निवेशक के लिए मॉड्यूल

आईपीओ, दिवाला, विलय और विभाजन

ज्ञान की शक्ति का क्रिया में अनुवाद करो। मुफ़्त खोलें* डीमैट खाता

* टी एंड सी लागू

व्यवसायों और स्टार्टअप के लिए पूंजी जुटाने के लिए वित्त पोषण के विकल्प।

4.3

icon icon

तो आपने अभी तक जितने भी मॉड्यूल पढ़े हैं, उन्हें पढ़ते समय, क्या आपने कभी इस बारे में नहीं सोचा कि कंपनी को अपनी शुरुआती पूँजी या पैसे कैसे मिलते हैं? अगर नहीं सोचा है, तो इसके बारे में सोचिए। शुरूआत कर रही नई कंपनी के पास कोई सुरक्षा पूँजी या पिछली पूँजी नहीं होती जिस पर वह निर्भर कर सके। सच में, एक बिलकुल नई कंपनी का अपने संचालन के लिए पैसा जुटाना बहुत मुश्किल काम होता है, क्योंकि कंपनी का बिज़नेस मॉडल अभी तक सिद्ध नहीं हुआ है। कुछ मामलों में प्रोमोटर, व्यवसाय में ज़रूरी शुरुआती पूँजी लगाकर ‘स्मॉल बिज़नेस फंडिंग’ या लघु व्यवसाय फंडिंग में मदद करते हैं। पर क्या हो, अगर प्रोमोटर किसी व्यवसाय को सपोर्ट करने के लिए वित्तीय तौर पर मज़बूत ही ना हों? इस अध्याय में हम इसी के जवाब को देखेंगे और समझेंगे।

‘स्मॉल बिज़नेस फंडिंग’ और किसी व्यवसाय के लिए फंडिंग के अन्य विकल्पों को समझने के लिए, चलिए सबसे पहले किसी व्यवसाय के जीवन चक्र पर एक नज़र डालते है।

एक व्यवसाय का जीवन चक्र

किसी व्यवसाय की लाइफ-साइकल एक निश्चित समय में व्यवसाय में हुए सभी परिवर्तनों या प्रगति की एक श्रृंखला है। चाहे कोई भी व्यवसाय या उद्योग हो, लगभग सभी प्रकार कि कंपनियाँ अपने जीवन चक्र के दौरान इन पाँच अलग-अलग चरणों से होकर गुज़रती ही हैं -

लॉन्च स्टेज

इसे स्टार्टअप स्टेज के रूप में भी जाना जाता है। लॉन्च स्टेज तब आती है जब कोई कंपनी या व्यवसाय अपना निगमन करता है, यानी अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए सभी कानूनी औपचारिकता पूरी कर लेता है। इस स्टेज में कंपनी के प्रोमोटर शुरुआत में इतना पैसा लगाते है कि कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो जाए या अपना संचालन शुरू कर सके। क्योंकि इस स्टेज में कंपनी के प्रोडक्ट या सर्विसेज़ की बिक्री बहुत कम होती है और कंपनी के आय स्रोत भी कम होते हैं, इसीलिए लॉन्च स्टेज को अक्सर कई लोग सबसे जोखिम-भरा चरण मानते हैं।

ग्रोथ स्टेज

जब कोई बिज़नेस अपने जोखिम-भरे लॉन्च स्टेज को पार कर लेता है, तो ऐसा माना जाता है कि उसने अपने ग्रोथ स्टेज यानी विकास के चरण में एंट्री ले ली है। इस स्टेज में बिज़नेस की सर्विसेज़ या प्रोडक्ट्स की बिक्री शुरू होती है और कंपनी की मार्केट में अपनी खुद की पहचान, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता बनने लगती है। और जैसे ही कंपनी की बिक्री बढ़ती है, कंपनी के पास एक स्थिर आय भी आने लग जाती है और इसके साथ ही बिक्री और उसका भुगतान मिलने के बीच का समय भी कम होता जाता है। बिक्री और राजस्व में हुए विकास की वजह से बिज़नेस को मुनाफ़ा होने लगता है। अब कंपनी का उद्देश्य, मार्केटिंग और अपने प्रोडक्ट्स के उत्पादन में बढ़ोतरी के ज़रिये अपना राजस्व बढ़ाना होता है। 

