बॉन्ड इन्वेस्टर्स के लिए टैक्सेशन नियम

04 जनवरी,2022

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फिक्स्ड इन्कम इन्वेस्टमेंट पर अर्जित इंटरेस्ट पर अक्सर टैक्स लगता है। सरकारी, कॉरपोरेट और म्युनिसिपल बॉन्ड सभी के अलग-अलग टैक्स नियम हैं। इसके बारे में और जानने के लिए पढ़ें!

बॉन्ड इन्वेस्टर्स की टैक्स अनिवार्यताएं क्या हैं?

बॉन्डहोल्डर्स को अपनी सालाना टैक्स योग्य इंटरेस्ट इन्कम का खुलासा करने के लिए हर साल टैक्स रिटर्न भरना होगा। हालांकि यह पेपर पहली नजर में इंटरेस्ट की तय ब्याज दर से हासिल इन्कम पर टैक्स घोषित करने के लिए सरल इंस्ट्रक्शन प्रदान करता सा लगता है लेकिन ऐसे कई जटिल पहलू हैं जिन पर फिक्स्ड इन्कम वाले इन्वेस्टर्स को विचार करना चाहिए। इस आर्टिकल में सरकारी, कॉर्पोरेट और म्युनिसिपल बॉन्ड से जुड़े टैक्स नियमों की बारीकी चर्चा की गई है।

टैक्स फ्री बॉन्ड

  • सरकारी के बॉन्ड

ट्रेजरी बिल, नोट्स और बॉन्ड इंटरेस्ट देते हैं जो सेंट्रल स्तर पर टैक्स योग्य है लेकिन राज्य या म्युनिसिपल स्तर पर नहीं। सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी कुछ सिक्योरिटीज़ फ़ेडरल स्तर पर टैक्स योग्य हैं लेकिन स्टेट या म्युनिसिपल स्तर पर नहीं।

  • ज़ीरो-कूपन बॉन्ड और टैक्सेशन

ज़ीरो-कूपन इन्वेस्टर्स के पास कोई कूपन रेट नहीं होता, इसके बावजूद उन्हें हर साल इन्कम के रूप में इंटरेस्ट की एक आनुपातिक राशि दर्ज़ करनी चाहिए, चाहे कोई इंटरेस्ट अदा किया गया हो या नहीं। सरकारें डिस्काउंट पर ज़ीरो-कूपन बॉन्ड जारी करती हैं और वे समान मूल्य पर परिपक्व होती हैं, और मैच्योरिटी तक साल की संख्या के बीच समान रूप से वितरित किया जाता है। इस वजह से इन पर किसी भी अन्य ओरिजिनल इश्यू डिस्काउंट बॉन्ड की तरह ही इंटरेस्ट तरह ही टैक्स लगाया जाता है।

  • सेविंग्स बॉन्ड 

सरकारें जनता को सेविंग्स बॉन्ड बेचती हैं, जिन्हें कई किस्म के फायदे के साथ सुरक्षित इन्वेस्टमेंट माना जाता है। सीरीज ई और ईई सेविंग्स बॉन्ड पर स्टेट और म्युनिसिपल टैक्स भी माफ कर दिया गया है, लेकिन इंटरेस्ट इन्कम को परिपक्वता तक स्थगित किया जा सकता है। सीरीज एच और एचएच बॉन्ड परिपक्वता तक छमाही टैक्स योग्य इंटरेस्ट का भुगतान करते हैं, जबकि सीरीज आई बॉन्ड ऐसे टैक्स योग्य इंटरेस्ट का भुगतान करते हैं जिसमें देरी भी हो सकती है।  यदि इन्कम का उपयोग उच्च शिक्षा व्यय के लिए किया जाता है, तो सीरीज़ ई और आई बॉन्ड से इंटरेस्ट भी इन्कम से डिडक्ट जा सकता है।

  • म्युनिसिपैलिटी द्वारा जारी एनडीएस बॉन्ड

भारी-भरकम इन्कम वाले इन्वेस्टर्स जो अपनी टैक्स योग्य इन्वेस्टमेंट इन्कम कम करना चाहते हैं, वे आम तौर पर म्युनिसिपल बॉन्ड पसंद करते हैं। जब तक इन्वेस्टर्स जारीकर्ता स्टेट या म्युनिसिपैलिटी में रहते हैं तब तक इन बॉन्ड पर इंटरेस्ट फ़ेडरल, स्टेट और स्थानीय स्तर पर टैक्स-फ्री होता है। जो लोग सेकेंडरी मार्केट में म्युनिसिपल बॉन्ड खरीदते और बेचते हैं, उन्हें किसी भी किस्म के गेन्स पर पारंपरिक लॉन्ग या शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स अदा करना पड़ सकता है। टैक्स-फ्री स्टेटस के कारण म्युनिसिपल बॉन्ड पर अन्य बॉन्डों की तुलना में कम इंटरेस्ट रेट देते हैं।

  • कॉर्पोरेशंस द्वारा जारी किये जाने वाले बॉन्ड

टैक्सेशन के मामले में कॉरपोरेट बॉन्ड सबसे सरल किस्म के बॉन्ड हैं, क्योंकि उन पर सभी स्तरों पर पूरी तरह से टैक्स लगाया जाता है। ये बॉन्ड किसी भी प्रमुख श्रेणी के बॉन्ड में उच्चतम इंटरेस्ट रेट देते हैं क्योंकि उनमें अक्सर सबसे अधिक जोखिम होता है। इसलिए जो इन्वेस्टर सात प्रतिशत सालाना इंटरेस्ट का भुगतान करने वाले 1000 रुपये के बराबर मूल्य के 100 कॉर्पोरेट बॉन्ड खरीदते हैं, उन्हें हर साल टैक्स योग्य इंटरेस्ट के तौर पर 7,000 रुपये मिल सकते हैं।

  • इन्वेस्टमेंट से होने वाला गेन

बेचा गया बॉन्ड चाहे किसी भी तरह का हो, सेकेंडरी मार्केट से खरीदे या बेचे गए डेट इशुएंस पर उस कीमत के आधार पर कैपिटल गेन या लॉस तय होगा, जिस पर बॉन्ड की खरीद-बिक्री हुई हो। इसमें फ़ेडरल, स्टेट और लोकल गवर्नमेंट डेट और कॉर्पोरेट डेट दोनों शामिल हैं। बॉन्ड की खरीद-बिक्री से होने वाले प्रॉफिट और लॉस को उसी तरह से दर्ज़ किया जाता है जैसेअन्य सिक्योरिटीज़, मसलन इक्विटी या म्यूचुअल फंड, कैपिटल गेन के मामले में होता है।

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