कैपिटल गेन्स टैक्स क्या है और इसे कैसे...
यह आर्टिकल कैपिटल गेन्स टैक्स और इसके कैलकुलेट के महत्व के साथ-साथ टैक्स एग्ज़ेम्प्शन के प्रावधानों पर रोशनी डालता है।
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Open FREE* Demat Account13 दिसम्बर,2021
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फिनांस एक्ट 2020 के अंग के तौर पर भारतीय टैक्स अथॉरिटी ने भारत में प्रचलित इक्वलाइज़ेशन लेवी के दायरे का विस्तार किया और इसे अब इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0 के रूप में जाना जाता है। नई लेवी ई-कॉमर्स डिलीवरी या सर्विस से जुड़ी अनिवासी ई-कॉमर्स ऑपरेटर के ग्रॉस रेवेन्यू पर दो प्रतिशत कर वसूल करेगी। गूगल, फेसबुक, एमेज़ॉन, एपल और ट्विटर जैसी बड़ी टेक फर्मों को भारत में इक्वलाइज़ेशन टैक्स लगने की आशंका है क्योंकि इससे डबल टैक्सेशन स्थिति उभर सकती है। यूके और फ्रांस जैसे देशों में, इक्वलाइज़ेशन डिजिटल टैक्स पहले से लागू हैं।
इक्वलाइज़ेशन 2.0 को 1 अप्रैल, 2020 से प्रभावी बनाया गया था। फाइनांस एक्ट 2021 में इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0 के दायरे को स्पष्ट और विस्तारित करने के लिए और संशोधन किए गए थे। भारत ने 2016 में इक्वलाइज़ेशन लेवी 1.0 लागू किया था और भारतीय टैक्स अथॉरिटी के अनुसार, इक्वलाइज़ेशन लेवी की अवधारणा की फिस्कल पिलर में गैप को सुधारने का उपाय है। इक्वलाइज़ेशन लेवी 1.0 के अनुसार, यदि बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ परमानेंट एस्टैबलिशमेंट वाली भारतीय निवासी या अनिवासी कंपनियों के ज़रिये ऑनलाइन विज्ञापनों से सालाना 1,00,000 रुपये से अधिक ग्रॉस रेवेन्यू हासिल करती हैं, तो उनसे सालाना रेवेन्यू पर छह प्रतिशत टैक्स लिया जाएगा।
इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0 के अनुसार, छह प्रतिशत टैक्स के अलावा भारत इन कंपनियों पर दो प्रतिशत इक्वलाइज़ेशन लेवी लगेगा यदि उनका विज्ञापन भारत में दिखता है। चाहे विज्ञापनदाता या बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत की हों या नहीं। अब सवाल यह है कि टैक्स कहां देना है। जहां विज्ञापनदाता स्थित है या जहां विज्ञापन दिखाई दे रहे हैं। भारत इन दोनों पर टैक्स वसूल करता है। इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0 लागू हो सकता है यदि कोई अनिवासी कंपनी जिसका भारत में ऑफिस नहीं है, इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के ज़रिये भारतीय निवासियों को अपना सामान या सेवाएं बेचती है। रॉयल्टी या टेक्निकल सर्विसेज के लिए शुल्क जैसे कुछ ट्रांजैक्शन को विशेष रूप से इस लेवी से छूट दी गई है।
यह डबल टैक्सेशन समझौता बड़ी टेक फर्मों के ऊपर तलवार की तरह लटक रहा है।
डिजिटल दिग्गजों पर टैक्स लगाने के लिए, यूके और फ्रांस जैसे देशों ने एकतरफा उपायों को लागू किया है जिन्हें अन्य देशों में मान्यता प्राप्त नहीं है। हो सकता है यह अंतरराष्ट्रीय टैक्स ढाँचे का अनुपालन न करे। भारत ऐसे उपायों में आगे है क्योंकि इसने 2016 में इक्वलाइज़ेशन लेवी 1.0 को लागू किया था। इन नियमों के कारण, गूगल, फेसबुक, एमेज़ॉन, एपल और ट्विटर जैसी बड़ी टेक फर्मों को अपने विज्ञापन और कंटेंट रेवेन्यू के लिए अलग-अलग जगहों पर टैक्स अदा करना पड़ सकता है। संभव है कि इन कंपनियों पर दो या तीन देशों में भी टैक्स लग जाए।
यूके में, बिज़नेस यूजर्स या एडवरटाइजर्स से डीएसटी या डिजिटल सर्विसेज़ टैक्स वसूला जाता है और यह भारत के इक्वलाइज़ेशन लेवी की तरह ही है। ये इक्वलाइज़ेशन लेवी और डिजिटल सर्विसेज़ टैक्स होम कंट्री में क्रेडिटेबल नहीं हैं। उसी ट्रांजैक्शन पर, बिग टेक फर्म ग्रॉस रेवेन्यू लेवल पर भुगतानकर्ता-लिंक्ड, एक्सेस-लिंक्ड और फिस्कल डोमिसाइल के आधार पर मल्टी-लेयर टैक्सेशन लग सकता है। इस डबल टैक्सेशन या मल्टी-लेयर टैक्सेशन से ऐसी टेक कंपनियों की लागत में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।