शेक-आउट स्टेज

जब कोई बिज़नेस विकास के कई स्तरों को पार कर लेता है, तो वह शेक-आउट स्टेज पर पहुंच जाता है। यहां, बिज़नेस की बिक्री तो ऊंचाई छू रही होती है, लेकिन उसकी बिक्री और राजस्व की विकास की दर कम होने लगती है। ऐसा इन दोनों कारणों में से किसी एक, या दोनों कारणों की वजह से हो सकता है:

  • बाजार की संतृप्ति
  • नए प्रतियोगियों की एंट्री

शेक-आउट स्टेज में, बिज़नेस से जुड़ी लागत और खर्च बहुत बढ़ जाता है और यही खर्चे उसके राजस्व या मुनाफ़े को खा जाते हैं, सीधे शब्दों में कहें तो बिज़नेस मुनाफ़े को कम कर देते हैं। मुनाफ़े का हिस्सा बढ़ाने के लिए, आमतौर पर बिज़नेस के खर्च और लागत में कटौती की जाती है।

मैच्योरिटी स्टेज

ऐसा कहा जाता है कि, बिक्री, राजस्व और मुनाफ़ा, जब धीरे-धीरे एक निर्धारित रेशियो में मिलने लगे, तब बिज़नेस मैच्योरिटी स्टेज पर आ जाता है। ज़्यादातर बिज़नेस जब इस स्टेज पर आते हैं, तो वह अपनी दूसरी ब्रांच खोलने और नयी टेक्नोलॉजी में निवेश करते हैं, अपने व्यवसाय में विविधता लाते हैं, और नए और उभरते बाजारों में अपने पैर पसारने की कोशिश करते है। यह कदम कंपनी के जीवन चक्र को बढ़ाने में मदद तो करता ही है, साथ ही इससे कंपनी की ग्रोथ भी हो सकती है, जो इस समय कंपनी के लिए बहुत ज़रूरी हो जाती है।

डिकलाइन स्टेज

इस स्टेज में, बिज़नेस की बिक्री और राजस्व कम होने लगता है। इस स्टेज से बिज़नेस का निकलना बहुत ही मुश्किल होता है। और अगर कोई बिज़नेस इस स्टेज से बाहर निकलना चाहता है तो उसे इसके लिए बहुत ज्यादा पैसे लगाने की ज़रूरत पड़ेगी, जो इस स्टेज में हमेशा संभव नहीं होता। आमतौर पर, जो व्यवसाय डिकलाइन स्टेज में होते हैं, वह या तो दूसरे सफल व्यवसायों के साथ विलय करने की कोशिश करते हैं, या अपने कार्यों को बंद करके बाज़ार से निकल जाते हैं। 

तो यहाँ हमने देखा कि किसी व्यवसाय का जीवन चक्र कैसा होता है, लेकिन इसमें फंडिंग के विकल्प कहां फिट होते हैं? चलिए, इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं।

व्यवसाय पैसे कैसे जुटाते हैं?

आपकी सोच से उलट, ऐसे कई तरीके हैं जिससे कोई व्यवसाय अपने लिए पूँजी जुटा सकते हैं। यहाँ तक कि कुछ बिज़नेस अपनी पूँजी जुटाने के लिए क्राउडफंडिंग का तरीका भी अपनाते हैं। पर यह फंडिंग-ऑप्शन अभी भी अपनी शुरुआती अवस्था में है और इस पर भरोसा करना सिर्फ तुक्का लगाने जैसा ही होता है। चलिए, स्मॉल बिज़नेस फंडिंग और पूँजी जुटाने के ज्यादा पारंपरिक तरीकों पर नज़र डालें।

