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विकल्प और वायदा का परिचय
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ऑप्शंस सिद्धांत के ग्रीक्स
4.3
20 मिनट पढ़े


पिछले अध्याय में, हमने ऑप्शंस ट्रेडिंग के व्यावहारिक पक्ष को देखा। और अब, आपकी सैद्धांतिक जागरुकता को थोड़ा और मज़बूत करने का समय आ गया है। और इसके लिए हम इस अध्याय में, ऑप्शन थ्योरी के ग्रीक ऑप्शन सेगमेंट पर चर्चा करेंगे। शायद आप सोच रहे होंगे कि यह सब क्या है, तो चलिए देखते है।
ऑप्शंस ग्रीक की व्याख्या: ऑप्शन थ्योरी के ग्रीक्स क्या हैं?
इसे ऑप्शंस ग्रीक के नाम से भी जाना जाता है,यह मूल रूप से अलग-अलग मेट्रिक हैं जो ट्रेडर्स को यह समझने में मदद करते हैं कि ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की कीमत विभिन्न प्रभावशाली कारकों पर कैसे प्रतिक्रिया करती है। इसमें तीन मुख्य ऑप्शंस ग्रीक है जो निम्न है -
- डेल्टा
- गामा
- थीटा
अभी आपको यह कॉन्सेप्ट थोड़े मुश्किल लग सकते हैं, लेकिन जब आप इनके बारे में जानेंगे, तो यह आपको बहुत आसान लगेंगे। आइए, पहले ग्रीक मेट्रिक डेल्टा के बारे में जानते हैं।
ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा
तो जैसा कि आप जानते हैं कि ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट एक डेरिवेटिव है। इसका मतलब यह है कि यह मूलभूत संपत्ति से अपना मूल्य प्राप्त करता है। तो, अगर मूलभूत संपत्ति की कीमत बदल जाती है, तो ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (या इसके प्रीमियम) की कीमत भी अपने आप बदल जाएगी, सही कहा ना? एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के प्रीमियम में आए इस बदलाव को ही डेल्टा मापता है।
ऑप्शंस डेल्टा की परिभाषा
तकनीकी रूप से, ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा, मूलभूत संपत्ति की कीमत में आए बदलाव से ऑप्शन की कीमत में हुए बदलाव की दर है। इसे मूलभूत संपत्ति की कीमत में ₹1 के बदलाव से ऑप्शन की कीमत में आने वाले संभावित बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है। यह एक ऑप्शन के दिशात्मक जोखिम को दिखाता करता है।
ऑप्शंस डेल्टा को समझना
यहाँ दिशात्मक जोखिम से क्या मतलब है? मूल रूप से इसका मतलब है कि डेल्टा यह दिखाता है कि जब मूलभूत संपत्ति की कीमत एक निश्चित दिशा (ऊपर या नीचे) की तरफ जाती है तब एक ऑप्शन की कीमतों में कितना बदलाव आएगा।
- कॉल ऑप्शन में, अगर मूलभूत संपत्ति की कीमत में बढ़ोतरी होती है तो ऑप्शन की कीमत भी बढ़ेगी। (इसका विपरीत भी हो सकता है)
- पुट ऑप्शन में, अगर मूलभूत संपत्ति की कीमत बढ़ती है तो ऑप्शन की कीमत कम हो जाएगी। (इसका विपरीत भी हो सकता है)
दूसरे शब्दों में, कॉल ऑप्शंस की कीमत, मूलभूत संपत्ति की कीमत की दिशा में चलती है, जबकि पुट ऑप्शन की कीमत, मूलभूत संपत्ति की कीमत की विपरीत दिशा में चलती है।
इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए यहाँ दिया गया उदाहरण देखते है। गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयरों को मूलभूत संपत्ति मानकर कॉल और पुट ऑप्शंस को दिए गए हैं:
ए |
बी |
सी |
डी |
ई |
ऑप्शंस का प्रकार |
ऑप्शन की कीमत (₹ में) |
ऑप्शन डेल्टा |
शेयर की कीमत ₹1 बढ़ने पर ऑप्शन की कीमत (₹ में) (बी + सी) |
शेयर की कीमत ₹1 घटने पर ऑप्शन की कीमत (₹ में) (बी-सी) |
कॉल |
5.00 |
+0.75 |
5.75 |
4.25 |
कॉल |
2.50 |
+0.30 |
2.80 |
2.20 |
पुट |
3.00 |
-0.25 |
2.75 |
3.25 |
पुट |
4.00 |
-0.60 |
3.40 |
4.60 |
डेल्टा की दिशात्मक चाल
- कॉल ऑप्शन का डेल्टा हमेशा 0 से 1 के बीच ही होता है (एक ही दिशा में चाल)।
- और पुट ऑप्शन का डेल्टा हमेशा 0 से -1 (विपरीत दिशा में) के बीच होता है।
ऊपर दिए गए चार्ट को देखने पर, आप शायद इस बारे में सोच रहे होंगे कि ऑप्शन डेल्टा की वैल्यू दोनों तरफ 1 तक ही सीमित क्यों है? यह बहुत आसान है। जैसे कि आप जानते हैं कि ऑप्शंस की कीमत, मूलभूत संपत्ति से ली जाती है। तो अब देखा जाए तो, डेरिवेटिव की कीमत, संपत्ति की कीमत से ज्यादा तो बदल नहीं सकती है, सही कहा ना?
