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वॉल स्ट्रीट और अमेरिकन स्टॉक मार्केट
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अमेरिकी शेयरों में निवेश करते समय 5 बातों का ध्यान रखें
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अभी तक आपने अमेरिकन स्टॉक मार्केट के बारे में गहराई से जाना वहां के टॉप्स टॉप मार्केट केस एक्टर्स जिनमें वह डिवाइडेड है हमने वहां के टैक्सेस और कन्वर्जन चार्जेस को भी देखा करेंसी मूवमेंट का आपके इन्वेस्टमेंट पर प्रभाव भी देखा और यह भी जाना कि आप अमेरिकन मार्केट में कैसे इन्वेस्ट कर सकते हैं
अब आपके अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने से पहले चलिए कुछ महत्वपूर्ण चीजों पर एक नजर डालते हैं जो आपको ध्यान में रखनी चाहिए यह आपको इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट में इंवॉल्वड प्रैक्टिकल एस्पेक्ट्स के लिए तैयार होने में बेहतर मदद करेगा इसलिए बिना किसी देरी के चलिए सीधा चलते हैं और उन पांच महत्वपूर्ण चीजों को देखते हैं जिन्हें आपको अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करते समय ध्यान में रखना चाहिए
1. द लाइब्रेलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम
हमने पिछले चैप्टर में इसको देखा था, याद है? जब अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने की बात आती है तो द लाइब्रेलाइज्ड रिमिटेंट स्कीम काफी महत्वपूर्ण है। इसका रेगुलेशन रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा इशू किया जाता है, और यह आपकी इन्वेस्टमेंट पर अच्छा प्रभाव डालती है। वास्तव में आपके मन में इंटरनेशनल इन्वेस्टमेंट को लेकर चलने वाले फंडामेंटल प्रश्नों का यह उत्तर रखती है– आप यूएस मार्केट में कितना इन्वेस्ट कर सकते है?
आपको अमेरिकन मार्केट में इन्वेस्ट करने से पहले भारतीय रुपयों को यूएस डॉलर में कन्वर्ट करना पड़ेगा। दूसरे शब्दों में आपको भारतीय रुपयों से यूएस डॉलर खरीदना पड़ेगा।LRS के अनुसार एक इंडिविजुअल भारत का निवासी 1 साल में $250,000 रेमिट कर सकता है। यह माइनर्स के लिए भी है। इसलिए उदाहरण के तौर पर कहते हैं कि आप एक चार लोगों की फैमिली में रहते हैं– आप आपका पति और दो बच्चे। और दोनों ही बच्चे नाबालिग है। इस केस में आपकी फैमिली एक फाइनेंशियल ईयर मे लगभग एक मिलियन तक रेमिट कर सकती है क्योंकि आप चारों ही $250,000 मिलने के योग्य है। निसंदेह नाबालिक बच्चों के केस में उनको मिली हुई राशि अभिभावक द्वारा गिनने योग्य है
एलआरएस के नियमों में फाइनेंशियल ईयर के दौरान फ्रिक्वेंटली ट्रांजैक्शन करने के लिए कोई बाध्यता नहीं है। हालांकि रिमिटेंस लिमिट स्कीम द्वारा बनाए जाने का केवल इन्वेस्टमेंट ही एक उद्देश्य नहीं है। यह कोटा रेमिटेंस के लिए कई रीजन्स को शामिल करता है, जो इस प्रकार है–
- रियल स्टेट में इन्वेस्टमेंट
- बैंक डिपॉजिट्स में इन्वेस्टमेंट
- ओवरसीज एक्सपेंस जैसे विदेश यात्रा
- स्टूडेंट एजुकेशन कॉस्ट
- सिक्योरिटीज में इन्वेस्टमेंट
- बाहर से गुड्स ओर सर्विसेज की खरीद
- फॉरेन कंट्री में ट्रीटमेंट के लिए एक्सपेंस
