरा करने में कैश आउटफलो ज्यादा होता है। इसके अलावा, कंपनी के सूचीबद्ध होने के बाद, कई नई और कठोर आवश्यकताओं का पालन करना होता है, और उनमें भी अच्छा खासा पैसा लगता है।

निष्कर्ष

ये अध्याय यहीं पर खत्म होता है। अगले अध्याय में हम IPO की प्रकिया और उसे सफल बनाने वाले सभी पक्षों के बारे में भी जानेंगे। 

अब तक आपने पढ़ा

  • इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO ) एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक निजी कंपनी पहली बार जनता को अपने शेयर बेचती है।
  • फिर, IPO जारी करने वाली कंपनी को जनता द्वारा खरीदे गए शेयरों से कमाई गई आए उसके खाते में मिल जाती है।
  • किसी कंपनी का IPO सफल होने के बाद, उसके शेयरों को एक्सचेंज पर सूचीबद्ध किया जाता है और स्टॉक एक्सचेंज पर स्वतंत्र रूप से उनका कारोबार किया जाता है।
  • अधिकांश कंपनियां कई फंडिंग चरणों से गुजरती हैं और फिर आखिर में अपने शेयरों को जनता के लिए जारी करने का निर्णय लेती हैं।
  • कुछ कंपनियां अपनी ग्रोथ स्टेज में IPO जारी करने का फैसला ले सकती हैं।
  • अन्य कंपनियाँ शेक-आउट चरण या मैच्योरिटी चरण में सार्वजनिक होना चुन सकती हैं।
  • IPO  के ज़रिए जुटाई गई पूँजी लगभग हमेशा कर्ज़ से सस्ती होती है।
  • एक IPO जारी कर, कंपनी अपने शुरुआती निवेशकों को उनके द्वारा रखे गए इक्विटी शेयरों को वापिस करने और इकाई से बाहर निकलने का मौका देता है।
  • जब कोई कंपनी IPO जारी करती है, तो उसकी दृश्यता भी बढ़ जाती है।
  • लेकिन नकारात्मक पक्ष पर, जब जनता को शेयर जारी होते हैं, तो कंपनी पर प्रोमोटरों का स्वामित्व और नियंत्रण कम हो जाता है।
  • IPO  की पूरी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरी करना महँगा भी हो सकता है।
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