उदाहरण के लिए, हम ऊपर वाले चार्ट से कॉल ऑप्शन को लीजिए और मानिए कि गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयर की कीमत ₹1 से बढ़ जाती है। तो अब कॉल ऑप्शन, जो गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयर से अपनी वैल्यू प्राप्त करता है वह एक ₹1 से ज्यादा नहीं बढ़ सकता, है ना? अब इसी तरह ऊपर के उदाहरण से पुट ऑप्शन लेते हैं और मानिए कि गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयर की कीमत ₹1 से बढ़ जाती है। तो अब पुट ऑप्शन, जो गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयर से अपनी वैल्यू प्राप्त करता है वह एक ₹1 से ज्यादा नहीं घट सकता है।
अगर दूसरे शब्दों में कहें तो, डेरिवेटिव, मूलभूत संपत्ति से ना तो ज्यादा बढ़ सकते हैं और ना कम हो सकते हैं। इसलिए ऑपशंस डेल्टा, कॉल के लिए 0 और 1 के बीच और पुट के लिए 0 और -1 के बीच तक ही सीमित है। यहाँ इस जानकारी को तस्वीर के रूप में दिखाया गया है।
दिशात्मक जोखिम का आकलन करने के लिए डेल्टा का उपयोग करना
चलिए, 2 कॉल ऑप्शंस लेते हैं, और उनकी जानकारी ये रही:
ए |
बी |
सी |
डी |
ऑप्शन की कीमत (₹ में) |
डेल्टा |
शेयर की कीमत ₹1 बढ़ने पर ऑप्शन की कीमत (ए + बी) |
शेयर की कीमत ₹1 घटने पर ऑप्शन की कीमत (ए - बी) |
10 |
+0.90 |
10.90 |
9.10 |
2 |
+0.10 |
2.10 |
1.90 |
हम देख सकते हैं कि शेयर की कीमत में समान बदलाव पर, उच्च डेल्टा वाले कॉल ऑप्शन की कीमत में ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है जबकि कम डेल्टा वाले कॉल ऑप्शन में कम उतार-चढ़ाव होता है। इसलिए, ऊंचे या ज़्यादा डेल्टा वाले ऑप्शंस में ज्यादा दिशात्मक जोखिम होता है क्योंकि उनकी वैल्यू में मूलभूत शेयर की कीमत में हर ₹1 के बदलाव पर ज्यादा उतार-चढ़ाव होता है।
एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का गामा
ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट के डेल्टा में उतार-चढ़ाव होता रहता है। और उतार-चढ़ाव एक ही दर पर नहीं होता है। तो, आप डेल्टा में इन बदलावों का आकलन कैसे करेंगे? बस यही पर गामा हमारी मदद करता है।
ऑप्शंस गामा की परिभाषा
एक ऑपशंस कॉन्ट्रैक्ट का गामा, मूलभूत संपत्ति की कीमत में आए बदलाव से ऑप्शन के डेल्टा में आए बदलाव की दर है। दूसरे शब्दों में, यह मूलभूत संपत्ति की कीमत में ₹1 के बदलाव पर ऑप्शन के डेल्टा में आने वाला अपेक्षित बदलाव है। यह एक ऑप्शन के दिशात्मक जोखिम में हुए बदलाव को दर्शाता है।
गामा को समझना
गामा को समझने के लिए, हमें पहले यह देखना होगा कि मूलभूत संपत्ति की कीमत बढ़ने पर किसी ऑप्शन का डेल्टा कैसे बदलता है। डेल्टा में निम्न तरह से बदलाव हो सकता है -
- कॉल ऑप्शन के लिए, एसेट की कीमत बढ़ने पर डेल्टा बढ़ेगा (और इसके विपरीत होने पर उल्टा होगा )।
- एक पुट ऑप्शन के लिए, एसेट की कीमत बढ़ने पर डेल्टा घट जाएगा (और इसके विपरीत होने पर उल्टा होगा)।
दूसरे शब्दों में, कॉल ऑप्शन का डेल्टा मूलभूत संपत्ति की कीमत की दिशा में चलता है, जबकि पुट विकल्प का डेल्टा मूलभूत संपत्ति की कीमत के विपरीत दिशा में चलता है।