ऋण के माध्यम से

आप शायद सबसे पहले इसी तरीके के बारे में ही सोच रहे होंगे, क्यों, सही कहा ना? लोन के ज़रिये अपने बिज़नेस की पूँजी जुटाना अभी भी फंडिंग के सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। ज़्यादातर छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप्स, लोन से अपने बिज़नेस की फंडिंग के लिए बैंकों और अन्य दूसरे वित्तीय संस्थानों की मदद लेते हैं। 

लोन के ज़रिये फंडिंग लेने लिए, बिज़नेस को अपने व्यवसाय का आइडिया, पूरी प्लानिंग, और अनुमानित कैश फ्लो समेत, एक विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट को ऋण दे रही संस्था को दिखानी होती है। अगर बैंक या दूसरे वित्तीय संस्थानों को मूल्यांकन और प्लानिंग को चेक करने के बाद लगता है कि यह बिज़नेस चल सकता है तो वह लोन दे देते हैं। 

भारत में लगभग सभी बैंक बिज़नेस के लिए कई तरह के विकल्प और शर्तों वाले बिज़नेस लोन देते हैं। कुछ बैंक तो बिना ज़मानत (सिक्योरिटी) के भी लोन दे देते हैं। और कभी-कभी बैंक बिज़नेस को लोन देने के लिए मना भी कर देते हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं, जैसे, बिज़नेस की क्रेडिट रेटिंग कम होना या बिज़नेस का बैंक की शर्तों और ज़रूरतों को पूरा ना करना। ऐसी स्थिति में, माइक्रोफाइनेंस प्रोवाइडर और गैर-बैंकिंग वित्तीय निगम (नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कॉरपोरेशन/ NBFC) आपके काम आ सकते हैं, क्योंकि बिज़नेस को लोन देने की उनकी आवश्यकताएं और शर्तें आमतौर पर बैंक की तरह कठोर नहीं होती हैं।

लॉन्च स्टेज के व्यवसायों को अक्सर ही वित्तीय संस्थानों से लोन लेने में बहुत मुश्किल आती है और इसका मुख्य कारण होता है कि वह मार्केट में अभी उतरे ही होते हैं और उन्हें मार्केट में अपना नाम बनाने में काफी समय लग सकता है। वहीं, जो बिज़नेस अभी अपनी ग्रोथ स्टेज में होते हैं, उन्हे बैंक जल्दी लोन दे देता है।

एंजेल इन्वेस्टर्स के माध्यम से

एंजेल इन्वेस्टर्स, हाई-नेट वर्थ या वार्षिक आय वाले व्यक्ति होते हैं। वे काफी मान्यता प्राप्त होते हैं और आमतौर पर अकेले काम करते हैं। वे अपने पैसे को निवेश करने के लिए रोमांचक विकल्प और स्टार्टअप की तलाश में रहते हैं। कभी-कभी, एंजेल इन्वेस्टर्स का एक समूह एक साथ मिलकर, व्यवसायों में निवेश करने के लिए एक तरह का फंड बना लेते हैं।

आमतौर पर, जिन व्यवस्यों को अपने कारोबार को शुरू करने के लिए कम फंडिंग की ज़रूरत होती है, वे पूँजी जुटाने के लिए एंजेल इन्वेस्टर्स के पास जाते हैं। एंजेल इन्वेस्टर्स को आकर्षित करने के लिए आपको अपने बिज़नेस की पूरी प्लानिंग उन्हें बतानी होती है, और एक शानदार पिच देनी होती है। किसी भी बिज़नेस में पैसा लगाने के बदले में, एंजेल इन्वेस्टर्स आमतौर पर कंपनी की इक्विटी में एक हिस्सा लेते है।

इसके अलावा, बहुत से एंजेल इन्वेस्टर्स किसी व्यवसाय की दिनचर्या में सक्रिय रूप से हिस्सा नहीं लेते। वे बिज़नेस के कैश को खर्च करने के तरीके में दखल नहीं देते। हालांकि, कुछ एंजेल इन्वेस्टर्स, जिन्होंने पूँजी का एक बड़ा हिस्सा निवेश किया हो, वह कंपनी में निदेशक-पद की मांग कर सकते हैं।

