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डेब्ट और सिक्योरिटीज
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गवर्नमेंट सिक्योरिटीज क्या होती हैं?
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सरकार का काम है देश को चलाना और अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टर्स को डिवेलप करने के लिए प्रोजेक्ट को लॉन्च करना. सरकार सरकारी संस्थानों, बैंको, रेलवे, एयरपोर्ट्स, सड़कें, शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्पिटलस को बनाती है और उन्हें चलाती भी है. यह एक कॉमन नॉलेज है.
हालांकि कभी आपने सोचा है कि सरकार देश को चलाने और डेवलपमेंट के लिए जरूरी प्रोजेक्ट्स को फंड करने के लिए पैसा कहां से लाती है?
एक ऑब्वियस आंसर टैक्स है. टैक्स जो हम विभिन्न प्रकार से सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट को देते हैं जो कि उस जगह के कानून पर आधारित होते हैं. गवर्नमेंट बॉडीज उस फंड का इस्तेमाल अपने कामों में करती हैं इनकम टैक्स जीएसटी इंपोर्ट ड्यूटी सभी कुछ काउंट होता है - लेकिन तब क्या होता है जब सरकार को और अधिक फंड की जरूरत होती है तो यह भी बिल्कुल वैसा ही होता है जैसे आपको जब एक्स्ट्रा फंड की जरूरत होती है यह भी बैंक को लोन लेने के लिए अप्रोच करते हैं.
इस केस में यह बैंक रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया आरबीआई है यहां पर चीजें मजेदार होने लगती हैं आरबीआई सरकार को सीधे पैसा ना देकर, इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स को लोन का ऑक्शन करा देता है (ज्यादातर रिटेल को) लोन को गवर्नमेंट सिक्योरिटीज (G-Secs) के रूप में ऑक्शन किया जाता है
तो जब आप एक (G-Sec) में इन्वेस्ट करते हैं आप एक्चुअल में सरकार के लिए जरूरी कुल धन में से कुछ हिस्सा उसे उधार दे रहे होते हैं अभी तक समझ आ रहा है? अब इस केस में आप लेंडर बन जाते हैं और गवर्नमेंट बॉरोअर बन जाती है दूसरे शब्दों में आपका सरकार पर उधा र होता है इसलिए (G-Secs) को डेब्ट इंस्ट्रूमेंट कहते हैं और क्योंकि यह उधारी है इसलिए सरकार आपको ब्याज देती है.
और या पहले से आधारित दरपर एक अंतराल पर मिलती है, यह टर्नओवर जिसके लिए यह डेब्ट इंस्ट्रूमेंट वैलिड होता है टेन्योर की समाप्ति पर आपका मूलधन (वह धन जो आपने इन्वेस्ट किया था) आपको वापस कर दिया जाता है
(G-Sec) के काम करने का यह बेसिक प्रिंसिपल है. अब जबकि आपको फंडामेंटल्स का एक आईडिया हो गया है चलिए (G-Sec) की टेक्निकल डेफिनेशंस को देखते हैं.
गवर्नमेंट सिक्योरिटीज क्या है?
गवर्नमेंट सिक्योरिटीज सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट द्वारा इशू किए गए ट्रेडेबल डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स हैं यह गवर्नमेंट के डेब्ट को इन्वेस्टर के लिए रिप्रेजेंट करते हैं , जो वास्तव में गवर्नमेंट के लिए क्रेडिटर का रोल अदा करता है. यह डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स सरकार द्वारा बैक किए जाते हैं डेब्ट के निश्चित रीपेड होने की गारंटी सरकार आपको देती है और इस गारंटी को सॉवरेन गारन्टी कहते हैं तो इस प्रकार गवर्नमेंट सिक्योरिटीज वर्चुअली जीरो रिस्क पर होती है इसीलिए यही फाइनेंसियल मार्केट में इन्हें सबसे ज्यादा सेफ इन्वेस्टमेंट ऑप्शंस में से एक बनाता है.
गवर्नमेंट सिक्योरिटीज कितने प्रकार की होती हैं?
किसी भी सब-एसेट क्लास की तरह गवर्नमेंट सिक्योरिटीज भी कई प्रकार की होती हैं जो निर्भर करती हैं:
- बॉरोअर के नेचर पर (सेंट्रल /स्टेट गवर्मेंट )
- उधारी के टेन्योर पर (शार्ट टर्म या लॉन्ग टर्म )
- ब्याज की दर के प्रकार पर (फिक्स्ड या फ्लोटिंग )
मोटे तौर पर कहा जाये तो इंडियन डेब्ट मार्केट में हमें चार प्रकार की गवर्नमेंट सिक्योरिटीज मिलती है.