इसे और बेेहतर समझने के लिए यहाँ दिया गया उदाहरण देखते हैं। गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स के शेयरों को मूलभूत संपत्ति मानकर, इन कॉल और पुट ऑप्शंस पर नज़र डालें:
ए |
बी |
सी |
डी |
ई |
ऑप्शन का प्रकार |
मूल डेल्टा |
गामा |
शेयर की कीमत ₹1 बढ़ने पर नया डेल्टा (बी + सी) |
शेयर की कीमत ₹1 घटने पर नया डेल्टा(बी - सी) |
कॉल |
+0.50 |
+0.05 |
+0.55 |
+0.45 |
कॉल |
+0.10 |
+0.02 |
+0.12 |
+0.08 |
पुट |
-0.25 |
+0.04 |
-0.21 |
-0.29 |
पुट |
-0.40 |
+0.10 |
-0.30 |
-0.50 |
तो, ऊपर दिए गए टेबल में आप देख सकते हैं कि जब शेयर की कीमत बढ़ती है, तो एक कॉल का डेल्टा भी बढ़ जाता है,पर पुट का डेल्टा गिर जाता है। और ऐसे ही, पहले पुट ऑप्शन के मामले में, डेल्टा -0.25 से -0.21 में बदल जाता है। गणितीय रूप से, आप मान सकते हैं कि इसका मतलब यह है कि डेल्टा बढ़ा है (चूंकि नेगेटिव 25 गणित में नेगेटिव 21 से कम है)।
हालांकि, आपको यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि यहां नेगेटिव साइन केवल गुणात्मक है, क्योंकि यह केवल कीमत में बदलाव की दिशा के बारे में बताता है। इसलिए, -0.25 यहाँ -0.21 से अधिक है, क्योंकि यह बदलाव की उच्च दर को दर्शाता है।
कॉल और पुट ऑप्शन के लिए गामा
हमने देखा कि कीमत में बदलाव होने पर कॉल और पुट ऑप्शन के लिए डेल्टा कैसे बदलता है। लेकिन ये बदलाव क्या दर्शाता है? डेल्टा के बदलावों को इस तस्वीर के ज़रिए समझ सकते हैं:
ऊपर की तस्वीर में आप देख सकते हैं कि कैसे शेयर की कीमत बढ़ने पर कॉल ऑप्शन ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं, जबकि पुट ऑप्शन कम संवेदनशील रहते हैं। इसका मतलब यह है कि जब शेयर की कीमत ₹1 से बढ़ती है, तो कॉल ऑप्शन का डेल्टा, एक पुट ऑप्शन के डेल्टा में आई कमी के मुकाबले ज़्यादा बढ़ता।
इसके विपरीत, जब शेयर की कीमत कम हो जाती है, तो पुट ऑप्शन, शेयर की कीमत में हुए बदलाव के लिए ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं, जबकि कॉल विकल्प कम संवेदनशील होते हैं। इसका मतलब यह है कि जब शेयर की कीमत ₹1 कम हो जाती है तो पुट ऑप्शन का डेल्टा, कॉल ऑप्शन में आई कमी से ज्यादा बढ़ेगा।
ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट में थीटा
इस मॉड्यूल के अध्याय 5 में, हमने देखा कि एक ऑप्शन का आंतरिक मूल्य क्या है, आपको तो याद होगा ही? आप एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के लिए जो प्रीमियम का भुगतान करते हैं, उसमें दो घटक होते हैं - बाहरी मूल्य और आंतरिक मूल्य।
|
बाहरी मूल्य, एक ऑप्शन की टाइम वैल्यू और उसके चलते ऑप्शन की अस्थिरता को मिलाकर बनता है। अब, जैसे-जैसे कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी डेट करीब आती है, एक ऑप्शन की टाइम वैल्यू घटती जाती है। और इससे बाहरी मूल्य भी गिर जाता है। इसी वजह प्रीमियम (या ऑप्शन की कीमत) भी गिर जाता है। इसे टाइम डिके यानी समय क्षय के रूप में जाना जाता है, और ऑप्शन थीटा इस मेट्रिक को मापने में मदद करता है।
एक ऑप्शन की वैल्यू समय के साथ कम क्यों हो जाती है?