एंजेल इन्वेस्टर्स आमतौर पर उन व्यवसायों को फंडिंग देते हैं जो लॉन्च स्टेज में ही हैं और यह शायद ही कभी उन कंपनियों में निवेश करें जो अपनी ग्रोथ स्टेज में होती हैं। इसलिए, छोटे निवेश के लिए एंजेल इन्वेस्टर्स सबसे अच्छा विकल्प हैं।

 

वेंचर कैपिटलिस्ट के माध्यम से

वीसीज़ (VCs) के नाम से भी जाने जाने वाले, ये वेंचर कैपिटलिस्ट ऐसी फर्म और कॉरपोरेशन होते हैं जो अलग-अलग पार्टनरों से पैसे लेकर उस पूँजी को किसी व्यवसाय में निवेश करते हैं। आपको वेंचर कैपिटलिस्ट, एंजेल इन्वेस्टर्स की तरह लग सकते है पर ऐसा नहीं है। यह किसी बिज़नेस में बहुत ज्यादा पैसा लगाने में सक्षम होते हैं, इसलिए यह एंजेल इन्वेस्टर्स को आसानी से पीछे छोड़ देते है।

अपने निवेश के बदले में , यह वेंचर कैपिटलिस्ट बिज़नेस की इक्विटी में एक हिस्सा भी लेते हैं। और क्योंकि ये निवेशक बिज़नेस की पूँजी का एक बड़ा हिस्सा निवेश करते हैं, तो इसलिए वह बिज़नेस के प्रबंधकीय नियंत्रण में ज़्यादा अधिकार की मांग करते हैं, ज़्यादातर वह बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सीट की मांग करते हैं। एंजेल इन्वेस्टर्स के उलट, यह निवेशक आमतौर पर काफी लंबे समय तक अपना पैसा कंपनी में लगाए रखते हैं।

वेंचर कैपिटलिस्ट आमतौर पर थोड़ी मैच्योर कंपनियों मे निवेश करना पसंद करते हैं, जहां उन्हें एक सकारात्मक कैश फ्लो और बेहतर राजस्व आते हुए दिखता है। यह उन्हें ग्रोथ स्टेज वाले बिज़नेस के लिए फंडिंग का एक बेहतर स्त्रोत बनाता है क्योंकि VCs का मुख्य उद्देश्य ज्यादा विस्तार की गुंडाइश वाली कंपनियों में निवेश करना होता है। 

ऋण उपकरणों के माध्यम से

जो व्यवसाय काफी स्थापित हैं और अपने जीवन चक्र के चरण में आगे जा चुके हैं, वह आमतौर पर बॉन्ड और ऋण उपकरणों यानी डेट इंस्ट्रूमेंट जैसे डिबेंचर के ज़रिये फंडिंग का रास्ता चुनते हैं। इनके ज़रिये पूँजी जारी करने और उसे जुटाने के लिए, बिज़नेस के पास एक सफल बिज़नेस मॉडल, मज़बूत राजस्व और एक बड़ा एसेट बेस होना चाहिए। 

इसके अलावा डेट इन्स्ट्रूमेंट्स को इश्यू करने के ज़रिये फंडिंग प्राप्त करना उन व्यवसायों के लिए बेस्ट है, जिन्हें कैश-फ्लो और मैनेजमेंट पर पूरा कंट्रोल रखना पसंद है। आमतौर पर जो बिज़नेस शेक-आउट या मैच्योर स्टेज में होते है वह इस फंडिंग विकल्प को चुनते है। हालांकि, जो कंपनियाँ अभी ग्रोथ स्टेज में होती हैं, वह भी डेट इन्स्ट्रूमेंट्स के ज़रिए पूँजी जुटाने की कोशिश कर सकती हैं, लेकिन इसके सफल होने की संभावना 50-50 रहती है। क्योंकि ज़रूरी नहीं कि पब्लिक भी इनके बिज़नेस को लाभदायक समझे। 