- ट्रेजरी बिल्स (T-bills)
- कैश मैनेजमेंट बिल (CMBs)
- डेटेड g-sec
- स्टेट डेवलपमेंट लोन (SDLs)
चलिए गवर्नमेंट सिक्योरिटीज को और अधिक अच्छे तरीके से समझने के लिए इनमें से प्रत्येक कैटेगरी को ध्यान से देखते हैं
टी बिल्स क्या है?
ट्रेजरी बिल्स शॉर्ट टर्म के डेब्ट इंस्ट्रूमेंट हैं यहां पर वो सब कुछ है जो आपट्रेजरी बिल्स के बारे में जानना चाहोगे
- (T-bills) सेंट्रल गवर्नमेंट ऑफ इंडिया द्वारा इशू किए जाते हैं स्टेट गवर्नमेंट ट्रेजरी बिल्स को इशू नहीं कर सकती.
- इन्हें 3 अलग-अलग मैच्योरिटी पीरियड्स के लिए इशू किया जाता है:
➢91 दिन
➢182 दिन
➢364 दिन
- T-bills zero-coupon इंस्ट्रूमेंट है. इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि ट्रेजरी बिल्स आपको कोई ब्याज नहीं देंगे वास्तव में इन्हें डिस्काउंट पर इशू किया जाता है और मैच्योरिटी पर आप फेस वैल्यू पर इन्हें रिडीम कर सकते हैं.
यहां पर एक उदाहरण है जिससे आप टी बिल के काम करने का तरीका समझ सकते हैं चलिए मान लेते हैं एक 91 दिन का ट्रेजरी बिल जिसकी फेस वैल्यू ₹100 है आपको ₹2 के डिस्काउंट पर इशू किया जाता है तो आप इसे ₹98 में खरीदते हैं 91 दिन के बाद आपके t-bill को गवर्नमेंट द्वारा ऑटोमेटिकली फेस वैल्यू पर आपके डीमैट अकाउंट में रीडीम कर दिया जाता है जो कि ₹100 है तो वास्तव में आपने 91 दिन के अंतराल पर उस टी बिल से ₹2 कमाए
कैश मैनेजमेंट बिल्स क्या होते हैं (CMBs)?
कैश मैनेजमेंट बिल भी सेंट्रल गवर्नमेंट द्वारा टेंपरेरी कैश फ्लो की रिक्वायरमेंट को पूरा करने के लिए डेब्ट इंस्ट्रूमेंट की तरह इशू किए जाते हैं यहां पर कैश मैनेजमेंट बिल्स पर एक छोटा विवरण दिया हुआ है
- CMBs को इंडियन फिनेंशियल मार्केट में अभी हाल ही में 2010 में इंट्रोड्यूस किया गया था.
- ट्रेजरी बिल्स की तरह कैश मैनेजमेंट बिल्स भी जीरो कूपन इंस्ट्रूमेंट्स हैं तो यह भी इन्वेस्टर को कोई इंटरेस्ट पे नहीं करते हैं
- बजाय इसके यह डिस्काउंट पर इशू होते हैं और फेस वैल्यू पर रेडियम किए जाते हैं.इस प्रकार यह आपके इन्वेस्टमेंट पर आपको पॉजिटिव रिटर्न देते हैं
- T-bills और CMBs के बीच में की डिफरेंस टेन्योर का है जहां t-bills तीन अलग-अलग टेन्योर (91 दिन 182 दिन 364 दिन) के लिए होते हैं, जैसा कि आपने पिछले सेक्शन में देखा कैश मैनेजमेंट बिल 91 दिन में मेच्योर हो जाते हैं
तो इस प्रकार इन्हें अल्ट्रा शॉर्ट टर्म इंस्ट्रूमेंट कहते हैं सरकार के लिए यह शॉर्ट टर्म कैश रिक्वायरमेंट्स को पूरा करने में मदद करते हैं और आपके लिए, इन्वेस्टर के लिए यह उनके शॉर्ट टर्म गोल्स को फुलफिल करते हैं.
dated G-Secsक्या होते हैं?
Dated G-Secs गवर्नमेंट द्वारा लोंग टर्म डेट इंस्ट्रूमेंट के रूप में इशू किए जाते हैं इन्हें सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट द्वारा इशू किया जाता है और इनका मेच्योरिटी पीरियड 5 साल से 30 साल या उससे अधिक अंतराल के लिए होता है जो कि Dated G-Secs के प्रकार पर डिपेंड करता है इन इंस्ट्रूमेंट को डेटेड सिक्योरिटीज कहते हैं क्योंकि इनके नाम में डेट ऑफ मैच्योरिटी होती है
उदाहरण के लिए इस गवर्नमेंट सिक्योरिटी को उसके नाम के साथ देखिए
6.45% GS 2029
इसे तोड़ने पर हमें यह मिलता है.