मानिए कि निफ्टी का स्पॉट प्राइस ₹9000 है। आप ₹9200 के स्ट्राइक प्राइस पर एक निफ्टी कॉल खरीदते हैं। इस ऑप्शन के आपके लिए लाभकारी होने के लिए, निफ्टी स्पॉट को ₹9200 तक बढ़ना चाहिए, है ना? चलिए इसके लिए विभिन्न समय सीमाओं पर ध्यान देते हैं -
- मानिए कि आपका कॉल 30 दिन में एक्सपायर हो जाएगा। तो, निफ्टी स्पॉट के 30 दिनों में 200 अंक तक बढ़ने की कितनी संभावना है? बहुत ज्यादा संभावना है।
- अब मानिए कि एक्स्पायरी में 10 दिन हैं। इस समय कितनी संभावना है कि निफ्टी स्पॉट 9200 को छू लेगा? थोड़ी संभावना है, लेकिन बहुत ज्यादा नहीं।
- अब मानिए कि एक्स्पायरी में 5 दिन हैं, तो कितना संभव है कि निफ्टी स्पॉट 9200 तक जाएगा? इसकी संभावना ज्यादा नहीं है।
- और एक्स्पायरी के 1 दिन पहले के बारे में क्या? यह संभावना तो बहुत ज्यादा ही कम है।
तो, यहाँ यह साफ हो जाता है कि जैसे-जैसे एक्सपायरी नज़दीक आती जाती है, वैसे-वैसे ही ऑप्शन के इन द मनी पर एक्सपायर होने की संभावना भी कम होती जाती है। यही कारण है कि इसका मूल्य भी नीचे चला जाता है।
ऑप्शन थीटा की परिभाषा
एक्यपायरी के करीब आने पर ऑप्शन की कीमत में हर दिन आने वाली कमी को थीटा के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह हर गुज़रते दिन के साथ ऑप्शन प्रीमियम में अपेक्षित गिरावट को मापने में मदद करता है। आइए, इस अवधारणा को बेहतर ढंग से समझने के लिए एक उदाहरण देखें।
ए |
बी |
सी |
डी |
ऑप्शंस की शुरुआती कीमत (₹ में) |
थीटा |
1 दिन के बाद ऑप्शंस की अपेक्षित कीमत (ए - बी) |
10 दिन के बाद ऑप्शंस की अपेक्षित कीमत [ए- (बी * 10)] |
10.00 |
-0.25 |
9.75 |
7.50 |
2.50 |
-0.05 |
2.45 |
2.00 |
1.00 |
-0.01 |
0.99 |
0.90 |
आप यहाँ देख सकते हैं कि दिन बीतने के साथ-साथ ऑप्शन की कीमत कैसे कम हो जाती है? हालांकि, यहाँ हमने माना है कि स्पॉट प्राइस में कोई बदलाव नहीं है, यानी आंतरिक मूल्य में भी कोई बदलाव नहीं है। थीटा हमेशा नेगेटिव होता है क्योंकि यह ऑप्शन की कीमत में गिरावट को दर्शाता है।
ऑप्शंस का थीटा
ऑप्शंस थीटा, ऑप्शन के बाहरी मूल्य पर निर्भर करता है। बाहरी मूल्य जितना अधिक होता है, उतना ही उच्च थीटा होता है। इसे समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं:
मान लीजिए कि आप शेयरों के 3 कॉल ऑप्शन खरीदते हैं जिनका बाज़ार मूल्य ₹200 है। हर कॉल ऑप्शन की एक्स्पायरी 45 दिन बाद है। यहाँ बाकी की जानकारी दी गई है:
ए |
बी |
सी |
डी |
ई |
|
कॉल ऑप्शन का स्ट्राइक प्राइस (₹ में) |
ऑप्शन की कीमत (प्रीमियम) (₹ में) |
आंतरिक मूल्य (₹ में) (बाजार मूल्य - स्ट्राइक प्राइस) (0 अगर, आंतरिक मूल्य नेगेटिव है) |
बाहरी मूल्य (₹ में) (बी-सी) |
थीटा |
|
1 |
150 (ITM) |
60 |
50 |
10 |
-0.03 |
2 |
200 (ATM) |
20 |
0 |
20 |
-0.07 |
3 |
240 (OTM) |
