फार्मईज़ी की सफलता की कहानी
फार्मईज़ी एक प्रतिष्ठित और मशहूर कंपनी है जिसका उद्देश्य है भारत में बेहतरीन हेल्थकेयर डिलीवरी मंच तैयार करना।
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इन कच्चे माल का उपयोग हर चीज़ के उत्पादन में होता है और कोरोना वायरस के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में आई नरमी दूर होते जाने के मद्देनज़र ये मँहगे होते जा रहे हैं।
मक्का, स्टील, कॉपर और लम्बर जैसी कमॉडिटी की कीमतों में कई साल से उछाल दर्ज़ नहीं हुई थी लेकिन बाकी सभी चीजों की कीमतों में बढ़ोतरी की संभावना के साथ इनमें भी तेज़ी आई। दुनिया भर में अर्थव्यवस्थाओं गति पकड़ रही है क्योंकि कोविड-19 के नए मामलों में गिरावट आई है, काफी बड़ी आबादी को वैक्सीन लगाए जा चुके हैं, और यात्रा पर प्रतिबंधों में ढील दी गई है। हालांकि इसके परिणामस्वरूप रिफ्लेशन ट्रेड में भी तेजी आई है और मुद्रास्फीति संबंधी आशंका भी बढ़ी है। कीमत में इस उछाल के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार और कारोबार शुरू होना शामिल है।
विश्व बैंक ने हर दो साल में पेश होने वाली रपट में, हालांकि, आगाह किया है कि कमॉडिटी की कीमतों में यह तेज़ी इस पर निर्भर करेगी कि आने वाले दिनों में कोविड-19 के हालात कैसे रहते हैं। बाकी साल कमॉडिटी की कीमत कैसी रहेगी यह इस बात पर निर्भर करेगा कि विभिन्न देशों की महामारी पर नियंत्रण की क्षमता कैसी है, कमॉडिटी उत्पादन से जुड़ी नीति और फैसले कैसे हैं।
कॉपर, बिजली से चलने वाले उत्पादों में इसके व्यापक उपयोग के कारण कीमत में भारी तेज़ी आई क्योंकि दुनिया भर की सरकारों ने रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देने के प्रति प्रतिबद्धता जताई। इसका मतलब था कि इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन में तेज़ी आएगी और फ्यूल-एफिशिएंट टेक्नोलॉजी पर निर्भरता बढ़ेगी।
इलेक्ट्रिक कार, सोलर पैनल और पावर ग्रिड जैसे उत्पादों में कॉपर के इस्तेमाल से इसकी कीमतें आसमान छू रही हैं। लो-कार्बन टेक्नोलॉजी की मांग बढ़ने के साथ-साथ कॉपर का उपयोग तेजी से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे इसकी कीमत में भी बढ़ोतरी हो रही है।
अमेरिका जैसे देश जो अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को फिर से तैयार करने की राह पर हैं, इससे धातुओं की मांग बढ़ेगी। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की रेलवे और बिजली ग्रिड के पुनर्निर्माण के लिए 2.3 ट्रिलियन डॉलर की घोषणा इस तरह के खर्च का एक उदाहरण है। चिली जैसे कॉपर के बड़े उत्पादक देश और आयरन ओर के प्रमुख निर्यातक ऑस्ट्रेलिया को इस लाभ होगा।
हालांकि, दूसरी तरफ चीन की सरकार एल्यूमीनियम और स्टील जैसे महत्वपूर्ण मेटल के उत्पादन पर अंकुश लगाने का प्रयास कर रही है। इन मेटल की वैश्विक कीमत पर इसका असर होना तय है, क्योंकि ये कीमतें वैश्विक रुझान से तय होती हैं।
स्टील की कीमतों में भारी उछाल देखा गया, दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक चीन में स्टील फ्यूचर्स ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। यह सरकार द्वारा स्टील के उत्पादन को रोकने के मद्देनज़र हुआ। यूरोप और अमेरिका में, जहां उत्पादन पहले से ही अधिकतम क्षमता पर किया जा रहा है, बेंचमार्क कीमतों को बढ़ावा मिला क्योंकि वे उच्च मांगों को पूरा करने का प्रयास करते हैं।
