फाइबोनैचि रिट्रेसमेंट: अर्थ, स्तर, गणना
उन परिदृश्यों को समझें जिनमें फिबनाची रिट्रेसमेंट लेवल्स विश्वसनीयता प्राप्त करते हैं।
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लेकिन एआई का मतलब क्या है? संक्षेप में कहें तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की एक शाखा है, जिसका मकसद है 'स्मार्ट' मशीनें बनाना या ऐसी मशीनें बनाना जो ऐसी मिमिकिंग और/या 'लर्निंग' में सक्षम हों जिनमें आमतौर पर इंसानी दिमाग की ज़रुरत होती है। यह इंटरडिसिप्लिनरी साइंस है जिसके कई एप्रोच हैं सो एआई हर तरह के टेक इंडस्ट्री सेक्टर में अभूतपूर्व बदलाव ला रहा है। ट्रेडिंग की दुनिया में भी इसका जगह बना लेना कोई आश्चर्य की बात नहीं।
जानकारों का दावा है कि एआई और फाइनांस कई लिहाज़ से एक-दूसरे के लिए बने से लगते हैं। ऐसी तकनीक जो एक ऐसे पैटर्न की पहचान करना आसान बनाती हैं जिसके मामले में इंसान की आँख चूक सकती है और यह एआई के मूलभूत काम में से एक है। चूंकि फाइनांस मूलतः क्वांटिटेटिव दिखता है सो इसे ऐसे काम (डेटा एनालिसिस, प्रेडिक्शन, एरर कोडिंग) के साथ इसे न जोड़ना मुश्किल है, जिन्हें एआई आसानी से पूरा कर सकता है।
हालाँकि ये टूल 1980 के दशक से ही मौजूद रहे हैं लेकिन 21 वीं सदी में ही फिनांशियल कंपनियों ने पहली बार एआई सही तरीके से उपयोग करना शुरू किया। लगभग सारी कंपनियां आज की ज़रुरत बन चुकी डीप लर्निंग और मशीन लर्निंग वाले फिनांशियल एप्लीकेशन में इसका उपयोग करना चाहती हैं। जहां तक बात स्टॉक ट्रेडिंग की है, तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस निश्चित रूप से नई बात नहीं है, लेकिन एआई की क्षमता तक व्यापक पहुंच बड़ी फर्मों तक ही सीमित है। आइए, एआई स्टॉक ट्रेडिंग की शुरुआत और ग्रोथ के बारे में जानें।
इंडस्ट्री से जुड़े एक व्यक्ति के मुताबिक, "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ट्रेडिंग में वही क्रांति लाई को केवमैन के जीवन में आग की खोज ने लाई।" दूसरे शब्दों में, एआई स्टॉक ट्रेडिंग मॉडर्न इन्वेस्टर के लिए गेम-चेंजर रहा है। लेकिन यह कैसे हुआ? एआई को पहली बार शेयर बाजारों में कब पेश किया गया था और इसे लोगों ने कैसे लिया? शेयर बाजार में एआई की शुरुआत थ्योरेटिकल लेवल पर 1960 के दशक में रॉबर्ट श्लेफर के साथ ही हो गई थी।
1959 में, श्लेफर ने एक मौलिक किताब लिखी "प्रोबैबिलिटी एंड स्टैटिस्टिक्स फॉर बिज़नेस डिसिज़न"। इसके पब्लिश होने के बाद बिज़नेस की दुनिया में स्टैटिस्टिक्स के क्षेत्र में रिसर्च के सम्बन्ध में लोकप्रियता बढ़ी। व्यावहारिक स्तर पर, 1980 के दशक में आर्टिफीशियल नेटवर्क और फ़ज़ी सिस्टम में ग्रोथ हुई, दोनों ने फिनांशियल टूल्स को बेहतर प्रेडिक्टिव पावर दिया।
संभवत: पहले, या कम से कम पहले कुछ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस-ड्रिवन प्रोग्राम में से एक जिसने शेयर बाजार के बारे में प्रेडिक्शन किया, वह था 'प्रोट्रेडर एक्सपर्ट सिस्टम'। प्रोट्रेडर एक्सपर्ट सिस्टम को कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बिजनेस के छात्र केसी चेन और यूनिवर्सिटी ऑफ इलिनॉइस के तिंग-पेंग लियान ने डिजाईन किया था। चेन और लियान ने अपनी विशेषज्ञता के साथ डाओ जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में 1986 के 87-पॉइंट ड्रॉप के बारे में सफलता पूर्वक प्रेडिक्ट किया कि (हालांकि कुछ ऐतिहासिक रिकॉर्ड का दावा है कि उनके सफल होने की एक वजह ओवरफिटिंग एरर हो सकती है)।