5 |
0 |
5 |
-0.01 |
जैसा कि आप देख सकते हैं, थीटा उन ऑप्शंस के लिए अधिक है जहां बाहरी मूल्य अधिक है।
निष्कर्ष
ये ऑप्शंस से जुड़े कई ग्रीक्स में से कुछ हैं। और इसी के साथ हमने ऑप्शंस ग्रीक को समझ लिया है। ये ग्रीक्स, जानने के लिए कुछ सबसे महत्वपूर्ण अवधारणाओं में एक हैं, खासकर तब जब आप ऑप्शन ट्रेडिंग में शुरुआत कर रहे हों। जब हमने ऑप्शंस के बारे में बहुत कुछ सीख लिया है, तो अब समय आता है फ्युचर मार्केट के बारे में जानने का। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए आपको अगला अध्याय पढ़ना होगा।
अब तक आपने पढ़ा
- ऑप्शंस ग्रीक वह अलग-अलग मेट्रिक हैं जो ट्रेडर्स को यह समझने में मदद करते हैं कि ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की कीमत विभिन्न प्रभावशाली कारकों पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं।
- तीन मुख्य ग्रीक्स हैं: डेल्टा, गामा और थीटा।
- ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट का डेल्टा, मूलभूत संपत्ति की कीमत में आए बदलाव से ऑप्शन की कीमत में हुए बदलाव की दर है।
- इसे मूलभूत संपत्ति की कीमत में ₹1 के बदलाव से ऑप्शन की कीमत में आने वाले संभावित बदलाव के तौर पर देखा जा सकता है।
- यह एक ऑप्शन के दिशात्मक जोखिम को दर्शाता है।
- कॉल ऑप्शन में, अगर मूलभूत संपत्ति की कीमत में बढ़ोतरी होती है तो ऑप्शन की कीमत भी बढ़ेगी। (इसका विपरीत भी हो सकता है)
- पुट ऑप्शन में, अगर मूलभूत संपत्ति की कीमत बढ़ती है तो ऑप्शन की कीमत कम हो जाएगी (इसका विपरीत भी हो सकता है)।
- कॉल ऑप्शन का डेल्टा हमेशा 0 से 1 के बीच रहता है और पुट ऑप्शन का डेल्टा हमेशा 0 से -1 के बीच रहता है।
- एक ऑपशंस कॉन्ट्रैक्ट का गामा, मूलभूत संपत्ति की कीमत में आए बदलाव से ऑप्शन के डेल्टा में आए बदलाव की दर है।
- यह मूलभूत संपत्ति की कीमत में ₹1 के बदलाव पर ऑप्शन के डेल्टा में आने वाला अपेक्षित बदलाव है।
- कॉल ऑप्शन के लिए, एसेट की कीमत बढ़ने पर डेल्टा बढ़ेगा (और इसके विपरीत होने पर उल्टा होगा )।
- एक पुट ऑप्शन के लिए, एसेट की कीमत बढ़ने पर डेल्टा घट जाएगा (और इसके विपरीत होने पर उल्टा होगा)।
- एक ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के लिए गए भुगतान किए गए प्रीमियम में दो घटक होते हैं - बाहरी मूल्य और आंतरिक मूल्य।
- बाहरी मूल्य, एक ऑप्शन टाइम वैल्यू और उसके चलते ऑप्शन की अस्थिरता को मिलाकर बनता है।
- जैसे-जैसे कॉन्ट्रैक्ट की एक्स्पायरी डेट करीब आती है, एक ऑप्शन की टाइम वैल्यू घटती जाती है और इससे बाहरी मूल्य भी गिर जाता है। इसी वजह प्रीमियम (या ऑप्शन की कीमत) भी कम हो जाता है। इसे टाइम डिके के रूप में जाना जाता है, और ऑप्शन थीटा इस मेट्रिक को मापने में मदद करता है।
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