निवेशक के लिए मॉड्यूल

आईपीओ, दिवाला, विलय और विभाजन

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क्या होता है जब एक स्टॉक आप खुद वितरित किया जाता है?

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अभी तक के हमारे सभी अध्यायों से आपको बहुत जानकारी मिली होगी। हमने न केवल IPO के बारे में सब जाना, बल्कि उन दूसरे फंडिंग के तरीकों पर भी फोकस किया जिसे एक कंपनी अपने बिज़नेस के समय में काम में ले सकती है। और गोइंग कंसर्न सिद्धांत के साथ थोड़ा दार्शनिक रुख भी अपनाया। और अब, हम इस मॉड्यूल के आखिरी अध्याय पर हैं।

हम यहाँ यह देखेंगे कि कंपनी के कॉर्पोरेट चाल-चलन का आपके निवेश पर क्या प्रभाव पड़ता है। एक कंपनी, उसके जीवन-काल के दौरान, कुछ घटनाओं को आरंभ कर सकती है, जैसे अपने बिज़नेस को दो भागों में विभाजित करना, या किसी दूसरी कंपनी के साथ अपने बिज़नेस का विलय (मर्जर) करना। यह घटनाएँ बहुत बड़ी होती हैं और इससे इक्विटी शेयरधारकों पर बहुत प्रभाव पड़ सकता है। इस अध्याय में हम इसी के बारे में पढ़ेंगे।

डीलिस्टिंग क्या है?

कंपनी डीलिस्टिंग एक ऐसी प्रकिया है, जिसमें किसी लिस्टेड कंपनी के शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज से हटा दिया जाता है या डीलिस्ट कर दिया जाता है। भले ही यह बहुत गंभीर लगे, पर कंपनी की डीलिस्टिंग हमेशा ही एक गलत चीज़ नहीं होती, क्योंकि ऐसा कभी-कभी तो कंपनी की स्वेच्छा या कंपनी के अनुरोध पर भी हो सकता है।

आइए दो उदाहरणों पर नज़र डालते हैं जहां किसी कंपनी के शेयरों को स्टॉक एक्सचेंजों से हटाया जा सकते हैं।

स्वैच्छिक डीलिस्टिंग (वोलंटियरिंग)

यहां, कंपनी खुद स्टॉक एक्सचेंजों से अपने शेयरों को डीलिस्ट करने के लिए एक औपचारिक अनुरोध करती है। कंपनी बहुत अलग-अलग कारणों से ऐसा कर सकती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई कंपनी किसी दूसरी कंपनी के साथ विलय करने का प्लान कर रही है, तो मैनेजमेंट औपचारिक रूप से एक्सचेंजों से अपने शेयरों को हटाने के लिए एक आवेदन कर सकती है।

अनिवार्य डीलिस्टिंग (कम्पलसरी)

जब किसी कंपनी के शेयरों को सेबी द्वारा बलपूर्वक डीलिस्टि किया जाता है तो इस प्रक्रिया को अनिवार्य डीलिस्टिंग कहते है। आमतौर पर, जब एक कंपनी जो सेबी द्वारा बनाए गए लिस्टिंग-गाइडलाइंस का पालन नहीं करती है या कंपनी स्टॉक एक्सचेंज की नियामक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करती है तो उसे सेबी द्वारा डीलिस्ट कर दिया जाता है। हाँ, जरूरी नहीं है कि यही इसका एकमात्र कारण हो, इसके कई और कारण भी हो सकते है जैसे अपर्याप्त बाजार पूँजीकरण या कम शेयर मूल्य।

जब एक कंपनी अपने शेयर डीलिस्ट करती है तो आपके निवेश का क्या होता है?

आपके निवेश की स्थिति इस बात पर निर्भर करती है कि कोई कंपनी स्वेच्छा से डीलिस्ट कर रही है या अनिवार्य रूप से डीलिस्ट हो रही है। तो, आइए दोनों पर ही एक नज़र डालते हैं: 

जब एक कंपनी स्वेच्छा से डीलिस्ट करती है

जब कोई कंपनी वोलंटियर डिलिस्टिंग करती है तो वह जनता द्वारा खरीदे गए शेयर्स को रिवर्स बुक बिल्डिंग नाम की प्रकिया की मदद से वापिस खरीद लेती है। इस प्रकिया में पब्लिक शेयरहोल्डर्स को अपने हिसाब से बायबैक की कीमत निर्धारित करने का अधिकार होता है। और जिस कीमत पर सबसे ज्यादा बोलियाँ लगती हैं, वह ही बायबैक के कट-ऑफ प्राइस के तौर पर निर्धारित हो जाती है। 

