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एशियन टाइगर का उदय: वर्षों से भारत की अर्थव्यवस्था
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वर्तमान समय में भारत पूरी दुनिया में 5वीं सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है, जबकि एशिया में यह तीसरे स्थान पर है। परंतु यह हमेशा इतनी अच्छी स्थिति में नहीं था। वास्तव में, 20वीं शताब्दी के अधिकांश समय हमने कई बार खुद को अनिश्चित आर्थिक और वित्तीय स्थितियों में पाया। और इसलिए, स्मार्ट मनी के इस अध्याय में, हम भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास पर एक नज़र डालेंगे और जानेंगे कि यह किस प्रकार आज जैसी मज़बूत स्थिति में विकसित हुई। आइए, शुरुआत करते हैं।
आज़ादी के बाद
दशकों तक अंग्रेज़ों द्वारा शासित होने के बाद, भारत को अंततः 1947 में स्वतंत्रता मिली। हालांकि, स्वतंत्रता से पहले और तुरंत बाद की घटनाएं जैसे कि विभाजन, बड़े पैमाने पर प्रवास और सामान्य अव्यवस्था ने हमारी अर्थव्यवस्था को जर्जर कर दिया था।
देश गरीबी, शिक्षा और साक्षरता की कमी से जूझ रहा था। विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 1952 में अपने सबसे कम स्तर 3.8% पर आ गई जो कि सन 1700 में लगभग 22.6% थी। और प्रति व्यक्ति जीडीपी 1950 में $500 से $600 के बीच रही।
1950 से 1965 के दौरान
हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत की पहली स्वतंत्र सरकार की नीतियां निजी व्यवसायों के बजाय राष्ट्र के पक्ष में थीं। और इस तरह राष्ट्र और उसके सार्वजनिक क्षेत्र के व्यवसायों के नेतृत्व में हमारी आर्थिक यात्रा शुरू हुई।
जवाहरलाल नेहरू का पहला लक्ष्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए उद्योगों और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देना था। उन्होंने काफ़ी हद तक ऐसा किया भी। 1950 से 1965 के दौरान, भारत की प्रति व्यक्ति जीडीपी औसतन 1.7% बढ़कर लगभग $800 हो गई।
1965 से 1975 के दौरान
1965 से शुरू होकर, देश ने एक विशाल हरित क्रांति देखी, जिसने उच्च उपज देने वाली बीज किस्मों, बेहतर सिंचाई और उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के माध्यम से कृषि उद्योग को पूरी तरह से बदल दिया। हरित क्रांति ने फसलों और फसल पैटर्न की उत्पादकता को बहुत मज़बूत किया।
इसके बाद श्वेत क्रांति हुई, जिसने सहकारी आंदोलनों के माध्यम से डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा दिया। 1965 से 1975 के दशक के दौरान, भारत में प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 1,000 डॉलर तक पहुंच गया। देश की जीडीपी विकास दर भी 1975 में 9.15% के उच्चतम स्तर पर थी।
1975 से 1991 के दौरान
1975 से 1991 तक 16 साल की अवधि में बहुत सारे बदलाव हुए। इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करना, जनता पार्टी का चुनाव और बाद में कांग्रेस पार्टी का फिर से चुनाव, इस समय के दौरान हुए कुछ राजनीतिक परिवर्तन थे। जनता पार्टी के प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई द्वारा 1,000 रु., 5,000 रु. और 10,000 रु. के मुद्रा नोटों का demonetisation, और स्ट्रिंजेंट फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (stringent Foreign Exchange Regulation Act) के कारण कोका कोला और आईबीएम का बाहर होना, उस समय के कुछ उल्लेखनीय आर्थिक विकास थे।
राजनीतिक और आर्थिक दोनों मोर्चों पर इस तरह के गंभीर बदलाव आने के बावजूद, भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि जारी रही| 1991 में प्रति व्यक्ति जीडीपी लगभग 1,500 डॉलर तक पहुंच गया| इस समय जीडीपी लगभग 4.55% की औसत से बढ़ रहा था।
Liberalization के बाद
