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आईपीओ (IPO) प्रक्रिया के बारे में निवेशक को क्या पता होना चाहिए?
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अब आप जानते हैं कि IPO प्रक्रिया एक ऐसा तरीका है जिसमें किसी कंपनी के शेयर आम जनता के लिए जारी किए जाते हैं। अब तक आप उस संपूर्ण प्रक्रिया से भी अवगत हो गए हैं जो किसी कंपनी के IPO को सफल बनाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि IPO जारी करने के बाद क्या होता है और एक निवेशक के लिए इसका मतलब क्या है? तो चलिए, इस अध्याय में हम यही जानेंगे।
IPO प्रक्रिया के बाद क्या होता है?
वित्तीय दुनिया में किसी कंपनी के इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO ) को आमतौर पर प्राथमिक बाज़ार या प्राइमरी मार्केट के रूप में जाना जाता है। आप जब IPO के माध्यम से शेयर खरीदते हैं, तो आप सीधे कंपनी से शेयर खरीद रहते हैं, यानी उसके प्रारंभिक स्थान से। यही कारण है कि IPO प्राथमिक बाज़ार के रूप में प्रसिद्ध है।
प्राथमिक बाज़ार की कल्पना एक नई कार बेचने वाले डीलरशिप की तरह करें। जब आप डीलरशीप से एक कार खरीदते हैं तो आपको एक नई कार मिलती, जिसे पहले कभी नहीं चलाया गया है और आप इसे सीधे निर्माता से प्राप्त करते हैं। ठीक इसी तरह आपको प्राथमिक बाज़ार में खरीदने के लिए जो शेयर मिलते हैं, वो भी ऐसे ही होते हैं जिनका पहले कभी कारोबार नहीं किया गया है।
हालांकि एक बार जब IPO आवंटन प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और शेयर, स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध हो जाते हैं, तो वे पहले दिन से ही प्राथमिक बाज़ार से सेकेंड्री बाज़ार में चले जाते हैं। पहले दिन यानी लिस्टिंग डे से ही कंपनी के शेयर सार्वजनिक रूप से शेयर बाज़ारों में कारोबार करते हैं।
अब स्टॉक एक्सचेंज की कल्पना पुरानी कार की डीलरशिप के रूप में करें। जब आप एक इस्तेमाल की गई कार की डीलरशिप से गाड़ी खरीदते हैं, तो आपको एक ऐसी कार मिलती है जिसका मालिक कोई और था और इसे पहले चलाया जा चुका है। है ना? इसी तरह, जब आप सेकेंड्री बाज़ार से शेयर खरीदते हैं , तो आप कंपनी से नहीं बल्कि प्रभावी रूप से किसी अन्य व्यक्ति से शेयर खरीद रहे होते हैं।
यही वजह है कि स्टॉक एक्सचेंजों को सेकेंड्री बाज़ार के रूप में जाना जाता है। एक बार शेयर जब प्राथमिक बाज़ार से सेकेंड्री बाज़ार में चले जाते हैं, तो कंपनी की इस प्रकिया में कोई भूमिका नहीं होती। व्यापार आपके और उस व्यक्ति के बीच होता है, जो वर्तमान में शेयरों का मालिक है।
IPO, एक निवेशक के रूप में आपके लिए क्या मायने रखता है? प्राथमिक बाज़ार से शेयरों को खरीदने के बजाय इन्हें सेकेंड्री बाज़ार से लेने का क्या फायदा है? ये दो सवाल हैं जिसका जवाब हम आपको अगले खंड में देंगे।
एक निवेशक के तौर पर, आपके लिए IPO का क्या मतलब है?
जब आप एक IPO में भाग लेते हैं, तो आप कंपनी के शेयरों तक जल्दी पहुंच सकते हैं। आपको शुरू से ही कंपनी के शेयरों की मूल्य में बढ़ोतरी की प्रक्रिया का हिस्सा बनने का मौका मिलता है। इस प्रकिया में जल्दी जुड़ने से आप कंपनी भविष्य की विकास क्षमता का पूरा फायदा उठा सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर, आइए IRCTC को लेते हैं। अगर आपने अक्टूबर 2019 में, IPO आवंटन प्रक्रिया के समय, IRCTC के शेयरों के लिए आवेदन कर उन्हें ख़रीदा होता, तो आप उन्हें ₹310 प्रति शेयर पर खरीद पाते। सूचिबद्ध होने की तारीख से केवल 9 महीनों के अंदर IRCTC के शेयरों का मूल्य लगभग ₹1300 बढ़ गया, जो कि 400 फीसदी अधिक बढ़ोतरी है। वहीं अगर आप शेयर सूचीबद्ध होने वाले दिन, यानी लिस्टिंंग डे के दिन ,उसे सेकेंड्री बाज़ार से खरीदते तो आपको ₹700 प्रति शेयर की कीमत चुकानी पड़ती। अगर इसकी तुलना शेयर की मौजूदा कीमत से करें तो ये 180 फीसदी बढ़ोतरी हुई।। तो, आप देख सकते हैं कि प्राथमिक बाज़ार कैसे एक आकर्षक निवेश अवसर हो सकता है?
