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शेयरधारक किसी व्यवसाय से कैसे कमाते हैं?
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जैसा कि हमने पिछले अध्याय के अंत में देखा, जब आप स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किसी कंपनी का शेयर खरीदते हैं, तो आप उस कंपनी के शेयरधारक बन जाते हैं। वास्तविक तौर पर इसका क्या मतलब है? क्या इस तरीके से किसी कंपनी का शेयरधारक बनने का कोई फायदा है? सबसे पहले तो शेयर क्या है? अगर आपके दिमाग में ये सारे सवाल घूम रहे हैं तो उसका जवाब यहां है।
शेयर क्या है?
सीधे शब्दों में कहा जाए तो एक कंपनी की पूँजी को कई इकाइयों में बाँटा होती है। हर इकाई को एक शेयर के रूप में माना जाता है। तकनीकी रूप से एक शेयर कंपनी में स्वामित्व की एक इकाई है। प्रकृति के आधार पर दो मुख्य प्रकार के शेयर हैं।
- इक्विटी
- प्रेफरेंस
इक्विटी शेयर कंपनी के साधारण शेयर होते हैं, इसलिए इक्विटी शेयरहोल्डर कंपनी के असली मालिक कहलाते हैं। अगर आप किसी कंपनी की इक्विटी शेयर में निवेश करते हैं तो आपके पास मौजूद शेयरों की संख्या कंपनी में आपके स्वामित्व के हिस्से को दर्शाती है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि प्रेफरेंस शेयर कंपनी के बंद होने पर पूँजी चुकाने जैसे मामलों में इक्विटी शेयरों के ऊपर प्राथमिकता मिलती है।
इन दोनों किस्म के शेयरों के बीच कई अंतर हैं। चलिए उन पर नज़र डालते हैं:
आधार |
इक्विटी शेयर |
प्रेफरेंस शेयर |
डिविडेंड का रेट |
रेट बदलता रहता है, सभी लायबिलिटीज़ के भुगतान के बाद |
प्राथमिकता के आधार पर निर्धारित रेट |
परिवर्तन |
प्रेफरेंस शेयर में परिवर्तन मुमकिन नहीं |
इक्विटी शेयर में परिवर्तन मुमकिन है |
कंपनी की तरलता पर भुगतान |
सभी लायबिलिटीज़ के भुगतान के बाद |
इक्विटी शेयरधारक के भुगतान से पहले |
रिस्क का स्तर |
ज़्यादा रिस्क |
कम रिस्क |
तो ये इन दो प्रकार के शेयरों के बीच के कुछ अंतर हैं। आप जानते हैं कि किसी कंपनी में एक इक्विटी शेयरधारक बनकर आप उस कंपनी के मुनाफ़े पर एक रेसिडुअल क्लेम रखते हैं। हम इस पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करेंगे। हालाँकि यह एकमात्र तरीका नहीं है जिसमें आप एक शेयरधारक के रूप में बिज़नेस से कमाई कर सकते हैं। आप कितने समय के लिए हिस्सेदारी रखते हैं इसके आधार पर आपको एक से अधिक तरीकों से अपने निवेश पर रिटर्न पा सकते हैं।
शेयरधारकों को किसी व्यवसाय में अपने निवेश से भुगतान कैसे मिलता है?