निजी इक्विटी के माध्यम से

VCs की तरह ही, निजी इक्विटी फर्म कई निवेशकों से पैसा लेती हैं और एक प्राइवेट इक्विटी फंड बनाती हैं। आमतौर पर यह VCs की तुलना में बहुत ज्यादा पैसा लगा सकती हैं। यह प्राइवेट इक्विटी फर्म्स (PE) इस फंड को निवेश करने के बदले, आपके बिज़नेस की इक्विटी का एक हिस्सा लेती है।

प्राइवेट इक्विटी फ़र्म आमतौर पर बहुत ज्ञानी होती हैं और उनके पास बहुत सी तकनीकी और पेशेवर योग्यताएं होती हैं। ये लगभग हमेशा ही कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में एक जगह लेती हैं और बिज़नेस के कैश मैनेजमेंट के फ़ैसलों में भी इनका अधिकार होता है। प्राइवेट इक्विटी फर्म आमतौर पर शुरुआती स्टेज की कंपनियों में निवेश नहीं करती। वह उन कंपनियों में निवेश करना पसंद करते हैं जो शेक-आउट या मैच्योर स्टेज में हैं। PE निवेश उन कंपनियों के लिए बहुत अच्छा है, जिन्हें बड़ी मात्रा में पूँजी की ज़रूरत तो है, लेकिन वे सार्वजनिक तौर पर अपने शेयरों इश्यू या लिस्ट नहीं करना चाहती। 

सार्वजनिक तौर पर शेयर इश्यू के माध्यम से

एक अच्छी तरह से स्थापित कंपनी भी अपने इक्विटी शेयरों को बिक्री के लिए जारी कर, सीधे जनता से पूँजी जुटा सकती है। जब फंडिंग का यह तरीका पहली बार किसी कंपनी के जीवन में इस्तेमाल होता है, तो इसे ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO)’ के रूप में जाना जाता है।

जब कोई कंपनी IPO के ज़रिये, अपने शेयरों की सदस्यता के लिए उन्हें लिस्ट करती है, तो डीमैट अकाउंट वाला कोई भी व्यक्ति एक निश्चित कीमत देकर शेयर्स के लिए अप्लाई या खरीद सकता है। IPO से कंपनी को जो फंडिंग मिलती है, उसका इस्तेमाल अपने बिज़नेस को आगे बढ़ाने, नए क्षेत्रों में विस्तार करने, नए एसेट खरीदने या मौजूदा कर्ज़ों को निपटाने के लिए भी किया जा सकता है।

फंडिंग के इस तरीके से पैसे जुटाने के लिए, एक व्यवसाय को आम तौर पर पहले अच्छी तरह स्थापित होने की ज़रूरत होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि इससे लोगों को कंपनी के भविष्य और उसमें अपना फायदा आसानी से दिख जाता है। हालांकि, ऐसे उदाहरण हैं जहां IPO के माध्यम से ,ग्रोथ स्टेज वाली कंपनियों ने भी सफलतापूर्वक पूँजी जुटाई है।

निष्कर्ष

यह अध्याय काफी बड़ा था, सही कहा ना? इस अध्याय का प्राथमिक उद्देश्य आगे आने वाले अध्यायों के लिए एक मंच तैयार करना था। इस मॉड्यूल के अगले कुछ अध्यायों में, हम IPO के कॉन्सेप्ट और IPO में शामिल विभिन्न प्रक्रियाओं पर एक नज़र डालेंगे।