ऊपर दी गई लिस्ट उदाहरण के लिए है, एक्जास्टिव नही। लेकिन आपको सही अंदाजा होना चाहिए कि यह क्या है। बेसिकली रेमिटेंस चाहे किस भी परपज के लिए बना हो वह $250000 के अंदर कंवर होता है, जैसा कि LRS में मेंशन है। उदाहरण के लिए कहते हैं कि आप यूएसए में अपने बच्चे की पढ़ाई के लिए $100000 पहले ही खर्चा कर चुके है तो फाइनेंशियल ईयर के दौरान अब आप केवल $150000 इन्वेस्टमेंट परपज के लिए रेमिट कर सकते हैं।
2. फॉरेन एक्सचेंज का प्रभाव
INR को USD में बदलना केवल LRS द्वारा प्रभावित नहीं होता है। यहां एक और महत्वपूर्ण फेनोमेनोंन ,जो फॉरेन एक्सचेंज है। आपको यह दिन हमारे पहले मॉड्यूल से करेंसी और कमोडिटीज के बारे में याद होगा कि कुछ फैक्टर ऐसे हैं जो विभिन्न प्रकार की करेंसियो के एक्सचेंज रेट को प्रभावित करते है। गवर्नमेंट डेट, इन्फ्लेशन, इकोनामिक स्टेटस, पॉलीटिकल डेवलपमेंट और पूरा मार्केट सेंटीमेंट– यह सभी फॉरेन एक्सचेंज रेट को प्रभावित करते हैं।
जब से यह फैक्टर्स लगातार बदल रहे हैं, किन्ही दो करेंसियों के एक्सचेंज रेट लगातार फ्लकचुएट कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, अगर तुम 1 USD =72.56INR के रूप में पाते हो, और कल यह बदल सकता है इसलिए , 1 USD= 73.33 INR। और अगले दिन आपको यह पता चले की 1 USD= 72.77 INR।
अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने के पहले आपको फॉरेन एक्सचेंज फैक्टर को ध्यान में रखना है। क्योंकि जब आप अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करते हैं तो आप मुख्यत: USD में भी इन्वेस्ट करते हैं। और उसके बाद आप फॉरेन करंसी फ्लकचुएशन के रिस्क को भी सहते हैं। आपकी इन्वेस्टमेंट USD–INR के रिलेशनशिप से प्रभावित होंगी। उदाहरण के लिए ,अगर यूएसडी की कीमत गिरेगी तो आपकी पोर्टफोलियो वैल्यू गिर जाएगी और इसी प्रकार अगर USD की कीमतें बढ़ेंगी तो आप की इनवेस्टमेंट चरम पर पहुंच जाएगी।
3. आपके टैक्सेस
इस मॉड्यूल के पिछले चैप्टर में आप अमेरिकन मार्केट में अपनी इन्वेस्टमेंट पर लगने वाले टैक्स को पहले ही जान चुके हैं। यह एक अन्य महत्वपूर्ण चीज है जिसे आपको US की कंपनियों के स्टॉक्स में इन्वेस्ट करते समय ध्यान में रखना है। आपको याद दिलाने के लिए, मुख्यतः दो प्रकार के टैक्स थे।
- डिविडेंड पर टैक्स
- कैपिटल गेन पर टैक्स
अगर अमेरिकन कंपनियां आपकी इन्वेस्टमेंट पर आपको डिविडेंड देती है, तो आपको उन डिविडेंट पर यूएसए में टैक्स देना पड़ेगा। और आपकी कैपिटल गेन या इन्वेस्टमेंट गेन पर यूएसए में टैक्स नहीं लिया जाता है। पर यह भारत में इन पर एलटीसीजी (LTCG) और एसटीसीजी (STCG) के अनुसार टैक्स लगता है। तो यह निश्चय कर ले कि आप अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने से पहले इन पॉइंट्स को जरूर ध्यान में रखे ।डीटीएए (DTAA) भी यहां रिलीवेंट है, क्योंकि आप अमेरिका में दिए गए टैक्स का दावा टैक्स क्रेडिट के रूप में कर सकते हैं ।और भारत में अपनी टैक्स लायबिलिटी को ऑफसेट कर सकते हैं। इस तरह, आपको एक ही इनकम पर दो बार टैक्स देने की आवश्यकता नहीं है।
4. फ्रेक्शनल शेयर ओनरशिप
अगर आप यूएस मार्केट में इन्वेस्ट करने का मन बना चुके हैं, तो संभवतः आप बड़ी टिकट कंपनियों जैसे एप्पल फेसबुक अल्फाबेट और द लाइक पर इन्वेस्ट करना चाहेंगे। लेकिन अधिक बार नहीं क्योंकि यह ब्लू चिप कंपनियां एक्सपेंसिव इन्वेस्टमेंट है। उदाहरण के लिए अल्फाबेट को लिया। वर्तमान में कंपनी का 1 शेयर लगभग $2000 का है।INR में, एक्सचेंज रेट लगभग ₹73 पर अल्फाबेट के एक शेयर की कीमत रु 1,46,500 होगी!