इससे पहले कि आप किसी व्यवसाय में निवेश करें, ये जानना बेहतर है कि आखिर शेयरधारकों को भुगतान कैसे किया जाता है? आइए अब उन तरीकों पर ध्यान देते हैं जिनमें आप जैसे शेयरधारक अपने शेयरों के माध्यम से किसी व्यवसाय से कमाई कर सकते हैं।
नियमित ट्रेडिंग
यह शायद सबसे आम तरीका है जिसमें व्यापारी एक व्यवसाय से कमाई करते हैं। चूंकि स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध किसी कंपनी के शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव बना रहता है, आप अपने मुनाफ़े के लिए शॉर्ट- टर्म प्राइस मूवमेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस कॉन्सेप्ट को अच्छे तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण देखते हैं।
मान लीजिए कि आज आप एबीसी लिमिटेड का एक शेयर ₹100 में खरीदते हैं और इस शेयर को 15 दिनों के अंतराल पर ₹150 में बेचते हैं। शेयर ट्रेडिंग की इस आसान तरीके से आपने ₹50 का मुनाफा कमाया। यहाँ एक मजेदार तथ्य है कि एबीसी लिमिटेड का शेयर खरीदने पर आपको इन 15 दिनों तक एबीसी लिमिटेड का शेयरधारक माना जाएगा।
आपके शेयर की कीमत में बढ़ोत्तरी
नियमित शेयर ट्रेडिंग कम अवधि में मुनाफा कमाने के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है लेकिन ये संपत्ति बढ़ाने के लिए काफी नहीं है। इसका एक बेहतर तरीका यह होगा कि आप लंबे समय तक अपने खरीदे शेयरों की कीमत को बढ़ने दें। यह लंबी अवधि का नज़रिया है जो महीनों से लेकर वर्षों तक का भी हो सकता है। आइए इस कॉन्सेप्ट को समझने के लिए एक और उदाहरण देखते हैं।
मान लीजिए कि आपने वर्ष 2000 में इन्फोसिस का 1 शेयर ₹100 रुपए में ख़रीदा है। यह मानते हुए कि यह शेयर आपके पास 2020 तक रहा, और अब आपके शेयर की कीमत बढ़कर ₹600 हो गई है जो आपके शेयर मूल कीमत से 500% अधिक है। इसके साथ ही 20 वर्षों की निवेश अवधि के दौरान एक शेयरधारक के रूप में आपने डिविडेंड और बोनस शेयर जैसे अन्य चीज़ों का भी आनंद उठाया होगा जिसके बारे में आप अगले खंड में सीखेंगे।
डिविडेंड
सभी सूचीबद्ध कंपनियां समय-समय पर डिविडेंड के माध्यम से अर्जित मुनाफ़े के एक हिस्से को बाँटती हैं। जैसा कि हमने पिछले अध्याय में बताया था कि जब आप किसी कंपनी के शेयरधारक बन जाते हैं और उसके शेयर खरीद कर आप खुद ही इन डिविडेंड के हक़दार बन जाते हैं।
स्थापित सूचीबद्ध कंपनियां अपने शेयरधारकों को नियमित रूप से त्रिमासिक, अर्ध-वार्षिक या वार्षिक आधार पर डिविडेंड का भुगतान करती हैं। जब आप लंबे समय के लिए एक शेयर रखते हैं, तो आपको शेयरों के मूल्य में बढ़ोत्तरी के अलावा डिविडेंड भुगतान का आनंद भी मिल सकता है। यह भी ध्यान रखें कि सभी कंपनियां लाभांश का डिविडेंड का भुगतान नहीं करती हैं।
राइट्स इश्यू और बोनस शेयर
जब आप किसी कंपनी में शेयरधारक बन जाते हैं तो आपकी कमाई का एकमात्र तरीका डिविडेंड ही नहीं होता। कभी-कभी तो कंपनियां गैर-नकद तरीकों से भी शेयरधारकों को ईनाम देती रहती हैं। राइट्स इश्यू और बोनस शेयर ऐसे ही दो सबसे लोकप्रिय तरीके हैं। अब इन दोनों तरीकों के बारे में जानते हैं।
डिविडेंड भुगतान के बजाय कंपनियां कई बार अपने मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त में अतिरिक्त शेयर जारी करती हैं। शेयरों के इस नि: शुल्क वितरण को ‘बोनस इश्यू’ के रूप में जाना जाता है। आमतौर पर बोनस शेयरों को पहले से वितरित शेयरों के अनुपात में बाँटा जाता है। उदाहरण के लिए अगर कंपनी 1: 1 के आधार पर बोनस शेयर जारी करती है, तो आपको आपके हर एक मौजूदा शेयर के लिए एक बोनस शेयर मिलेगा। यह बोनस इश्यू न सिर्फ आपके शेयरों की संख्या को बढ़ाता है बल्कि यह आपके निवेश की लागत को भी कम करता है।
कंपनियां समय-समय पर डिविडेंड भुगतान के बजाय राइट्स इश्यू की घोषणा भी करती है। राइट्स इश्यू में मौजूदा शेयरधारकों को एक विशेष मूल्य पर अतिरिक्त शेयर खरीदने का विकल्प मुहैया कराया जाता है, जो मौजूदा बाज़ार मूल्य से काफी कम है। फिर एक बोनस इश्यू के समान पहले से मौजूद शेयरों के एक सेट के अनुपात में एक राइट्स इश्यू भी पेश किया जाता है।
शेयरधारिता किसी व्यवसाय में निवेश करने के दूसरे तरीकों से कैसे अलग है?