यह स्थिति हाल तक अमेरिका और यूरोप में संघर्षरत स्टील उत्पादन के उलट है जो वैश्विक स्तर पर अत्यधिक क्षमता का खामियाजा भुगत रहा था। नतीजतन, इंडस्ट्री में पिछले एक दशक में बड़े पैमाने पर रोज़गार कम हुआ।
कोविड-19 और जर्मनी में कहर बरपाने वाली पिग डिज़ीज़ जैसी फार्म एनिमल की बीमार के प्रकोप से मीट के कारोबार को नुकसान हुआ है। फसलों की कीमत में बढ़ोतरी से भी सूअर, मुर्गी और मवेशियों के मीट उत्पादन प्रभावित हुआ। फार्म एनिमल को खिलाए जाने वाले मक्के की कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में दोगुनी वृद्धि देखी गई, जबकि सोयाबीन की कीमत 40 प्रतिशत बढ़ी।
यूनाइटेड नेशंस फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाईजेशन (एफएओ) ने कहा कि अप्रैल में लगातार ग्यारहवें महीने खाद्य कीमत में बढ़ोतरी हुई। कीमत मई 2014 के बाद से अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। एफएओ का मूल्य सूचकांक, जो ऑयलसीड, अनाज, डेयरी प्रॉडक्ट, चीनी और मीट की कीमत का आकलन करता है जो अप्रैल में बढ़कर 120.9 अंक पर पहुँच गया जबकि मार्च में यह 118.9 अंक पर था।
दक्षिण अमेरिका से सीमित आपूर्ति और चीन में ज़्यादा मांग के कारण कृषि उत्पादों की कीमतों में पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि हुई है। अरेबिका कॉफी का फ्यूचर्स 33 प्रतिशत बढ़ा, और गेहूं की कीमत 2013 के बाद से अब तक के उच्चतम स्तर पर थी। रॉ शुगर की कीमत भी बढ़ी। इन कमॉडिटी की कीमतें 2022 में स्थिर होने की उम्मीद है।
महामारी के दौरान कच्चे तेल की कीमतें रिकॉर्ड नीचे के स्तर पर पहुंच गईं लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार और पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) द्वारा उत्पादन में कमी करने के फैसले से इसकी कीमत में उछाल आई। प्रतिबंधों में ढील दिए जाने और वैक्सीन उपलब्ध होने से कच्चे तेल की मांग भी बढ़ेगी।
एनर्जी की औसत कीमत 2020 की तुलना में एक तिहाई बढ़ने की उम्मीद है और कच्चा तेल औसतन 56 डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच सकता है। साल 2022 में कच्चा तेल 60 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर भी पहुँच सकता है।
कमॉडिटी की कीमतें, हालांकि इन्फ्लेशन की संकेतक हैं लेकिन इससे इन्फ्लेशन परिभाषित नहीं होती। इन कमॉडिटी की कीमत में बढ़ोतरी का कंज़्यूमर द्वारा अदा की जाने वाली कीमत पर असर दिखने में काफी लंबा समय लगता है। यह खुदरा विक्रेताओं के लिए लागत का केवल छोटा सा हिस्सा है जो अक्सर इसका असर कस्टमर पर नहीं आने देते। हालांकि, खुदरा विक्रेता कितनी मात्रा में इन बढ़ी हुई कीमत को बर्दाश्त कर सकता है इसकी सीमा है, इसके बाद उपभोक्ताओं पर इसका असर होने लगता है।
विश्व बैंक ने कहा है कि 2021 की शुरुआत में आर्थिक रफ़्तार पकड़ी है, लेकिन इस रिकवरी टिकने को लेकर बहुत अनिश्चितता है। विश्व बैंक ने कहा है कि ज़्यादातर कमॉडिटी की कीमत महामारी के पूर्व के स्तर से ऊपर हैं लेकिन विकासशील देशों, निर्यातकों, आयातकों और उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं को अपना ध्यान शॉर्ट-टर्म रेज़िलिएंस बढ़ाने पर केंद्रित करना चाहिए।
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