- पहला पार्ट वार्षिक ब्याज दर को रिप्रेजेंट करता है: 6.45%
- दूसरा पाठ यह बताता है कि इंस्ट्रूमेंट एक गवर्नमेंट सिक्योरिटी है (GS)
- और तीसरा पार्ट इसका मैच्योरिटी वर्ष दर्शाता है: 2029
G-Secs कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे:
- फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स
- फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स
- कैपिटल इंडेक्सड बॉन्ड
- इन्फ्लेशनइंडेक्सड बॉन्ड्स
- स्पेशल सिक्योरिटीज
- वॉन्ड्स with पुट ऑप्शंस और कॉल ऑप्शंस
- स्पेशल ट्रेडिंग ऑफ रजिस्टर्ड इंटरेस्ट एंड प्रिंसिपल ऑफ सिक्योरिटीज(STRIPS)
- सावरेन गोल्ड बॉन्ड्स(SGBs)
इनमें से पहले दो फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स और फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स बहुत ही कॉमन है चलिए इन G-Secs को और अधिक डिटेल में समझते हैं
क्या होते हैं फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स?
फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स, जैसा कि नाम में ही दिख रहा है ,मेच्योरिटी पूरी होने तक पूरे समय अंतराल के दौरान फिक्स्ड रेट के ब्याज को ऑफर करते हैं. इंटरेस्ट हाफइयरली पे किया जाता है और टेन्योर की समाप्ति पर इन्वेस्टर को मूलधन वापस कर दिया जाता है.
यहां पर एक एग्जांपल है जिससे आप समझ सकते हैं की फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स कैसे काम करते हैं . उस बांड को लीजिए जिसे हमने पिछले सेक्शन में देखा था - 6.45% GS 2029.
- यह बांड अक्टूबर 7 2019 को इशू हुआ था.
- यह 10 साल के बाद 7 अक्टूबर 2029 को मेच्योर होता है.
- बांड का एनुअल रेट ऑफ इंटरेस्ट है 6.45%.
इसका मतलब है कि इस सिक्योरिटी पर इंटरेस्ट 3.225% की दर पर हाफ इयरली पे किया जाएगा ( हाफ इयरली पेमेंट एनुअल इंटरेस्ट रेट के हाफ रेट पर दी जाएगी 6.45%). 2029 तक, हर साल 7 अप्रैल और 7 अक्टूबर को फेस वैल्यू पर ब्याज दिया जाएगा
फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स क्या होते हैं?
फिक्स्ड रेट बॉन्ड्स की तरह फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स फिक्स्ड रेट ऑफ इंटरेस्ट के साथ नहीं आते इनका इंटरेस्ट रेट बदलता रहता है और इसे पहले से निर्धारित समय अंतराल जैसे कि हर 6 महीने या हर साल पर रिसेट कर दिया जाता है और यह मैच्योरिटी तक जारी रहता है . फ्लोटिंग रेट बॉन्ड्स में इन्वेस्ट करने की अच्छी बात यह है कि जब इकनोमिक और मार्केट कंडीशन अच्छी होती हैं और ब्याज दर ऊपर जाती है तो आप इस डेवलपमेंट का फायदा ले सकते हैं
स्टेट डेवलपमेंट लॉन्स क्या होते हैं (SDLs)?
सेंट्रल गवर्नमेंट की तरह स्टेट गवर्नमेंट को भी समय-समय पर उनकी डेवलपमेंट एक्टिविटीज के लिए एडिशनल फंड की जरूरत होती है और इन जरूरतों को पूरा करने के लिए वो भी डेब्ट इंस्ट्रूमेंट को एसडीएलसी या स्टेट डेवलपमेंट लोन्स के रूप में इशू करते हैं. SDLs के बारे में कुछ मुख्य जानकारियां यहां हैं.
- इन्हें भारत में सिर्फ स्टेट गवर्नमेंट के द्वारा ही इशू किया जा सकता है.
- SDLs स्टेट गवर्नमेंट को उनकी एक्टिविटीज के लिए फंड इकट्ठा करने में मदद करती हैं और उनकी बजट की जरूरतों को पूरा करती है .
- डेटेड जी सिक्योरिटीज की तरह एसडीएलसी अर्ध वार्षिक ब्याज देती हैं
- इनके इन्वेस्टमेंट टर्नओवर में एक बड़ी रेंज आती है.
रैपिंग अप
इसमें आपको एक फेयर आईडिया दे दिया होगा कि कैसे भारत की गवर्नमेंट सिक्योरिटीज मार्केट काम करती है लेकिन याद रखिए गवर्नमेंट सिक्योरिटीज डेब्ट मार्केट का केवल एक सेगमेंट है
डेब्ट मार्केट के.दूसरे सेगमेंट क्या है जानना चाहते हैं? कॉरपोरेट बॉन्ड्स को समझने के लिए अगले चैप्टर की तरफ चलिए जो कि इंडियन मार्केट के दूसरे डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स में से एक है.
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