IPO शब्दावली
IPO प्रक्रिया से पहले अगर आप एक प्रॉस्पेक्टस या IPO दस्तावेज़ पढ़ते हैं तो आपको बहुत सारे अटपटे शब्द मिलेंगे। अगर आपको इन शब्दों के अर्थ मालूम हों तो एक निवेशक के तौर पर आपकी बहुत मदद हो सकती है, क्योंकि यह आपको इस विषय को बेहतर ढंग से समझने में मदद करेगा। तो यहां कुछ प्रमुख IPO -संबंधित शब्दों के बारे में बताया गया है, जिन्हें जानना ज़रूरी है।
प्रस्ताव तिथि/ ऑफर डेट
सदस्यता के लिए IPO जारी करने की तारीख को आमतौर पर प्रस्ताव तिथि या ऑफर डेट के रूप में जाना जाता है।
मूल्य बैंड/ प्राइस बैंड
IPO के लिए, आमतौर पर, कंपनी ऊपरी और निचली सीमा के साथ मूल्य सीमा तय करती है और इसी को प्राइस बैंड कहते हैं। IPO आवेदकों को, दिए गए प्राइस बैंड के बीच किसी भी कीमत को चुनने की छूट होती है।
उदाहरण के लिए, IRCTC IPO का प्राइस बैंड ₹315 से ₹320 तक निर्धारित किया गया था।
एक आवेदक के रूप में आप इस प्राइस बैंड के अंदर किसी भी मूल्य का चयन करने के लिए स्वतंत्र हैं।
कट- ऑफ प्राइस
प्राइस बैंड के अंदर की कीमत जो आवेदकों से सबसे ज्यादा बोली प्राप्त करती है, आमतौर पर कंपनी उसे कट-ऑफ प्राइस के रूप में तय कर देती है। कट- ऑफ प्राइस से नीचे की कोई भी बोली IPO आवंटन के लिए मान्य नहीं होती है।
लॉट साइज
लॉट साइज IPO में बोली लगाने के लिए न्यूनतम शेयरों की संख्या है । आपके द्वारा लगाई जाने वाली कोई भी बोली हमेशा लॉट साइज के गुणाकार में होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, अगर किसी कंपनी के IPO का लॉट साइज़ 1,000 है तो आप 1,000 से कम शेयरों की बोली नहीं लगा सकते। लेकिन अगर आप उससे अधिक शेयरों के लिए बोली लगाना चाहते हैं, तो उन्हें लॉट साइज़ के गुणाकार में होना ज़रूरी है जैसे, 2,000 या 3,000 शेयर।
अंडरसब्सक्राइब्ड इश्यू
अगर पब्लिक से प्राप्त बोलियों की संख्या कुल शेयरों की संख्या से कम होती है तो एक IPO इश्यू को अंडरसब्सक्राइब्ड कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी IPO इश्यू में बिक्री के लिए शेयरों की संख्या 50,000 है और जनता से प्राप्त बोलियों की संख्या 30,000 है, तो IPO इश्यू अंडरसब्सक्राइब्ड है।
ओवरसब्सक्राइब्ड इश्यू
जब पब्लिक से प्राप्त बोलियों की संख्या कुल शेयरों की संख्या से अधिक होती है, तो IPO इश्यू को ओवरसब्सक्राइब्ड कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर किसी IPO इश्यू में बिक्री के लिए शेयरों की संख्या 50,000 है, लेकिन उन 50,000 शेयरों के लिए जनता से प्राप्त बोलियों की संख्या 1,00,000 है, तो IPO शेयर 2 गुना ओवरसब्सक्राइब्ड है।
ग्रीन शू
ग्रीन शू को ओवरअलॉटमेंट ऑपशन यानी अधिक आवंटन विकल्प के रूप में भी जाना जाता है। यह एक कॉन्ट्रैक्ट है जो कंपनी को ओवरसब्सक्राइब्ड IPO इश्यू की स्थिति में अतिरिक्त शेयर (आमतौर पर इश्यू साइज का 15%) जारी करने की अनुमति देता है। इसे ग्रीन शू क्यों कहा जाता है? क्या आप यही सोच रहे हैं? खैर, इस शब्द की एक दिलचस्प कहानी है। दरअसल ग्रीन शू मैन्युफैक्चरिंग नाम की कंपनी ने ही पहली बार अपने अंडरराइटर्स को ये प्रकिया करने की अनुमति दी थी।