भारत में कोई नॉन-रेजिडेंट कंपनी जो गुड्स या सर्विसेज़ की ऑनलाइन बिक्री के लिए डिजिटल इकाई संचालन करती है या उसके पास इसका स्वामित्व है, तो उसे ई-कॉमर्स ऑपरेटर कहा जाता है। गुड्स या सर्विसेज़ को बेचने के लिए कोई भी डिजिटल प्लेटफॉर्म चलाने वाली सभी कंपनियां इसमें शामिल हैं। हर फिनांशियल ईयर में दो करोड़ रुपये के सालाना ग्रॉस रेवेन्यू वाली ई-कॉमर्स कंपनी को इक्वलाइज़ेशन लेवी 2.0 देना होगा। रेवेन्यू का स्तर नीचे रखे जाने के कारण, इस लेवी से छोटी और मध्यम आकार की कंपनियाँ भी प्रभावित होंगी। फ्रांस और यूके में, यह न्यूनतम स्तर अपेक्षाकृत अधिक है। फ़्रांस ने उन व्यापारिक दिग्गजों पर डिजिटल सर्विसेज़ टैक्स लागू किया जो डिजिटल विज्ञापन जेनरेट करते हैं और यूजर्स को डाटा बेचते हैं और जिनकी सालाना आय 25 मिलियन यूरो से अधिक है। इस मामले में, यूके में ग्रॉस रेवेन्यू सीमा 25 मिलियन पाउंड से अधिक है।
ये डिजिटल सर्विस टैक्स या इक्वलाइजेशन लेवी अंतरराष्ट्रीय कराधान के दायरे से बाहर हैं। इसलिए, उन्हें अन्य घरेलू टैक्स दायित्वों से छूट नहीं दी जा सकती है या इन कंपनियों को अपने व्यापार वाले देशों में ऐसे टैक्स के लिए क्रेडिट नहीं मिलेगा। कुछ इक्वलाइज़ेशन लेवी विदेशी टैक्स क्रेडिट के योग्य हैं लेकिन इंडियन इक्वलाइज़ेशन लेवी किसी भी टैक्स संधि के अंतर्गत नहीं आती है। इसलिए होम कंट्री टैक्स के एवज़ में क्रेडिट पाने की पात्र नहीं है। सिंगापुर जैसे देश भारतीय इक्वलाइज़ेशन लेवी को टैक्स डिडक्टेबल एक्सपेंस के रूप में मानने पर सहमत हुए हैं, लेकिन इसने कंपनियों को इसके लिए क्रेडिट प्राप्त करने की अनुमति नहीं दी है।
इक्वलाइजेशन लेवी कंपनियों पर अतिरिक्त बोझ जैसी है। उन्हें अपने पूरे मुनाफ़े पर अपने देश में टैक्स देना होगा। इसमें वह रेवेन्यू शामिल है जिस पर भारत में पहले ही टैक्स का भुगतान किया जा चुका होगा। दो या दो से अधिक देशों में टैक्स भुगतान करने की इस प्रक्रिया डबल टैक्सेशन है। इस उदाहरण को लें, यूके मुख्यालय वाली कोई कंपनी फेसबुक पर विज्ञापन देने का फैसला करती है। यदि कंटेंट भारत में भी दिखाई दे रहा है, तो कंपनी को ट्रांजैक्शन के लिए भारत में दो प्रतिशत इक्वलाइजेशन लेवी का भुगतान करना होगा। इसी तरह, उन्हें यूके में विज्ञापन पर लागू डीएसटी का भुगतान करना होगा। और यह पर्याप्त नहीं होगा क्योंकि कंपनी को उस देश में कॉर्पोरेट टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है जहां वह स्थित है।
इनमें से कुछ बड़ी टेक फर्म कुछ वैश्विक एडवरटाइजिंग कंटेंट को ब्लॉक करने के लिए अपने घरेलू बॉट को काम पर लगा रही हैं। कुछ देश-विशिष्ट संवेदनशील कंटेंट से बचने के लिए कई बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म पहले ही ऐसा कर चुके हैं। यह आसानी से किया जा सकता है लेकिन संभव है कि इसमें और जटिलता जुड़ जाए। गूगल जैसी कई कंपनियों ने डिजिटल टैक्स का भार उन ग्राहकों पर डालना शुरू कर दिया है जिनके विज्ञापन देश में दिखाई दे रहे हैं। यह कदम अन्य डिजिटल बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर गूगल का अनुपालन करने के लिए दबाव डाल सकता है।
भारत सरकार ने कई कंपनियों के लिए डिजिटलीकृत इकॉनमी के मुद्दों को वास्तविकता बना दिया है। बेहतर टैक्स मैनेजमेंट के लिए कंपनियों के लिए ज़रूरी है किअपनी ग्लोबल टैक्स प्लानिंग के अंग के तौर पर इक्वलाइज़ेशन लेवी को शामिल करें। इक्वलाइजेशन लेवी 2.0 के असर का आकलन करना अब महत्वपूर्ण हो गया है, विशेष रूप से टैक्स ऑप्टिमाईज़ेशन के अवसरों के साथ।
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