एक बार कट-ऑफ मूल्य निर्धारित होने के बाद, कंपनी या तो इसे स्वीकार कर सकती है या एक दूसरा ऑफर दे सकती है। अगर कंपनी कट-ऑफ प्राइस स्वीकार कर लेती है, तो बाय बैक यानी शेयरों की वापिस खरीद होती है। कंपनी के बायबैक को तब सफल माना जाता है जब जनता से शेयर खरीदने के बाद, प्रोमोटर्स की कुल शेयरधारिता कंपनी की कुल शेयर कैपिटल की 90% तक हो जाती है। 

तो अगर कंपनी खुद ही डीलिस्टिंग के लिए जाती है तो आप अपने शेयरों को कट-ऑफ कीमत पर कंपनी को बेचकर फिर से अपने निवेश को प्राप्त कर सकते हैं। 

हाँ, अगर आप रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया में भाग नहीं ले पाए, तो भी आप अपने शेयर्स अपने पास रख सकते हैं। लेकिन क्योंकि कंपनी ने शेयर को एक्सचेंज से ही हटा दिया है तो आपको अपने शेयर्स बेचने में मुश्किल आ सकती है। हाँ, पर अगर आप अभी भी किसी तरह ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) बाज़ार में अपने शेयरों के लिए खरीदार ढूंढ लेते है, तो आप अभी भी अपने शेयर्स को बेच सकते हैं और अपने निवेश को फिर से पा सकते हैं।

जब कोई कंपनी अनिवार्य रूप से डीलिस्ट होती है –

एक अनिवार्य डीलिस्टिंग में, कंपनी के प्रोमोटर जनता से शेयर वापिस खरीदते हैं। हाँ, इसमें किस कीमत पर बायबैक होगा यह एक स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता की सहायता से निर्धारित किया जाता है ना कि रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के ज़रिये।

लेकिन इस मामले में सावधान बरतनी चाहिए, जब कंपनी अनिवार्य रूप से डीलिस्ट होती है तो ऐसी स्थिति में प्रोमोटरों को शेयर बेचकर अपने निवेश को निकाल लेना एक अच्छा विचार होता है। क्योंकि आपको ऐसी कंपनियों के लिए OTC मार्केट में भी खरीदार मिलने की संभावना बहुत कम है। और मान लीजिए कि अगर आपको कोई खरीदार मिल भी गया तो भी आपको अपने शेयर काफी कम कीमत पर बेचने पड़ सकते है।

रीलिस्टिंग क्या है?

डीलिस्टिंग के विपरीत, रीलिस्टिंग वह प्रकिया है, जिसके ज़रिये एक डीलिस्ट हुई कंपनी स्टॉक एक्सचेंज पर अपने शेयरों को ट्रेडिंग के लिए फिर से लिस्ट करती है। हालांकि, रीलिस्टिंग की यह प्रक्रिया सेबी की सख्त गाइडलाइन और निगरानी में होती है। यहाँ गाइडलाइन कंपनी को डीलिस्ट करने के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं। 

  • स्वैच्छिक डीलिस्टिंग : एक कंपनी जो अपने शेयरों को स्वेच्छा से डीलिस्ट करती है, वह कंपनी डीलिस्टिंग की तारीख से 5 साल के बाद ही रीलिस्टिंग के लिए अनुरोध कर सकती है। 
  • अनिवार्य डीलिस्टिंग: एक कंपनी जो अनिवार्य रूप से डीलिस्ट हुई है वह, डीलिस्टिंग की तारीख से 10 साल खत्म होने के बाद ही रीलिस्टिंग के लिए अनुरोध कर सकती है।

जब कोई कंपनी रिलिस्ट होती है तो आपके निवेश का क्या होता है?

जब किसी कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंजों पर रीलिस्ट होते हैं, तो जनता उनमें ट्रेडिंग कर सकती है। यह आपके लिए तब उपयोगी साबित हो सकता है जब आपने किसी ऐसी कंपनी की इक्विटी में अपने निवेश को लगाए रखा था , जिसके शेयरों को हटा दिया गया था, क्योंकि यह आपको अपने निवेश से बाहर निकलने या निवेश को रिकवर करने का मौका देता है।

विभाजन क्या है? (स्पिलट-अप या डीमर्जर)