प्रोट्रेडर एक्सपर्ट सिस्टम के प्रमुख काम में शामिल था, बाजार में प्रीमियम की निगरानी करना, ऑप्टिमम इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी का निर्धारण करना, ट्रांजैक्शन करना जब सबसे अधिक फायदेमंद हो, और मशीन लर्निंग मैकेनिज्म के ज़रिये सिस्टम के नॉलेज बेस को बदलना। सुनने में जाना पहचाना लग रहा है? आज की अधिकांश ब्रोकरेज कंपनियों के प्रेडिक्टिव एआई इसी शुरुआती सिस्टम पर आधारित हैं।
इसी तरह का दूसरा टूल आर्थर डी. लिटिल इंक. और चेज़ लिंकन फर्स्ट बैंक ने लगभग उसी समय डेवलप किया जो एआई से चलता था। यह सिस्टम बजट रेकोमेंडेशन, इन्कम टैक्स प्लानिंग और अन्य फिनांशियल लक्ष्य के लिए वेल्थ मैनेजमेंट के अलावा डेट, रिटायरमेंट, एजुकेशन, लाइफ इंश्योरेंस और इन्वेस्टमेंट प्लानिंग का काम कर सकता था। यदि कोई ग्राहक इस मशीन से अपनी फिनांशियल रिपोर्ट लेना चाहता था, तो उसे 1980 के दशक में 300 डॉलर लगते थे।
1980 के दशक के बाद से फाइनेंस में एआई की भूमिका एक्सपेरिमेंटल से एसेंशियल होती गई। हालाँकि ट्रेडिंग में इंसान की भूमिका बड़ी ही रही लेकिन एआई की भूमिका काफी बढ़ गई है। ब्रिटेन के रिसर्च फर्म कोएलिशन की हाल में की गई स्टडी के मुताबिक,एआई-ड्रिवन इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग का सिर्फ कैश इक्विटी ट्रेडिंग से हासिल रेवेन्यू में ही लगभग 45 प्रतिशत योगदान है। यहां तक कि इन्वेस्टमेंट के क्षेत्र जो अपने कामकाज में अधिक ऑटोमेशन नहीं चाहते हैं, जैसे हेज फंड, वे पोर्टफोलियो बनाने के लिए एआई से चलने वाले एनालिसिस टूल का उपयोग करते हैं और अपने लिए इन्वेस्टमेंट सुझाव लेते हैं।
इसके अलावा, एआई की शाखा जिसे 'मशीन लर्निंग (जिसका दायरा अपने-आप में विशाल है) के रूप में जाना जाता है, इसका विकास और भी तेज गति से हो रहा है, फिनांशियल इंस्टीच्यूशन इसे सबसे तेज़ी से बना रहे हैं। वॉल स्ट्रीट के स्टैटिस्टिशियंस ने सीख लिया कि मशीन लर्निंग को फिनांस के विभिन्न पहलुओं पर कैसे लागू कर सकते हैं, जैसे इन्वेस्टमें ट्रेडिंग एप्लीकेशन, और अब उन्होंने करोड़ों डाटा पॉइंट की छान-बीन रियल-टाइम के आधार करने का हुनर पैदा कर लिया है। इस प्रक्रिया ने आखिरकार ऐसी जानकारी हासिल की जो पहले से मौजूद स्टैटिस्टिकल मॉडल नहीं कर सकता था।
मशीन लर्निंग ने आज की ट्रेडिंग को जिस तरह प्रभावित किया है उनमें से एक है, विभिन्न बाजारों में रीयल-टाइम के आधार पर बड़े पैमाने पर काम्प्लेक्स ट्रेडिंग पैटर्न की पहचान करना। जब इस तरह की मशीन लर्निंग को एआई की हाई-स्पीड, बिग डेटा प्रोसेसिंग पावर के साथ जोड़ा जाता है, तो आज का ट्रेडिंग सॉफ्टवेयर अपने ग्राहकों को जोखिम, मार्केट की प्रेडिक्शन और इन्वेस्टमेंट विकल्पों के मामले में स्पष्ट आकलन प्रदान कर सकता है। मशीन लर्निंग का उपयोग केवल आंकड़ों को क्रंच करने के लिए नहीं किया जाता है।
शिकागो की एक कंपनी स्पीच रिकग्निशन और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग करती है ताकि फिनांशियल डाटा, कन्वर्ज़न और नोट्स की प्रक्रिया में लगने वाला समय कम किया जा सके। कंपनी के प्लेटफॉर्म के जरिये फिनांशियल प्रोफेशनल रियल-टाइम के आधार पर बाजार की इनसाइट, नोट्स और ट्रेंडिंग कंपनियों की जानकारी हासिल करने के लिए एआई का उपयोग करते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज ट्रेडिंग का आवश्यक अंग है। यह अपनी विशाल डेटा प्रोसेसिंग क्षमता के कारण स्टैटिस्टिशियन की जगह ले रहा है। जब बिग-डेटा प्रोसेसिंग को इस डेटा को 'बुद्धिमानी से' अलग करने की एआई की क्षमता के साथ जोड़ा जाता है, तो इन्वेस्टर को इंसानी, फिनांशियल एडवाइजर की जगह मशीन से चलने वाला एडवाइजर मिलता है। एआई ने 21वीं सदी के शेयर बाजारों को सिरे से बदल दिया है।
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