भारत के कुछ नए IPO
अब जब आप IPO के बारे में सब कुछ जान चुके हैं, तो आइए जानते हैं हाल के दिनों में शेयर बाज़ारों में आने वाले IPO के बारे में।
जारी करने वाली कंपनी |
कुल जारी किए गए शेयर |
कुल इश्यू साइज़ |
लॉट साइज |
इश्यू का प्राइस बैंड (प्रति शेयर) |
मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड |
1,36,85,095 |
₹1,204.29 करोड़ |
17 शेयर |
₹877 to ₹880 |
पॉलीकैब इंडिया लिमिटेड |
2,50,44,686 |
₹1,342 करोड़ |
27 शेयर |
₹533 to ₹538 |
IRCTC |
2,01,60,000 |
₹645 करोड़ |
40 शेयर |
₹315 to ₹320 |
CSB बैंक |
2,10,21,821 |
₹409.68 करोड़ |
75 शेयर |
₹193 to ₹195 |
उज्जीवन स्मॉल फाइनेंस बैंक लिमिटेड |
20,83,33,333 |
₹750 करोड़ |
400 शेयर |
₹36 to ₹37 |
निष्कर्ष
तो यह अध्याय यहीं खत्म होता है। इस अध्याय में आपको बहुत कुछ सीखने के लिए मिला होगा। अगले अध्याय में हम उन विभिन्न प्रकार के शेयरों से के बारे में जानेंगे जिन्हें जारी करने के लिए कंपनी अधिकृत होती है।
अब तक आपने पढ़ा
- वित्तीय दुनिया में किसी कंपनी के इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO ) को आमतौर पर प्राथमिक बाज़ार के रूप में जाना जाता है।
- एक बार जब IPO आवंटन प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर सूचीबद्ध होते हैं, और वे प्राथमिक बाज़ार से सेकेंड्री बाज़ार में चले जाते हैं।
- सूचीबद्ध होने के दिन से, कंपनी के शेयर सार्वजनिक रूप से शेयर बाज़ारों में कारोबार करते हैं।
- एक बार जब शेयर प्राथमिक बाज़ार से सेकेंड्री बाज़ार में चले जाते हैं तो कंपनी उस प्रकिया का हिस्सा नहीं रहती। व्यापार आपके और उस व्यक्ति के बीच होता है,जो वर्तमान में शेयरों का मालिक है।
- जब आप एक IPO में भाग लेते हैं तो आप किसी कंपनी के शेयरों तक जल्द पहुंच पाते हैं।
- IPO में निवेश करने पर आप शुरू से ही कंपनी के शेयरों के मूल्य बढ़ने की प्रक्रिया का हिस्सा बन जाते हैं।
- सदस्यता के लिए IPO जारी करने की तारीख को आमतौर पर ऑफर डेट के रूप में जाना जाता है।
- IPO इश्यू में कंपनी ऊपरी और निचली सीमा के साथ एक मूल्य सीमा जारी करती है, जिसे प्राइस बैंड के रूप में जाना जाता है। IPO आवेदकों को इस प्राइस बैंड के बीच किसी भी कीमत को चुनने की स्वतंत्रता होती है।
- प्राइस बैंड के अंदर की जो कीमत आवेदकों से बोली की उच्चतम संख्या प्राप्त करती है, आमतौर पर कंपनी उसे कट-ऑफ प्राइस के रूप में तय कर देती है।
- लॉट साइज न्यूनतम शेयरों की संख्या है जिनके लिए आप बोली लगा सकते हैं।
- जब पब्लिक से प्राप्त बोलियों की संख्या कुल शेयरों की संख्या से कम होती है तो एक IPO इश्यू को अंडरसब्सक्राइब्ड कहा जाता है।
- जब सार्वजनिक रूप से प्राप्त बोलियों की संख्या कुल शेयरों की संख्या से अधिक होती है तब IPO इश्यू को ओवरसब्सक्राइब्ड कहा जाता है।
- ग्रीन शू एक कॉन्ट्रैक्ट है जो कंपनी को ओवरसब्सक्राइब्ड IPO इश्यू की स्थिति में अतिरिक्त शेयर (आमतौर पर इश्यू साइज का 15%) जारी करने की अनुमति देता है। इसे ओवर एलॉटमेंट ऑप्शन भी कहा जाता है।
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