इसे स्प्लिट-अप या डीमर्जर के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकिया के ज़रिये एक एकल कंपनी, दो या दो से ज्यादा स्वतंत्र कंपनियों मे बंट जाती है, इसे ही आमतौर पर कंपनी का विभाजन माना जाता है। इसमे ज़्यादातर यह होता है कि एक कंपनी, जो बहुत से बिज़नेस में अपना हाथ जमाए बैठी होती है या आसान शब्दों मे कहें तो एक कंपनी जो बहुत से बिज़नेस कर रही होती है, वह दो या दो से अधिक कंपनियों में विभाजित हो जाती है, जिसमें से हर कंपनी किसी एक बिज़नेस को चलाती है। अधिकतर ऐसा अच्छे से मैनेजमेंट करने और अधिकतम दक्षता के साथ काम करने के लिए किया जाता है।

स्प्लिट-अप का एक बड़ा उदाहरण IDFC और IDFC बैंक है। वर्ष 2013 में, IDFC, एक गैर-बैंकिंग वित्तीय निगम (NBFC), ने आवेदन किया और RBI से बैंकिंग लाइसेंस प्राप्त किया। अप्रूवल मिलने पर, कंपनी ने दो भागों में विभाजित होने का निर्णय लिया, जिसमें IDFC और IDFC बैंक दो अलग-अलग संस्थाएँ बन गई। यह निर्णय लिया गया कि IDFC अपने कारोबार के अन्य काम संभालेगा , जबकि IDFC बैंक लोन देने और वित्तीय कारोबार पर काम करेगा।

इसी तरह, एक कपड़ा परिधान निर्माता, अरविंद लिमिटेड ने भी कंपनी को तीन संस्थाओं में विभाजित किया: अरविंद लिमिटेड, अरविंद फैशन लिमिटेड और अनूप इंजीनियरिंग। मूल कंपनी अरविंद लिमिटेड ने अपनी दो व्यावसायिक लाइनों - ब्रांडेड कपड़े और इंजीनियरिंग - को डिमर्ज कर दिया और क्रमशः दो नई कंपनियों, अरविंद फैशन लिमिटेड और अनूप इंजीनियरिंग का निर्माण किया।

जब कोई कंपनी विभाजित होती है तो आपके निवेश का क्या होता है?

जब आपने एक कंपनी में निवेश किया हो और उस कंपनी का विभाजन हो गया हो तो मौजूदा शेयरधारक के रूप में आपका निवेश कंपनी मे बना रहता है। इसके साथ ही, आपको विभाजन से बनी नयी कंपनी या इकाई के शेयर भी इश्यू किए जाएंगे। आपको ये शेयर उसी अनुपात में जारी किए जाएंगे, जिस अनुपात में आपके पास मूल कंपनी के शेयर थे।

उदाहरण के लिए, मान लें कि आप मूल कंपनी में 2,000 शेयर रखते हैं। और उसने मौजूदा शेयरधारकों के लिए 1: 2 के अनुपात में नई कंपनी के इक्विटी शेयर जारी करने का निर्णय लिया है। तब, आपको मूल कंपनी में आपके हर दो शेयरों के बदले में नई कंपनी का एक शेयर मिलेगा, मतलब 1,000 शेयर।

IDFC और IDFC बैंक डीमर्जर की स्थिति में, IDFC के मौजूदा शेयरधारकों को 1: 1 के अनुपात में IDFC बैंक के शेयर मिले थे। इसका मतलब यह था कि शेयरधारकों को IDFC के हर 1 शेयर के लिए, उन्हें IDFC बैंक का 1 शेयर मिला था। 

 

विलय क्या है?

एक कंपनी का विलय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से दो या दो से ज्यादा स्वतंत्र और अलग-अलग इकाईयां मिलकर एक इकाई बनाती हैं। एक कंपनी का विलय दो तरीकों में से एक में हो सकता है:

  • जहां दो या दो से अधिक कंपनियां मिलकर एक नई इकाई बनाती हैं और पुरानी इकाइयाँ विलय के बाद अस्तित्व में ही नहीं रहती हैं।
  • या, जहां एक कंपनी द्वारा दूसरी कंपनी को अवशोषित करके विलय किया जाता है।

 कंपनी के विलय का एक बड़ा उदाहरण, दो प्रमुख टेलिकॉम नेटवर्क सर्विस प्रोवाइडर, वोडाफोन और आइडिया का है। वोडाफोन इंडिया और आइडिया सेल्युलर दोनों ने एक साथ मिलकर एक नई इकाई ‘वोडाफोन आइडिया’ बनाई। इसी तरह, IDFC बैंक और कैपिटल फर्स्ट (NBFC) ने साथ मिलकर IDFC फर्स्ट बैंक नामक एक इकाई का निर्माण किया।

जब किसी कंपनी का विलय होता है तो आपके निवेश का क्या होता है?