एक शेयर के लिए एक बड़ा अमाउंट है।और काफी रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए, या उनके इनवेस्टमेंट बजट से अच्छी तरह बाहर होगा।
सौभाग्य से, अमेरिकी बाजार फ्रैक्शनल इंवेस्टमेंट की अनुमति देते हैं। इसलिए, किसी कंपनी का एक पूरा शेयर खरीदने के बजाय, आप उसके शेयरों के एक टुकड़े में इनवेस्ट कर सकते हैं - जैसे कि आधा हिस्सा या एक चौथाई हिस्सा।
यह लिमिटेड फंडों के साथ हाई प्राइस वाले शेयरों में इन्वेस्ट करने के इच्छुक इन्वेस्टर्स के लिए बहुत आसानी लाता है। यदि आप इस कैटेगरी में खुद को गिनते हैं, तो यह ध्यान रखना बेहतर है कि अमेरिकी बाजार फ्रैक्शनल इंवेस्टमेंट को सपोर्ट करते हैं।
5. डायवर्सिफिकेशन का सही स्तर
अमेरिकी बाजार में इन्वेस्ट करना आपकी पोर्टफोलियो को विभिन्न स्तरों में विभाजित करने की अनुमति देता है। निसंदेह यहां शुरुआत में सेक्टोरल विभाजन होता है। उदाहरण के लिए,यदि आपके पोर्टफोलियो में पहले से ही भारतीय एफएमसीजी (FMCG) स्टॉक शामिल हैं, तो आप हेल्थकेयर या मैटेरियल जैसे किसी अन्य सेक्टर से अमेरिकी स्टॉक चुनकर अपने पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाई कर सकते है।
दूसरा , अमेरिकी बाजारों में इन्वेस्ट करने से आपको ज्योग्राफिकल डाइवर्सिफिकेशन भी मिलता है। जब सही किया जाता है, तो ज्योग्राफिकल डाइवर्सिफिकेशन आपके पोर्टफोलियो को स्टेबिलिटी प्रदान कर सकती है।अमेरिकी बाजार आपको इमर्जिंग सेक्टर्स या इंडस्ट्रियों में इन्वेस्ट करने का मौका भी देते है। इलेक्ट्रिक वाहन और बड़े चिप मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर्स के बारे में सोचें। ये इमर्जिंग स्पेस डोमेस्टिक मार्केट में अवेलेबल नहीं हो सकते हैं, लेकिन आप अमेरिकी स्टॉक के मीडियम से इनमें इन्वेस्ट कर सकते हैं।
हालांकि, जबकि डाइवर्सिफिकेशन आपके पोर्टफोलियो के लिए अनडिस्प्यूटेडली टाइप से अच्छा है, बहुत अधिक डाइवर्सिफिक्शन काउंटरप्रोडक्टिव हो सकता है। आपकी इनवेस्टमेंट तब बहुत पतली हो जायेगी ,जिससे आपका रिटर्न insignificant हो जाएगा।इसलिए, अमेरिकी शेयर में इन्वेस्ट करते समय, आपको यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि डाइवर्सिफिकेशन सभी चीजों की तरह, मॉर्डरेशन में किए जाने पर सबसे अच्छा है।
बोनस: फंड्स के रिपेट्रिएशन के बारे में क्या ख़्याल है?