एक व्यक्तिगत निवेशक के रूप में आप किसी कंपनी के शेयर खरीदकर उस कंपनी में शेयरधारक बन जाते हैं। हालांकि और भी कई ऐसे तरीके हैं जिनसे कारोबार अपनी पूँजी जुटाते हैं। इसमें बैंक और वेंचर कैपिटलिस्ट जैसे बड़े खिलाड़ी आते हैं। ये पार्टियाँ किसी व्यवसाय में अपना पैसा एक निवेश या लोन के रूप में भी लगाती हैं। आइए देखते हैं कि यह शेयरधारिता से कैसे अलग है।
शेयरधारक बनाम वेंचर कैपिटल निवेशक
एक कंपनी में निवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति/ संस्था शेयरधारक हो सकता है। वहीं दूसरी ओर, वेंचर कैपिटल निवेशक आमतौर पर स्टार्टअप और अन्य नई कंपनियों में निवेश करते हैं, ताकि उनमें एक बड़ी मात्रा में पूँजी लगाई जा सके। दूसरे शब्दों में, उन कंपनियों में उनकी बड़ी हिस्सेदारी होती है।
शेयरधारक बनाम उधार देने वाले बैंक
स्टार्टअप और स्थापित व्यवसाय दोनों ही अपने कारोबार को चलाने के लिए बैंकों से ही कर्ज़ लेते हैं। इस माध्यम से जुटाए गए फंड की प्रकृति निवेशकों और शेयरधारकों द्वारा व्यवसाय में लगाए गए फंड से बिल्कुल अलग है। व्यवसाय के लिए उधार लिया गया कर्ज़ चुकाना ज़रूरी है, यानी बैंक उनके लेनदार हुए, निवेशक नहीं।
निष्कर्ष
अब हम इस अध्याय के अंत पर आ गए हैं और इसके साथ ही आप कई अहम सवालों के जवाब जान गए हैं, जैसे,
- शेयर क्या हैं?
- शेयरों के प्रकार क्या हैं?
- शेयरधारकों को भुगतान कैसे किया जाता है?
आइए अब इंडस्ट्री एनालिसिस (उद्योग विश्लेषण) की तरफ बढ़ते हैं - अगले अध्याय में इंडस्ट्री एनालिसिस (उद्योग विश्लेषण) के पहले चरण के बारे में पढ़ेंगे।
अब तक आपने पढ़ा
- आप जानते हैं कि किसी कंपनी में शेयरधारक बनने से आप उस कंपनी के मुनाफ़े पर एक रेसिडुअल क्लेम रखते हैं।
- चूंकि स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर की कीमतों में उतार-चढ़ाव बना रहता है, आप अपने मुनाफ़े के लिए शॉर्ट टर्म प्राइस मूवमेंट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- संपत्ति बढ़ाने के लिए एक बेहतर तरीका यह है कि आप लंबे समय के लिए शेयरों की कीमत में बढ़ोत्तरी होने दें।
- सभी स्थापित सूचीबद्ध कंपनियां अपने शेयरधारकों को त्रिमासिक, अर्धवार्षिक या वार्षिक आधार पर नियमित रूप से डिविडेंड का भुगतान करती हैं। जब आप लंबे समय के लिए एक शेयर रखते हैं तो आपको शेयरों के मूल्य में बढ़ोतरी के अलावा डिविडेंड भुगतान का भी आनंद मिलता है।
- बहुत बार डिविडेंड भुगतान के बदले कंपनियां अपने मौजूदा शेयरधारकों को मुफ्त में अतिरिक्त शेयर जारी करती है। शेयरों के इस नि: शुल्क इश्यू को बोनस इश्यू कहते हैं।
- कंपनियां समय-समय पर डिविडेंडभुगतान के बजाय राइट्स इश्यू की भी घोषणा करती हैं। राइट्स इश्यू में मौजूदा शेयरधारकों को एक विशेष मूल्य पर अतिरिक्त शेयर खरीदने का विकल्प मुहैया कराया जाता है, जो मौजूदा बाज़ार मूल्य से काफी कम होता है।
- शेयरधारिता वेंचर कैपिटल फंडिंग या बैंक फाइनेंसिंग के समान नहीं है।
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