डीमर्जर की तरह ही, अगर आपका ऐसी कंपनी में निवेश है जो किसी दूसरी कंपनी के साथ मर्ज हो रही है तो भी आपका निवेश कंपनी में बना रहता है। और अगर आप उस कंपनी में शेयरधारक हैं जिसे दूसरी कंपनी द्वारा अवशोषित किया जा रहा है, तो आप, अपने आप ही विलय इकाई (मर्जर वाली इकाई) में शेयर प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। आपको मर्ज की हुई नई इकाई के शेयर, पुरानी कंपनी में आपके शेयरों के अनुपात के हिसाब से ही जारी किए जाएंगे। 

वोडाफोन आइडिया मर्जर में, आइडिया सेल्युलर के मौजूदा शेयरहोल्डर्स को 1: 1 अनुपात में वोडाफोन आइडिया के शेयर मिले। इसका मतलब यह हुआ कि अपने शेयरधारकों द्वारा रखे गए आइडिया सेल्युलर के हर 1 शेयर के लिए, उन्हें वोडाफोन आइडिया का 1 शेयर मिला।

IDFC बैंक और कैपिटल फर्स्ट विलय के मामले में, कैपिटल फर्स्ट के मौजूदा शेयरहोल्डर्स को 1:10 के अनुपात में IDFC फर्स्ट बैंक के शेयर मिले। इसका मतलब यह था कि कैपिटल फर्स्ट के हर 10 शेयरों के लिए उसके शेयरधारकों को IDFC फर्स्ट बैंक का 1 शेयर मिला।

आपके निवेश का क्या होता है जब कोई कंपनी सार्वजनिक होती है, फिर निजी और फिर सार्वजनिक होती है?

हम जानते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं। क्या सही में ऐसा हो सकता है? जी हाँ, ऐसा हो सकता है। ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जहाँ एक प्राइवेट कंपनी अपने शेयरों को जनता के लिए जारी करती है, और फिर सार्वजनिक रूप से शेयरों को वापस खरीदकर एक बार फिर प्राइवेट कंपनी बन जाती है। और फिर से, यह अपने शेयरों का इश्यू जारी करके सार्वजनिक हो जाती है।

इस स्थिति का एक बेस्ट उदाहरण अमेरिकी फर्म ‘डेल टेक्नोलॉजीज़’ है। यह कंपनी वर्ष 1988 में सार्वजनिक हुई, वर्ष 2013 में जनता से शेयर वापस खरीदकर निजी हो गई और वर्ष 2018 में फिर से सार्वजनिक हो गयी।

तो हम यहाँ इस सेक्शन के शुरुआत में पूछे गए सवाल का जवाब देते है, जब एक पब्लिक कंपनी अपने आप को प्राइवेट कंपनी में बदलने का मन बनाती है तो आपने उस कंपनी में जो शेयर खरीद रखे है, उन्हें कंपनी के प्रोमोटरों द्वारा वापस खरीदा जाएगा, जैसा कि तब होता है जब कोई कंपनी स्वेच्छा से डीलिस्ट होती है।

बायबैक की कीमत या तो रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रकिया के ज़रिये तय की जाती है या कंपनी द्वारा ही तय की जाती है। कंपनी का निजीकरण तब ही पूरा माना जाता है जब कंपनी के पास बायबैक के बाद कुल शेयर कैपिटल के लगभग 90% का स्वामित्व होता है। एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद, आपको अपना निवेश वापस मिल जाएगा, बशर्ते आप अपने शेयर कंपनी को वापस बेच दें।

 जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया है, आप कंपनी के शेयरों को वापस नहीं बेचने का ऑप्शन भी चुन सकते हैं या इसके बजाय इसे अपने पास ही रख सकते हैं। ऐसे मामले में, आप या तो OTC मार्केट में इन शेयरों को बेच सकते हैं या कंपनी के सार्वजनिक होने तक अपने निवेश को बनाए रख सकते हैं और एक बार फिर शेयर बाज़ार में कारोबार शुरू कर सकते हैं।

निष्कर्ष

इस मॉड्यूल के ज़रिये, हमने एक कंपनी के लगभग हर उस पहलू पर अच्छे से ध्यान दिया है, जो एक निवेशक के रूप में आप पर प्रभाव डाल सकता है। आगे आने वाले अध्यायों और मॉड्यूल में, हम अपना पूरा ध्यान टेक्निकल एनालिसिस पर फोकस करेंगे और यह भी देखेंगे कि आप इस तकनीक से कैसे लाभ उठा सकते हैं।