अब तक आपने पढ़ा

  • चाहे कोई भी बिज़नेस या इंडस्ट्री हो, लगभग सभी प्रकार की कंपनियाँ अपने जीवन चक्र के दौरान इन पाँच अलग-अलग चरणों से होकर गुज़रती ही है।
  • स्टार्टअप चरण के रूप में भी जाना जाने वाला, लॉन्च चरण वह स्टेज है जब किसी कंपनी या व्यवसाय का निगमन होता है। इस स्टेज में कंपनी के प्रोमोटर शुरुआत में इतना पैसा लगाते है कि कंपनी अपने पैरों पर खड़ी हो जाए या अपना संचालन शुरू कर सके।
  • जब कोई बिज़नेस अपने जोखिम-भरे लॉन्च स्टेज को पार कर लेता है, तो ऐसा माना जाता है कि उसने अपने ग्रोथ स्टेज में एंट्री ले ली है। यहां, व्यवसाय की बिक्री शुरू होती है और यह अपनी पहचान, प्रतिष्ठा और विश्वसनीयता स्थापित करना शुरू करता है।
  • जब कोई बिज़नेस विकास के कई स्तरों को पार कर लेता है, तो वह शेक-आउट स्टेज पर पहुंच जाता है। यहां, बिज़नेस की बिक्री तो ऊंचाई छू रही होती है, लेकिन उसकी बिक्री और राजस्व की विकास की दर कम होने लगती है।
  • बिक्री, राजस्व और मुनाफ़ा, जब धीरे-धीरे एक निर्धारित रेशियो में मिलने लगे, तब बिज़नेस मैच्योरिटी स्टेज पर आ जाता है। ज़्यादातर बिज़नेस इस स्टेज में अपनी दूसरी ब्रांच खोलने, अपने व्यवसाय में विविधता लाने हैं, और नए बाजारों में अपने पैर पसारने की कोशिश करते हैं।
  • इस स्टेज में, बिज़नेस की बिक्री और राजस्व कम होने लगते है। इस स्टेज से बिज़नेस का निकलना बहुत ही मुश्किल होता है। 
  • ऋण के माध्यम से किसी व्यवसाय की फंडिंग करना सबसे लोकप्रिय तरीकों में से एक है। अधिकांश छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप, ऋण के माध्यम से पूँजी जुटाने के लिए बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से संपर्क करना पसंद करते हैं।
  • एंजेल इन्वेस्टर्स से पूँजी जुटाना एक और विकल्प है। एंजेल इनवेस्टर अनिवार्य रूप से हाई नेट वर्थ या वार्षिक आय वाले व्यक्ति होते हैं। वे काफी मान्यता प्राप्त होते हैं और आमतौर पर अकेले काम करते हैं। वे अपने पैसे को निवेश करने के लिए रोमांचक विकल्प और स्टार्टअप की तलाश में रहते हैं।
  • वेंचर कैपिटलिस्ट, जो अनिवार्य रूप से ऐसे फर्म और कॉरपोरेशन हैं जो विभिन्न पार्टनरों से पैसा लेकर व्यवसायों में निवेश करते हैं और कंपनी की पूँजी जुटाने में मदद करते है। VCs किसी बिज़नेस में बहुत ज्यादा पैसा लगाने में सक्षम होते हैं, इसलिए यह एंजेल इन्वेस्टर्स को आसानी से पीछे छोड़ देते है
  • जो व्यवसाय काफी स्थापित होते हैं और अपने जीवन चक्र के चरण में आगे जा चुके हैं, वह आमतौर पर बॉन्ड और ऋण उपकरणों यानी डेट इंस्ट्रूमेंट जैसे डिबेंचर के ज़रिये फंडिंग का रास्ता चुन सकते हैं।
  • फिर आती हैं निजी इक्विटी फर्म, जो कई निवेशकों के फंड को मिलाकर एक निजी इक्विटी फंड बनाती हैं। यह आमतौर पर VCs से कहीं ज़्यादा बड़ा निवेश करने की क्षमता रखती हैं। 
  • अंत में, एक अच्छी तरह से स्थापित कंपनी भी सार्वजनिक तौर पर अपने शेयरों की बिक्री करके सीधे जनता से पूँजी जुटा सकती है। जब फंडिंग का यह तरीका पहली बार किसी कंपनी के जीवन में आता है, तो इसे ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO)’ के रूप में जाना जाता है।
icon

अपने ज्ञान का परीक्षण करें

इस अध्याय के लिए प्रश्नोत्तरी लें और इसे पूरा चिह्नित करें।

आप इस अध्याय का मूल्यांकन कैसे करेंगे?

टिप्पणियाँ (0)

एक टिप्पणी जोड़े

के साथ व्यापार करने के लिए तैयार?

logo
Open an account