1991 वह साल था जब देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से बदल गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी. नरसिम्हा राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह के प्रयासों का परिणाम फलकारी रहा जिसे Economic liberalization भी कहा गया| हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बहुत सुधार हुआ और 2010 तक जीडीपी हर पांच साल में लगभग दोगुनी होती रही। प्रति व्यक्ति जीडीपी जो कि 1991 में लगभग 1,500 डॉलर थी, बढ़ कर 2011 में लगभग $6,000 तक पहुंच गई, और यह एक बड़ा उछाल था।
liberalization से आये बदलाव जैसे लाइसेंस राज और सार्वजनिक एकाधिकार का अंत और मुक्त व्यापार की शुरुआत से ऐसा लगा कि विश्व में भारत का नाम भी दिग्गजों में शामिल हो गया है।
2011 से 2020 के दौरान
भारत ने जो बेहतरीन वृद्धि देखी, वह अंततः वर्ष 2012 से शुरू होकर धीमी हो गई। उस समय भारतीय जीडीपी की वृद्धि दर 5.6% थी। परंतु ऐसा लंबे समय के लिए नहीं हुआ और 2013-2014 की शुरुआत से हम एक बार फिर विकास की राह पर चल पड़े। 2016 में 8.3% के एक और उच्च स्तर को छूने के बाद, जीडीपी विकास दर 2019 में एक बार फिर से धीमी होकर 4.2% हो गई। हालांकि 2020 में COVID-19 महामारी की शुरुआत ने प्रभावी रूप से हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था को काफी नुकसान पहुंचाया, फिर भी हम विशेषज्ञों की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हुए सुधार की राह पर चल रहे हैं।
समापन
भारतीय अर्थव्यवस्था के उदय को ध्यान में रखते हुए, यदि वर्तमान विकास दर कुछ सालों तक इसी प्रकार बढ़ती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी अर्थव्यवस्था $5 ट्रिलियन तक पहुंच जाएगी।
ए क्विक रीकैप
- विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी 1952 में सबसे कम 3.8% थी, जबकि 1700 में यह लगभग 22.6% थी। और प्रति व्यक्ति जीडीपी 1950 में $500 से $600 तक बना हुआ था।
- हमारे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली भारत की पहली स्वतंत्र सरकार की नीतियां निजी व्यवसायों के बजाय राष्ट्र के पक्ष में थीं।
- 1965 से शुरू होकर, देश ने एक विशाल हरित क्रांति देखी, जिसने फसलों की उत्पादकता और फसल के पैटर्न को प्रभावी ढंग से मज़बूत किया।
- इसके बाद श्वेत क्रांति हुई, जिसने सहकारी आंदोलनों के माध्यम से डेयरी क्षेत्र को बढ़ावा दिया।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में एक और महत्वपूर्ण मोड़ 1991 के liberalisation से आया|
- भारत ने जो बेहतरीन वृद्धि देखी, वह अंततः वर्ष 2012 से शुरू होकर धीमी हो गई, उस समय भारतीय जीडीपी की वृद्धि दर 5.6% थी। परंतु ऐसा लंबे समय तक नहीं चला और 2013-2014 की शुरुआत से हम एक बार फिर विकास की राह पर थे।
- हालांकि 2020 में COVID-19 महामारी की शुरुआत ने हमारी बढ़ती अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया, फिर भी हम विशेषज्ञों की अपेक्षाओं पर खरे उतरते हुए विकास की राह पर चल रहे हैं।
प्रश्नोत्तरी
1. अर्थव्यवस्था के तीन स्तंभ कौन से हैं?
अर्थव्यवस्था के तीन स्तंभों के बारे में अलग-अलग सिद्धांत मौजूद हैं। आमतौर पर विशेषज्ञ घरों, निगमों और बैंकों को तीन स्तंभ मानते हैं। एक अन्य विचारधारा के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), व्यक्तिगत आय और रोज़गार आर्थिक विश्लेषण के तीन स्तंभ हैं।
2. भारतीय अर्थव्यवस्था में कितने क्षेत्र हैं?
मुख्य रूप से, भारतीय अर्थव्यवस्था में क्षेत्रों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक। करीब से देखने पर, हम पाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में लगभग 30 क्षेत्र हैं।
3. जीडीपी का क्या अर्थ है?
सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अर्थव्यवस्था के आकार को मापने के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला मीट्रिक है। यह एक निश्चित अवधि में किसी देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मौद्रिक मूल्य को मापता है।
आप इस अध्याय का मूल्यांकन कैसे करेंगे?
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