अब तक आपने पढ़ा

  • कंपनी डीलिस्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी सूचीबद्ध कंपनी के शेयर को स्टॉक एक्सचेंज से हटा दिया जाता है या डीलिस्ट कर दिया जाता है।
  • किसी कंपनी के शेयर स्वैच्छिक रूप से या अनिवार्य रूप से स्टॉक एक्सचेंजों से हटाए जा सकते हैं।
  • स्वैच्छिक डीलिस्टिंग के तहत, कंपनी खुद स्टॉक एक्सचेंजों से अपने शेयरों को डीलिस्ट करने के लिए औपचारिक अनुरोध करती है।
  • जब किसी कंपनी के शेयर को SEBI द्वारा ज़बरदस्ती डीलिस्ट जाता है, तो प्रक्रिया को अनिवार्य डीलिस्टिंग के रूप में जाना जाता है।
  • जब कोई कंपनी स्वैच्छिक डीलिस्टिंग की घोषणा करती है, तो वह जनता द्वारा रखे गए शेयरों को रिवर्स बुक बिल्डिंग नामक प्रक्रिया के माध्यम से वापिस खरीद लेती है।
  • रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया में, सार्वजनिक शेयरधारकों को बायबैक मूल्य निर्धारित करने की स्वतंत्रता दी जाती है। और, अधिकतम बोली वाले मूल्य को फाइनल कट-ऑफ प्राइस मान लिया जाता है। 
  • यहां तक ​​कि एक अनिवार्य डीलिसटिंग की स्थिति में, कंपनी के प्रोमोटरों को जनता से शेयर वापिस खरीदने की आवश्यकता होती है।
  • हालाँकि, जिस मूल्य पर बायबैक होगा, वह एक स्वतंत्र मूल्यांकनकर्ता द्वारा निर्धारित किया जाता है, रिवर्स बुक बिल्डिंग प्रक्रिया के माध्यम से नहीं।
  • रीलिस्टिंग वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से एक डीलिस्ट की गई कंपनी अपने शेयरों को ट्रेडिंग के लिए स्टॉक एक्सचेंज पर फिर से सूचीबद्ध करती है।
  • एक कंपनी जिसने अपने शेयरों को स्वेच्छा से डीलिस्ट किया है, वह डीलिस्टिंग की तारीख से 5 साल की समाप्ति के बाद ही रीलिस्टिंग के लिए अनुरोध कर सकती है।
  • एक कंपनी जो अनिवार्य रूप से डीलिस्ट की गई है, वह डीलिस्टिंग की तारीख से 10 साल की समाप्ति के बाद ही रिलिस्ट करने के लिए अनुरोध कर सकती है।
  • जब किसी कंपनी के शेयर स्टॉक एक्सचेंज पर रीलिस्ट हो जाते हैं, तो वे ट्रेडिंग के लिए जनता के लिए फिर से उपलब्ध हो जाते हैं।
  • विभाजन, स्प्लिट-अप या डिमर्जर के रूप में भी जाना जाता है। यह वह प्रक्रिया या घटना जिसके माध्यम से एक एकल कंपनी दो या अधिक स्वतंत्र कंपनियों में विभाजित होती है।
  • जिस कंपनी में आपने निवेश किया है अगर उसका विभाजन होता है, तो आपको विभाजन से नवगठित इकाई (या संस्थाओं) के शेयर भी जारी किए जाएंगे।
  • जारी किए गए शेयरों की संख्या मूल कंपनी में आपकी मौजूदा हिस्सेदारी के अनुपात में होगी।
  • कंपनी विलय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से दो या अधिक स्वतंत्र और अलग-अलग इकाईयां एक एकल इकाई बनाती हैं।
  • कंपनी विलय दो तरीकों में से एक में हो सकता है:
    1. जहां दो या दो से अधिक कंपनियां मिलकर एक नई इकाई बनाती हैं और पुरानी इकाईयां विलय के बाद अस्तित्व में नहीं रहती हैं।
    2. या, जहां एक कंपनी को अवशोषित करके उसका विलय दूसरी कंपनी में हो जाता है।
  • अगर आप एक कंपनी में एक शेयरधारक हैं जिसका विलय हुआ है, तो आपको नई इकाई के शेयर मिलेंगे। 
  • मर्जर से बनी नई इकाई के शेयर, पुरानी इकाई में आपके द्वारा रखे गए शेयरों की संख्या के अनुपात में जारी किए जाते हैं।
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