LRS फंड्स के रिपेट्रिएशन के बारे में भी प्रोविजन रखता है। अमेरिकन मार्केट में इन्वेस्टमेंट के कंटेक्स्ट में रिपेट्रिएशन मुख्यता आपकी इन्वेस्टमेंट से कमाई गई USD का INR में पुनः बदलाव है। लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के अनुसार, अगर एब्रॉड में आपके पास शेयर और म्यूचुअल फंड स्कीम है, तो आप उसी कंट्री में उससे प्राप्त इनकम को रिटेन और इन्वेस्ट कर सकते हैं।दूसरे शब्दों में, आपके लिए यह आवश्यक नहीं है कि आप अब्रॉड में किए गए इन्वेस्टमेंट पर रिटर्न को फिर से जमा करें।
इसलिए उदाहरण के लिए, कहते हैं कि आपने अमेरिकन स्टॉक में इन्वेस्ट करके इन्वेस्टमेंट गेन $500 प्राप्त किया। एलआरएस के अनुसार अगर आप चाहें तो यूएस मार्केट के अन्य स्टॉक्स में $500 को दोबारा इन्वेस्ट कर सकते हैं। अगर आपको आवश्यकता है तो आप इसे अब्रॉड में किसी अन्य एक्सपेंस में खर्चा भी कर सकते हैं। इसमें यह मैंडेट नहीं है कि आप उन फंड स्कोर अपने घरेलू बैंक खाते में वापस लाएं।
रैपिंग अप
तो अमेरिकन स्टॉक मार्केट पर इस मॉड्यूल को रैप अप करते हैं।यदि आपको अभी भी लीप लेने और इंटरनेशनल शेयरों में इन्वेस्ट करने से पहले भी कुछ सहायता की आवश्यकता है, तो याद रखें कि एक्सपर्ट से सजेशन लेना और उन इन्वेस्टमेंट को अपने गोल्स के साथ जोड़ना हमेशा अच्छा रहेगा।
एक क्विक रीकैप
- जब अमेरिकन स्टॉक्स में इन्वेस्ट करने की बात आती है तो द लाइब्रेलाइज्ड रिमिटेंट स्कीम काफी महत्वपूर्ण है।
- एलआरएस के अनुसार एक इंडिविजुअल भारतीय रेसिडेंट प्रत्येक फाइनेंशियल ईयर में $250000 तक रेमिट कर सकता है।
- यह माइनर्स को भी इनक्लूड करता है।
- LRS के रूल्स में प्रत्येक फाइनेंशियल ईयर मे ट्रांजैक्शंस की फ्रीक्वेंसी पर किसी भी प्रकार की कोई बाध्यता या रिस्ट्रिक्शन नहीं है।
- अमेरिकन स्टॉक में इन्वेस्ट करने से पहले आपको फॉरेन एक्सचेंज फैक्टर को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।
- यदि अमेरिकन कंपनियां आपकी इन्वेस्टमेंट पर आपको डिविडेंड पेय करती है तो आपको यूएस में उन डिविडेंड पर टैक्स देना पड़ेगा।
- और आपकी कैपिटल गेन या इन्वेस्टमेंट गेन पर यूएसए में टैक्स नहीं लिया जाता है। पर भारत में इन पर एलटीसीजी (LTCG) और एसटीसीजी (STCG) के अनुसार टैक्स लगता है।
- अमेरिकी बाजार फ्रैक्शनल इंवेस्टमेंट की अनुमति देते हैं– इसलिए, किसी कंपनी का एक पूरा शेयर खरीदने के बजाय, आप उसके शेयरों के एक टुकड़े में इनवेस्ट कर सकते हैं - जैसे कि आधा हिस्सा या एक चौथाई हिस्सा।
- अमेरिकी बाजारों में इन्वेस्ट करने से आपको ज्योग्राफिकल डाइवर्सिफिकेशन भी मिलता है। इसके साथ ही यह आपको इमर्जिंग सेक्टर्स और इंडस्ट्रीज में इन्वेस्ट करने का मौका भी देते है।
- हालांकि, जबकि डाइवर्सिफिकेशन आपके पोर्टफोलियो के लिए अनडिस्प्यूटेडली टाइप से अच्छा है, बहुत अधिक डाइवर्सिफिक्शन काउंटरप्रोडक्टिव हो सकता है।
- और अंत में ,लिब्रलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के अनुसार, अगर एब्रॉड में आपके पास शेयर और म्यूचुअल फंड स्कीम है, तो आप उसी कंट्री में उस इन्वेस्टमेंट से प्राप्त इनकम को रिटेन और इन्वेस्ट कर सकते हैं
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